DATA STORY: जानें, मिड-डे मील की क्या है स्थिति और किस राज्य में कितने छात्र हैं पंजीकृत, कैसे हो रहा फंड का इस्तेमाल

2015 की कैग रिपोर्ट के मुताबिक 2009-10 में मिड-डे मील में 14.39 करोड़ छात्र पंजीकृत थे लेकिन 2013-14 में ये घटकर 13.87 करोड़ रह गए। रिपोर्ट में बताया गया कि एमडीएम में जिस समय बच्चों का पंजीकरण कम हुआ उसी समय निजी स्कूलों में 38 फीसद का उछाल आया।

By Vineet SharanEdited By: Publish:Sat, 27 Feb 2021 08:38 AM (IST) Updated:Sat, 27 Feb 2021 11:29 AM (IST)
DATA STORY: जानें, मिड-डे मील की क्या है स्थिति और किस राज्य में कितने छात्र हैं पंजीकृत, कैसे हो रहा फंड का इस्तेमाल
2004 में नई गाइडलाइंस में मिड-डे मील में 300 कैलोरी और 8 से 12 ग्राम प्रोटीन होना जरूरी बताया।

नई दिल्ली, जेएनएन। लोकसभा में फरवरी में दिए गए एक प्रश्न के जवाब में शिक्षा मंत्रालय के स्कूली शिक्षा एवं साक्षरता विभाग ने जानकारी दी कि देश में 2019-2020 में कुल 11,19724 स्कूलों और शिक्षण संस्थानों में मिड-डे मील (एमडीएम) दिया गया। इन संस्थानों में कुल 11.8 करोड़ छात्र पंजीकृत हैं। वहीं 2017-2018 में मिड-डे मील के अंतर्गत 12.32 करोड़ छात्र पंजीकृत थे। यानी पंजीकृत छात्रों में कमी आई है। आइये, हम इसका कारण जानते हैं और साथ ही देश में मिड-डे मील योजना की स्थिति को भी परखते हैं।

2015 की कैग रिपोर्ट के मुताबिक, 2009-10 में मिड-डे मील में 14.39 करोड़ छात्र पंजीकृत थे, लेकिन 2013-14 में ये घटकर 13.87 करोड़ रह गए। रिपोर्ट में बताया गया कि एमडीएम में जिस समय बच्चों का पंजीकरण कम हुआ, उसी समय निजी स्कूलों में पंजीकरण में 38 फीसद का उछाल आया। निजी स्कूलों में छात्रों की संख्या 4.02 करोड़ से बढ़कर 5.53 करोड़ हो गई। निजी स्कूलों में छात्रों की संख्या बढ़ने का कारण समाज में क्वालिटी एजुकेशन के प्रति जागरूकता को बताया जाता है। 2019-20 में भी सरकारी स्कूलों में पंजीकरण कम होने का यही कारण है।

राज्यवार स्थिति

पिछले 6 साल के आंकड़ों को देखें तो राजस्थान, पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़, गोवा, असम और केरल में पंजीकृत छात्रों में थोड़ा इजाफा हुआ है। वहीं, पूर्वोत्तर के राज्यों, जैसे मेघालय, त्रिपुरा, नगालैंड और मणिपुर में इसमें गिरावट आई है।

कितने फंड का हो रहा इस्तेमाल

2018-19 के आंकड़ों के देखें तो सबसे कम दादर एवं नगर हवेली (60.32 फीसद), अंडमान एवं निकोबार (64.38 फीसद), नगालैंड (77.17 फीसद) और जम्मू-कश्मीर में (80.62 फीसद) फंड का इस्तेमाल हुआ। वहीं, उत्तर प्रदेश, बिहार, केरल, दिल्ली, ओडिशा, पंजाब में 95 फीसद फंड का प्रयोग हुआ। कई राज्यों ने 100 फीसद से ज्यादा फंड का इस्तेमाल किया, जिनमें राजस्थान, मध्य प्रदेश, असम, अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर, कर्नाटक, पश्चिम बंगाल और तेलंगाना शामिल हैं।

26 साल पहले शुरू हुई योजना

15 अगस्त 1995 को यह योजना शुरू की गई। इसका मकसद स्कूलों में छात्रों का पंजीकरण और उपस्थिति बढ़ाने के साथ ही बच्चों के पोषण का स्तर सुधारना था। शुरुआत में सिर्फ प्राइमरी (एक से पांचवीं कक्षा) के छात्रों को यह सुविधा दी गई। अक्टूबर 2002 में इस योजना का विस्तार करते हुए एजुकेशन गारंटी स्कीम के सभी छात्रों को और स्पेशल ट्रेनिंग सेंटर को भी इसमें शामिल किया गया। 2008-09 में इस योजना को उच्चतर प्राथमिक कक्षाओं तक लागू कर दिया गया। वहीं अप्रैल 2008 में सर्व शिक्षा अभियान के तहत आने वाले मदरसों को भी इससे जोड़ा गया।

धीरे-धीरे हुई बेहतर

2004 में मानव संसाधन एवं विकास मंत्रालय ने नई गाइडलाइंस जारी की। इसमें मिड-डे मील में कम से कम 300 कैलोरी और 8 से 12 ग्राम प्रोटीन होना जरूरी बताया। वहीं, सूखा प्रभावित इलाकों में गर्मी की छुट्टियों के दौरान छात्रों को पोषण सहायता दी जा रही है।

प्रभावी कार्यान्वयन में चुनौतियां

2015 की कैग रिपोर्ट के मुताबिक, कई बार पंजीकृत छात्रों की संख्या ज्यादा बताई जाती है, वित्तीय अनियमित्ता, खाने की खराब गुणवत्ता और पर्याप्त निगरानी का अभाव होता है।

सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च ने भी 2021 की अपनी एक रिपोर्ट में कहा है कि एमडीएम के लिए छात्रों की जो संख्या पीएबी के पास मंजूरी के लिए भेजी जाती है और वास्तविक छात्रों की संख्या में अतंर होता है। पश्चिम बंगाल और राजस्थान में मंजूरी से ज्यादा छात्रों को एमडीएम दिया गया। वहीं, हरियाणा (85 फीसद) और झारखंड (84 फीसद) में यह कम पाया गया है। बिहार और उत्तर प्रदेश में यह अंतर सबसे ज्यादा पाया गया है। 

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