Minority vs Majority: लकीर का फकीर बनने से बचने में ही राष्ट्र का कल्याण

Minority vs Majority अल्पसंख्यक और बहुसंख्यक शब्द अब गैरजरूरी हो चले हैं। इन शब्दों के अस्तित्व को आक्सीजन देने वाली संस्थाओं और विभागों को खत्म किए जाने की जरूरत है क्योंकि ये शब्द देश को पीछे धकेलने में कोई कसर नहीं छोड़ते।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Publish:Mon, 18 Oct 2021 10:46 AM (IST) Updated:Mon, 18 Oct 2021 10:46 AM (IST)
Minority vs Majority: लकीर का फकीर बनने से बचने में ही राष्ट्र का कल्याण
क्या भारत में अल्पसंख्यक असुरक्षित या पिछड़े हैं?

हरेन्द्र प्रताप। Minority vs Majority मुसलमानों के बारे में विभाजन के पूर्व ही बाबा साहब आंबेडकर ने चेतावनी देते हुए कहा था कि अगर बंटवारे को नहीं टाला जा सकता तो पूरी मुस्लिम आबादी को पाकिस्तान भेज देना चाहिए। पर मुसलमानों का एक बड़ा हिस्सा भारत में ही रह गया। भारत के संविधान निर्माताओं में यह भय सता रहा था कि भारत में रह रहे मुसलमानों को हिंदू कभी माफ नहीं करेंगे, अत: संविधान बनाते समय उन्होंने गैर हिंदुओं के लिए संविधान के भाग 3 में ‘धर्म की स्वतंत्रता’ और ‘संस्कृति और शिक्षा संबंधी’ अधिकार का प्रावधान किया।

1977 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और उनकी पार्टी चुनाव हार गयी। जीत का श्रेय लोकतंत्र प्रेमी जनता को देने के बदले एक समाजवादी ने मुसलमानों को दे दिया। मुसलमान परिवार नियोजन से नाराज थे अत: उन्होंने कांग्रेस को वोट नहीं दिया। इस घटिया राजनीति का परिणाम यह निकला कि वोट बैंक के सौदागर अल्पसंख्यक यानी मुस्लिम तुष्टीकरण की दौड़ में शामिल हो गये। राष्ट्रीय स्तर पर अल्पसंख्यक आयोग के गठन, कुछ पंथों को अल्पसंख्यक का तमगा देने और 2006 में अलग से केंद्रीय स्तर अल्पसंख्यक मंत्रलय बना देने से इस परिपाटी और सोच को मजबूती ही मिली। केंद्र की राह पर चलते हुए राज्यों ने अपने अल्पसंख्यक मंत्रलय गठित कर दिए।

क्या भारत में अल्पसंख्यक असुरक्षित या पिछड़े हैं? आर्थिक और शैक्षणिक विकास को आधार मानने पर तथाकथित अल्पसंख्यक बहुल राज्य हिंदू बहुल राज्यों से काफी आगे हैं। प्रति व्यक्ति आय के मामले में मार्च 2021 में जिन 33 राज्यों का आंकड़ा उपलब्ध है, उसमें नीचे से चार राज्यों में अंडमान, बिहार, उत्तर प्रदेश और झारखंड शामिल हैं। साक्षरता की दृष्टि से भी बिहार और उत्तर प्रदेश से पंजाब, मिजोरम, नगालैंड, मणिपुर, मेघालय और लक्ष्यद्वीप आगे हैं।

यानी संविधान निमार्ताओं को जो यह भय था कि हिंदू बहुल देश में अल्पसंख्यकों का आर्थिक और शैक्षणिक विकास रुक जायेगा, वह निमरूल साबित हुआ। संविधान की प्रस्तावना में ‘राष्ट्र की एकता और अखंडता सुनिश्चित करने वाली बंधुता बढ़ाने के लिए दृढ़ संकल्प’ की बात कही गयी है। सच्चाई यह है कि बहुसंख्यक हिंदू से किसी को कोई खतरा नहीं है बल्कि तथाकथित ‘अल्पसंख्यकों’ से देश को खतरा पैदा हो जाता है। जहां ये बहुमत में है, वहीं आतंकवाद से लड़ते हुए देश के जवान शहीद हो रहे है।

[पूर्व सदस्य, बिहार विधानपरिषद]

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