आइए हम सब बनें ऐसे योद्धा, जो अपनी बेड़ियों-बंधनों से मुक्ति का संकल्प लें

आइए हम सब बनें ऐसे योद्धा जो अपनी बेड़ियों-बंधनों से मुक्ति का संकल्प लेकर संभावनाओं के खुले आसमान में उड़ान भरने को तैयार हो जाएं।

By Prateek KumarEdited By: Publish:Thu, 13 Aug 2020 11:48 AM (IST) Updated:Thu, 13 Aug 2020 12:04 PM (IST)
आइए हम सब बनें ऐसे योद्धा, जो अपनी बेड़ियों-बंधनों से मुक्ति का संकल्प लें
आइए हम सब बनें ऐसे योद्धा, जो अपनी बेड़ियों-बंधनों से मुक्ति का संकल्प लें

नई दिल्ली [सीमा झा]। रवींद्रनाथ टैगोर की महान रचना ‘गीतांजलि’ से ली गई यह पंक्ति (मन हो निर्भय, मस्तक हो ऊंचा…) कवि के विराट संकल्प की बानगी है। स्वतंत्रता दिवस के मौके पर यह हमें एक महान संदेश भी देती है। संदेश यह है कि स्वतंत्रता दिवस जश्न में भावुक होकर देशभक्ति गीत गाने का पर्व बन कर ही रह जाए, न ही आजादी के शूरवीरों के गुणगान तक सीमित। सही मायने में इसका महान उद्देश्य तब पूरा होगा, जब हम खुद को अपनी ही बेड़ियों से मुक्त करें। वर्तमान संकट भी एक युद्ध माना गया है। आइए हम सब बनें ऐसे योद्धा, जो अपनी बेड़ियों-बंधनों से मुक्ति का संकल्प लेकर संभावनाओं के खुले आसमान में उड़ान भरने को तैयार हो जाएं। क्या है अपनी बेड़ियों से मुक्त होने का अर्थ और कैसे संभव है यह? विशेषज्ञों से बातचीत के आधार पर बता रही हैं सीमा झा...

पढ़िए फोटोग्राफर की कहानी

एक फोटोग्राफर ने अपने स्टूडियो के प्रवेशद्वार पर एक तख्ती टांग रखी थी। उसमें तस्वीरें बनवाने की दरें लिखी थीं। यह तीन अलग-अलग वर्ग के लिए था। पहला-अगर आप वैसी तस्वीर बनवाना चाहते हैं जैसे कि आप हैं, तो इसकी कीमत पांच रुपये। वैसा तस्वीर चाहते हैं जैसे कि आप लोगों को दिखाई पड़ते हैं, तो कीमत दस रुपये। और अगर वैसी तस्वीर चाहते हैं जैसा कि आप सोचते हैं कि आपको होना चाहिए, तो इसकी कीमत पंद्रह रुपये। एक व्यक्ति की स्टूडियो के बाहर की उस तख्ती पर नजर पड़ी। इस पर उसने फोटोग्राफर से सवाल करने शुरू कर दिए। जैसे, क्या फोटो भी तीन तरह के होते हैं, इसकी तो मैंने कल्पना भी नहीं की। मैं तो बस एक ही तरह के फोटो के बारे में सोचता था जैसा मैं हूं, वैसी तस्वीर। क्या नंबर दो और नंबर तीन के फोटो बनवाने वाले लोग भी यहां आते हैं? इस पर फोटोग्राफर ने जवाब देते हुए कहा, ‘महाशय! आप पहले आदमी हैं जो नंबर एक की तस्वीर बनवाने की सोच रहे हैं। अब तक तो दूसरे और तीसरे ही लोग आते रहे हैं यहां। कोई वैसी तस्वीर नहीं उतरवाना चाहता जैसा कि वह है। है न रोचक बात और बड़ी जानी-पहचानी सी? क्या आप भी दूसरी तस्वीरों के बारे में ही अधिक सोचते हैं, जो आप हैं ही नहीं क्योंकि खुद को आप अनेक बेड़ियों में जकड़ा हुआ महसूस करते हैं। और तो और, आपको डर भी लगता है अपनी बेड़ियों से आजाद होने में, इसलिए इनसे छूटने की कोशिश भी नहीं करते। बस यूं ही इनके साथ चलते जाते हैं!

ये कैसा बंधन!

क्या हैं ये अपनी बेड़ियां और यहां किन बंधनों से आजाद होने की बात हो रही है? दरअसल, ये हमारे मन के वे भाव हैं जो अक्सर हम भीतर गहरे महसूस करते हैं। जैसे, औरों की तरह सफल होने की इच्छाएं, अपेक्षाएं, ईर्ष्या , प्रतिस्पर्धा, क्रोध, संदेश, आशंकाएं, औरों ने मुझे ऐसा क्यों कह दिया, यह होता तो अच्छा होता आदि तमाम नकारात्मक भाव ही मन की बेड़ियां हैं। आपने महसूस किया होगा कि ये बड़ी ताकतवर होती हैं। ये वैसा नहीं करने देतीं जो आप करना चाहते हैं। पर गौर करें, महापुरुषों ने सर्वप्रथम खुद को अपनी ही बनायी बेड़ियां से आजाद किया और ताउम्र इसी महान कोशिश में लगे रहे। भगत सिंह ने यदि यह कहा कि मैं भी महात्वाकांक्षा, आशा और आकर्षण से भरा हूं पर जरूरत पड़ने पर इन सबका परित्याग कर सकता हूं तो यह उनके फौलादी संकल्प‍ की आवाज ही तो है जो उन्हें अपनी बेड़ियां से आजाद करती है। वह एक मुक्त‍ मन है, जिसे बाहरी ताकतें जल्दीं प्रभावित नहीं कर सकतीं। आइए इस बार आजादी के जश्ऩ के मौके पर उन शूरवीरों की जिजीविषा और संकल्प को समझने का प्रयास करें और फिर अपने मन को मुक्त करने के अभियान की शुरुआत कर दें। 

