कोरोना महामारी के चलते 70 साल से ज्यादा के कैदियों की रिहाई को मेधा पाटकर पहुंची सुप्रीम कोर्ट

मेधा पाटकर ने 70 साल से ज्यादा उम्र के कैदियों की तत्काल रिहाई के लिए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। उन्होंने कोरोना महामारी का हवाला देते हुए इस आयुवर्ग के बंदियों को अंतरिम जमानत अथवा आपातकालीन पैरोल पर रिहा करने के लिए निर्देश देने की मांग की है।

By TaniskEdited By: Publish:Sun, 20 Jun 2021 09:03 AM (IST) Updated:Sun, 20 Jun 2021 09:03 AM (IST)
कोरोना महामारी के चलते 70 साल से ज्यादा के कैदियों की रिहाई को मेधा पाटकर पहुंची सुप्रीम कोर्ट
70 साल से ज्यादा के कैदियों की रिहाई को मेधा पाटकर पहुंची सुप्रीम कोर्ट।

नई दिल्ली, एजेंसियां। सामाजिक कार्यकर्ता मेधा पाटकर ने 70 साल से ज्यादा उम्र के कैदियों की तत्काल रिहाई के लिए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। उन्होंने अपनी याचिका में कोरोना महामारी का हवाला देते हुए शीर्ष अदालत से इस आयुवर्ग के बंदियों को अंतरिम जमानत अथवा आपातकालीन पैरोल पर रिहा करने के लिए केंद्र व राज्यों को निर्देश देने की मांग की है। अधिवक्ता विपिन नैयर के जरिये दाखिल याचिका में पाटकर ने कहा, 'दक्षिण अफ्रीका के पूर्व राष्ट्रपति नेल्सन मंडेला ने कहा था कि कोई भी किसी राष्ट्र को तब तक सही मायने में नहीं जानता, जब तक कि वह वहां की जेलों के भीतर की हकीकत न जान ले।'

याचिका में राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़ों का हवाला देते हुए उन्होंने कहा कि देश की जेलों में बंद 50 वर्ष या उससे अधिक उम्र के कैदियों की संख्या 63,336 है जो कुल कैदियों का 13.2 प्रतिशत है। 16 मई तक राष्ट्रीय कारागार सूचना पोर्टल पर उपलब्ध जानकारी के मुताबिक 70 और इससे अधिक उम्र के 5,163 लोग जेल में बंद हैं। इनमें महाराष्ट्र, मणिपुर और लक्षद्वीप के आंकड़ें शामिल नहीं हैं।

मामले की संक्षिप्त पृष्ठभूमि देते हुए, याचिका में कहा गया है कि शीर्ष अदालत ने 23 मार्च, 2020 को राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को उच्चाधिकार प्राप्त समितियां (HPCs) का गठन करने का निर्देश दिया था, ताकि उन कैदियों की श्रेणी का निर्धारण किया जा सके जिन्हें आपातकालीन पैरोल या अंतरिम जमानत पर रिहा किया जा सकता है।

याचिका में यह भी कहा गया है कि 13 अप्रैल, 2020 को अदालत ने स्पष्ट किया कि उसने राज्यों / केंद्र शासित प्रदेशों को कैदियों को उनकी संबंधित जेलों से अनिवार्य रूप से रिहा करने का निर्देश नहीं दिया था। पहले के निर्देश का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना था कि देश में वर्तमान महामारी के प्रकोप के संबंध में राज्य / केंद्र शासित प्रदेश अपनी जेलों की स्थिति का आकलन कर सकें और कुछ कैदियों को रिहा कर सकें और इस उद्देश्य के लिए रिहा किए जाने वाले कैदियों की श्रेणी निर्धारित कर सकें। 

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