जानिए लड़ाकू विमान तेजस को आसमान की ऊंचाई तक पहुंचाने वाले डॉ. कोटा हरिनारायण की कहानी

तेजस स्वदेश-निर्मित लड़ाकू विमान है। दुनिया के कुछ ही देश हैं जो खुद लड़ाकू विमान बनाते हैं एयरोनॅटिकल डेवलपमेंट एजेंसी और हिन्दुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड ने मिलकर किया इसका निर्माण 50 हजार फीट तक उड़ान भर सकता है। इसमें इजरायली मल्टी मोड रडार एल्टा 2032 डर्बी मिसाइल लगी है।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Publish:Fri, 15 Jan 2021 09:34 AM (IST) Updated:Fri, 15 Jan 2021 09:41 AM (IST)
जानिए लड़ाकू विमान तेजस को आसमान की ऊंचाई तक पहुंचाने वाले डॉ. कोटा हरिनारायण की कहानी
तेजस फोर्थ जनरेशन, लाइटवेट मल्टीरोल सुपरसोनिक सिंगल इंजन एयरक्राफ्ट है।

नई दिल्ली, जेएनएन। सरकार ने देश में बने 83 तेजस लड़ाकू विमानों की खरीदी को मंजूरी देकर नए अध्याय की शुरुआत की है। इसके तहत करीब 48,000 करोड़ रुपये की लागत से सरकार हिंदुस्तान एरोनॉटिक्स लिमिटेड (एचएएल) द्वारा निíमत फोर्थ प्लस जेनरेशन के 73 लड़ाकू तेजस विमान और 10 ट्रेनर विमान खरीदेगी। काफी लंबे इंतजार के बाद लड़ाकू विमानों के बेड़े में शामिल होने जा रहे तेजस को आकार देने वाले शख्सियत हैं डॉ. कोटा हरिनारायण..पढ़िए इनके बारे में।

एयरक्राफ्ट कार्यक्रम

वर्ष 1981 में दी गई इस रिपोर्ट के बाद लाइट कॉम्बैट एयरक्राफ्ट कार्यक्रम शुरू किया गया था। इसके दो लक्ष्य थे- एक था मिग -21 का उपयुक्त विकल्प तलाशना। दूसरा था घरेलू विमानन क्षमताओं की उन्नति। तलाश शुरू हुई लेकिन किसी भी संगठन के पास इस तरह के स्वदेशी विमान को विकसित करने की क्षमता नहीं थी। एचएएल ने वर्ष 1961 में मारुत नामक एक लड़ाकू विमान का निर्माण किया था लेकिन इसे एक जर्मन टीम द्वारा डिजाइन किया गया था। यह वर्ष 1990 तक सेना के बेड़े में रहा।

अमेरिकी पत्रिका ने उड़ाया था मजाक

भारत की स्वदेशी और स्वावलंबी बनने की आकांक्षा का दुनिया ने हर बार मजाक ही उड़ाया है। चाहे वह चंद्रयान अभियान हो या फिर लड़ाकू विमान तेजस बनाने की कल्पना। दिसंबर 2000 में एक अमेरिकी पत्रिका में प्रकाशित हुआ कि प्रौद्योगिकी जटिलता और अमेरिकी प्रतिबंधों के कारण भारत अब कभी भी अपने स्वयं के हल्के लड़ाकू विमान को उड़ाने में सक्षम नहीं होगा। एक साल के बाद चार जनवरी, 2001 को डॉ. कोटा हरिनारायण की अध्यक्षता वाली एक टीम ने उनके एलसीए टेक्नोलॉजी डेमोंस्ट्रेटर की पहली उड़ान का सफल परीक्षण किया। ..और इस तरह शुरू हुई तेजस की उड़ान।

1980 में की थी कल्पना

आजादी पाने के बाद भी पाकिस्तान, बांग्लादेश और चीन से युद्ध करते हुए यह महसूस होने लगा था कि देश को स्वदेशी लड़ाकू विमान की जरूरत है। लड़ाकू विमान मिग की पुरानी होती तकनीक और अपनी उम्र पूरी करने की स्थिति में विकल्प के तौर पर एक स्वदेशी विमान (आज का तेजस) की कल्पना ने जन्म लिया। वर्ष था 1980।

