DATA STORY: बीते तीस साल में देश में दोगुने हो गए माइग्रेन, तनाव, सिरदर्द और स्ट्रोक के मरीज; राज्यों का ऐसा है हाल

न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर के मामले 1990 में जहां 4 फीसद थे जो 2019 में बढ़कर 8.2 फीसद हो गए। वहीं कम्युनिकेबल न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर के मामले 1990 में जहां 4.1 प्रतिशत थे जो 2019 में घटकर 1.1 प्रतिशत रह गए। 2019 में 48.8 करोड़ लोग माइग्रेन और तनाव के शिकार थे।

By Vineet SharanEdited By: Publish:Thu, 05 Aug 2021 08:10 AM (IST) Updated:Thu, 05 Aug 2021 08:12 AM (IST)
DATA STORY: बीते तीस साल में देश में दोगुने हो गए माइग्रेन, तनाव, सिरदर्द और स्ट्रोक के मरीज; राज्यों का ऐसा है हाल
न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर के प्रमुख तौर पर बढ़ने की वजह तेज लाइफस्टाइल और तनाव है।

नई दिल्ली, अनुराग मिश्र। न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर के मामले भारत में दिन-ब-दिन बढ़ते जा रहे हैं। यह हेल्थ सिस्टम के लिए एक बड़ी चुनौती के तौर पर उभरकर सामने आया है। न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर के प्रमुख तौर पर बढ़ने की वजह तेज लाइफस्टाइल और तनाव है। यही नहीं ब्लड प्रेशर, एयर पॉल्यूशन, डाइट, डायबिटीज, हाई बॉडी मास इंडेक्स भी इसे बढ़ाने में अहम है। लैसेंट में प्रकाशित रिपोर्ट द बर्डन ऑफ न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर्स एक्रॉस द स्टेट्स ऑफ इंडिया : ग्लोबल बर्डन ऑफ डिसीज के अनुसार भारत में बीते तीस सालों में माइग्रेन, तनाव और स्ट्रोक के मामले दोगुने हो गए हैं।

रिपोर्ट के अनुसार न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर के मामले 1990 में जहां 4 फीसद थे जो 2019 में बढ़कर 8.2 फीसद हो गए। वहीं कम्युनिकेबल न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर के मामले 1990 में जहां 4.1 प्रतिशत थे जो 2019 में घटकर 1.1 प्रतिशत रह गए।

2019 के दौरान देश में कुल 48.8 करोड़ लोग माइग्रेन और तनाव जैसे मानसिक विकारों का शिकार थे। वहीं पुरुषों की तुलना में कहीं अधिक महिलाएं इससे ग्रस्त थीं। जहां करीब 23.5 करोड़ लोग माइग्रेन और तनाव का शिकार थे वहीं महिलाओं में यह आंकड़ा 25.3 करोड़ से ज्यादा था। न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर के मरीजों में स्ट्रोक के बाद सबसे ज्यादा मौतें अल्जाइमर्स-डिमेंशिया से हुई। इससे 12 फीसद मौत हुई। एनसेफेलाइटिस से 12 फीसदी मौतें हुई।

इन राज्यों की ऐसी है स्थिति

डिसेबिलिटी एडजस्टेड लाइफ ईयर को अगर पैमाना मानें तो पश्चिम बंगाल में सबसे अधिक स्ट्रोक के मरीज है। इसके बाद सूची में छत्तीसगढ़, असम और त्रिपुरा का नंबर आता है। मिर्गी के मामले उड़ीसा में सबसे अधिक है। इसके बाद फेहरिस्त में कर्नाटक और उत्तराखंड का नंबर आता है।

न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर्स पर हुई यह अपनी तरह की पहली ऐसी स्टडी है। ICMR, पब्लिक हेल्थ फाउंडेशन ऑफ इंडिया, इंस्टीट्यूट ऑफ मेट्रिक्स एंड इवेल्युएशन समेत 100 संस्थानों ने मिलकर यह अध्ययन किया है।

ब्रेन स्ट्रोक

सही ढंग से काम करने के लिए हमारे दिमाग को हमेशा पर्याप्त मात्रा में ऑक्सीजन की ज़रूरत होती है और ब्लड सर्कुलेश के ज़रिए ऑक्सीजन मस्तिष्क तक पहुंचता है। उसकी रक्तवाहिका नलियों में ब्लड क्लॉटिंग या उनके फटने की वजह से ब्रेन की कोशिकाओं को पर्याप्त मात्रा में ऑक्सीजन नहीं मिल पाता और वे तेज़ी से नष्ट होने लगती हैं। इसी शारीरिक अवस्था को ब्रेन स्ट्रोक कहा जाता है। लोगों को सरल भाषा में समझाने के लिए नेशनल स्ट्रोक एसोसिएशन ने इसके लिए 'ब्रेन अटैक' शब्द का इस्तेमाल करने की सलाह दी है। ब्रेन स्ट्रोक मुख्यत: दो तरह का होता है, इस्केमिक और हेमरैजिक स्ट्रोक। पहली स्थिति में व्यक्ति के मस्तिष्क की नसों में खून जमने की समस्या होती है, जिससे उसके कुछ हिस्सों को ऑक्सीज़न युक्त रक्त नहीं मिल पाता। स्ट्रोक के लगभग 87 प्रतिशत मामलों में ऐसी ही समस्या देखने को मिलती है। दूसरे तरह के स्ट्रोक में मस्तिष्क की नसें फट जाती हैं, इससे उसके कुछ हिस्सों में अनियंत्रित रक्त प्रवाह शुरू हो जाता है। यह स्थिति भी मरीज़ के लिए बेहद खतरनाक होती है।  

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