जन्म देने वाली मां से ज्यादा हक पालने वाली मां का, दो महिलाओं के विवाद में मद्रास हाईकोर्ट का अहम फैसला

हाईकोर्ट में जस्टिस पीएन प्रकाश और जस्टिस आर हेमलता की पीठ ने मामले की सुनवाई कर आदेश पारित किया। हाईकोर्ट ने सलेम की बाल कल्याण समिति को परेशानहाल बच्ची को उसकी पालक मां सत्या को अविलंब सौंपने का निर्देश दिया।

By Dhyanendra Singh ChauhanEdited By: Publish:Sat, 27 Nov 2021 09:35 PM (IST) Updated:Sat, 27 Nov 2021 10:35 PM (IST)
जन्म देने वाली मां से ज्यादा हक पालने वाली मां का, दो महिलाओं के विवाद में मद्रास हाईकोर्ट का अहम फैसला
दस साल की बच्ची की सिपुर्दगी पालक मां को देने का आदेश

चेन्नई, प्रेट्र। तमिलनाडु में दस वर्ष की बच्ची को लेकर दो मां आमने-सामने आ गई हैं। लेकिन मद्रास हाईकोर्ट ने साफ कर दिया है कि जन्म के कुछ दिन बाद से ही लालन-पालन करने वाली मां से बच्ची को अलग नहीं किया जा सकता, भले ही महिला ने उसे जन्म न दिया हो। लेकिन बच्ची को जन्म देने वाली मां, पिता और अन्य रिश्तेदार सप्ताह में एक बार उससे मिल सकेंगे।

हाईकोर्ट ने कहा है कि बच्ची उसी महिला के पास रहेगी जिसने उसे गोद लिया और दस साल से बतौर मां उसकी देखभाल कर रही है। बच्ची जन्म देने वाली मां सारण्या की दूसरी बेटी है जिसे उसने जन्म के 100 दिन बाद ही अपनी ननद (पति की बहन) सत्या को गोद दे दिया था। इसके बाद बच्ची दस साल से गोद लेने वाली मां सत्या के पास ही रह रही थी। हाईकोर्ट में जस्टिस पीएन प्रकाश और जस्टिस आर हेमलता की पीठ ने मामले की सुनवाई कर आदेश पारित किया। हाईकोर्ट ने सलेम की बाल कल्याण समिति को परेशानहाल बच्ची को उसकी पालक मां सत्या को अविलंब सौंपने का निर्देश दिया। बच्ची को लेकर पैदा हुए विवाद के बीच प्रशासन ने उसे समिति की देखभाल में रखवा दिया था।

मामला सोशल मीडिया में छाने के बाद हाईकोर्ट ने लिया संज्ञान

पीठ ने अपने आदेश में एक बात और साफ कर दी है कि बच्ची के बालिग होने तक उसे जन्म देने वाली मां सारण्या और पिता शिवकुमार उसे साथ रखने के लिए किसी तरह का अधिकार नहीं जता सकेंगे। विवाद की शुरुआत सत्या के पति रमेश की 2019 में कैंसर से मौत के बाद हुई। सारण्या ने सत्या से अपनी बेटी मांगी। जब मामला पुलिस थाने पहुंचा तो बच्ची को सलेम की बाल कल्याण समिति में रखवा दिया गया। इसके बाद दोनों पक्षों ने हाईकोर्ट में बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका दायर कर बच्ची की सिपुर्दगी दिए जाने की मांग की। इसके बाद हाईकोर्ट की जुवेनाइल जस्टिस कमेटी के चेयरमैन जस्टिस प्रकाश से मामले में हस्तक्षेप करने की मांग उठने लगी। मामला सोशल मीडिया में छाया। तब हाईकोर्ट ने मामले का संज्ञान लेकर आदेश पारित किया है।

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