युवा डिजाइन इंजीनियर के रूप में आए डॉ. कोटा

वर्ष 1984 में सरकार ने हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड और अन्य संस्थानों के साथ कार्यक्रम को संभालने के लिए एरोनॉटिकल डेवलपमेंट एजेंसी की नियुक्ति की। उस समय वीएस अरुणाचलम रक्षा मंत्री के वैज्ञानिक सलाहकार थे। उन्होंने ओडिशा के एक युवा डिजाइन इंजीनियर को स्वदेशी विमान कार्यक्रम के निदेशक के रूप में चुना। यहां से परिदृश्य में आए डॉ. कोटा।

बेहतर कंप्यूटर का इंतजाम

अब टीम तो थी लेकिन डिजाइनिंग के लिए सही कंप्यूटर नहीं था। अमेरिका से लगातार चर्चा के बाद राष्ट्रपति रोनाल्ड रीगन को तेजस के डिजाइन कार्य के लिए आइबीएम 390 कंप्यूटर देने के लिए राजी कर लिया गया। हालांकि वर्ष 1990 के दौर में पोखरण परमाणु परीक्षण के बाद प्रतिबंध लगाने से काफी कठिनाई आई।

400 विज्ञानियों की टीम

1982 में हरिनारायण एचएएल के नासिक डिवीजन में मुख्य डिजाइनर के रूप में काम कर रहे थे, जब उन्हें पूर्व विज्ञानी अरुणाचलम ने वैमानिकी विकास एजेंसी के निदेशक के रूप में चुना। उस समय देश में पर्याप्त प्रतिभा नहीं थी। इसलिए उनका पहला कदम एयरोस्पेस इंजीनियरिंग के क्षेत्र में देश की सर्वश्रेष्ठ प्रतिभा को एक साथ लाना था। इस उद्देश्य के लिए उन्होंने आइआइटी जैसे 20 शैक्षणिक संस्थानों और 40 अनुसंधान और विकास प्रयोगशालाओं सीएसआइआर और एचएएल से इंजीनियरों, विज्ञानियों की भर्ती की।

यहां से शुरू होती है कहानी

यह कहानी शुरू होती है ओडिशा के जिले बहरामपुर के छोटे से गांव से। वर्ष 1943 में ओडिशा के बेरहामपुर जिले के बड़ा बाजार में जन्मे कोटा हरिनारायण ने अपनी स्कूली शिक्षा सिटी हाई स्कूल से पूरी की। बचपन से ही मेधावी रहे हरिनारायण ने इंजीनियरिंग को चुना। प्रवेश परीक्षा पास कर बनारस हिंदू विश्वविद्यालय से मैकेनिकल इंजीनियरिंग में डिग्री प्राप्त की। इसके बाद एयरोस्पेस इंजीनियरिंग में एक पाठ्यक्रम के लिए बेंगलुरु में भारतीय विज्ञान संस्थान में प्रवेश लिया। बाद में वह डिजाइन इंजीनियर के रूप में भारत के सबसे बड़े विमान-निर्माता कंपनी बेंगलुरू स्थित हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड में शामिल हो गए।

देरी से हुई थी आशंका

निर्माण में देर होने के कारण लगने लगा था कि तेजस एक सपना मात्र रह जाएगा। कुछ विशेषज्ञों ने यह आशंका जताई थी कि जब तक तेजस वायुसेना में शामिल होगा तब तक यह तकनीक बहुत पुरानी हो चुकी होगी।

आइआइटी-बीएचयू से विकसित हुई डा. कोटा की यांत्रिक कला

कोटा हरिनारायण वर्तमान में आइआइटी-बीएचयू में बोर्ड आफ गर्वनर के अध्यक्ष हैं। स्वतंत्रता सेनानी पिता की प्रेरणा से वह उड़ीसा के बहरामपुर से निकलकर वह वर्ष 1961 में आइआइटी-बीएचयू आ गए, जहां से उन्होंने मैकेनिकल इंजीनियरिंग में बी-टेक पूरा किया। उस दौरान आइआइटी-बीएचयू को बनारस इंजीनियरिंग कालेज बेनको के नाम से जाना जाता था। मैकेनिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई के दौरान ही उनमें हल्के-फुल्के यंत्रों और वस्तुओं को बनाने कला विकसित की थी। उन्होंने एयरक्राफ्ट बनाने की मूल इंजीनियरिंग यहीं से सीखी थी। वर्ष 2002 में वह बीएचयू की छात्र सम्मेलन में आए थे, तो कहा था कि बीएचयू मेरे लिए घर जैसा है। उनकी वैज्ञानिक गतिविधियों को देखते हुए ही उन्हें बीओजी का अध्यक्ष बनाया गया था।

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