भावनाओं पर नियंत्रण
जीवन कई बार रहस्यवादी तरीके से पेश आता है। जब आपको लगता है जो आपने नहीं सोचा, दूर-दूर तक जिसकी कल्पना नहीं की वही हो रहा। जैसे कभी अपने अजीज दोस्त से जो अपेक्षा नहीं की थी, उसने वैसा व्यवहार किया, घर पर छोटे भाई-बहन ने कुछ ऐसा कह दिया जो मन को घायल कर गया। बॉस ने दफ्तर में आपके प्रोजेक्ट को सिरे से नकार दिया जिसे आपने बड़ी मेहनत से बनाया था। क्या होता है ऐसे समय में? आपका मन आहत होता है और जज्बा कुचल गया सा महसूस होता है। पर गौर करने की बात यह भी है कि आप इस तरह की भावनाओं को कुछ ही समय में नियंत्रित कर लेते हैं, क्योंकि मन में भरोसा है कि इन बाहरी चीजों पर आपका नियंत्रण नहीं। हालांकि साइकोथेरेपिस्ट और एनर्जी हीलर डॉक्टर चांदनी टग्नैत के मुताबिक, सब ऐसा नहीं कर पाते, क्योंकि इन ताकतवर नकारात्मक भावों के आगे वे हार मान जाते हैं। डॉ. टग्नैत कहती हैं, ‘मन से मुठभेड़ थका देता है लेकिन आपको हार नहीं माननी है। अपनी ऊर्जा को सकारात्मक मोड़ दें। इसके लिए रोज काम करें। ध्यान, योग और सरल जीवनशैली की सलाह इसलिए आम है लेकिन कितने लोग इसपर अमल कर पाते हैं?’ यह सही समय है जब हमें इस पर मंथन करना है।

समझें मौलिकता का मूल्य

एंटोनिएटा रोजी, योग गुरु, इटली (प्रधानमंत्री योग पुरस्कार 2019 की विजेता) ने बताया कि पारंपरिक योग सिखाते हुए चार दशक बीत गए। लोग पूछते हैं कि पारंपरिक योग ही क्यों तो उनसे कहती हूं क्योंकि यह मेरा मार्ग है और इस पर मुझे भरोसा है। खुशी है कि लोगों के जीवन में इससे बदलाव आ रहे हैं। मैं खुद जिनसे सबसे अधिक प्रभावित हूं, जिन्होंने मेरे संकल्प को मजबूत बनाने में योगदान दिया, वे बापू (महात्मा गांधी) हैं। भारत आने के बाद गांधी से जुड़े स्थलों पर जरूर जाती हूं। वहां आंखें बंद करूं तो एक सरल व्यक्ति मिलता है, जिसका व्यक्तित्व विराट है और जो मौलिक बनने का संदेश दे रहा है। बेशक इंसान अपने मौलिक रूप में रहते हुए जगत में बड़े बदलाव ला सकता है। मुक्ति के लिए हमें अपने भीतर उतरना ही होगा और मानवीय कमजोरियों-बुराइयों पर विजय पाने का प्रयास करना होगा।

ज्ञान वही, जो मुक्त करे बेड़ियों से

ईला भट्ट, गांधीवादी चिंतक और कुलपति, गुजरात विद्यापीठ ने बताया कि आज मैं पहले की तरह तो सक्रिय नहीं, लेकिन युवाओं से मेरा संवाद लगातार कायम है। देश-विदेश के युवाओं से नियमित बातचीत के दौरान यही कहती हूं कि जीवन केवल जीविकोपार्जन के लिए ही नहीं है। हमें खुद को इस यांत्रिक व्यवस्था से मुक्त करना है। आपको अनुयायी नहीं बनना, न किसी का अनुसरण करना है बल्कि अपनी राह खुद बनाने का सतत प्रयास करना है। चाहे वे अपने ही क्यों न हों, आप अपनी तर्कशक्ति से उनका भी खंडन कर सकते हैं। उधार की सीख से आत्मशक्ति का अनुभव नहीं होगा। ज्ञान वही है जो आपके भीतर तरंग पैदा करे और आपको अपनी बेड़ियों से मुक्त कर दे।

हमने खुद को चहारदीवारी में कैद कर लिया

फिल्म अभिनेता शेखर कपूर ने ट्विटर के माध्यम से बताया कि आप खुद की रक्षा के लिए दीवारों का निर्माण करते हैं। फिर पाते हैं कि आपने खुद को अपनी ही बनाई चहारदीवारी में कैद कर लिया है। तोड़ डालिए इन दीवारों को और एक बार फिर जीवंत हो जाइए। 

जो होते हैं मु‍क्त मन कॉर्नेल यूनिवर्सिटी के अध्ययन के मुताबिक वे पैसों को भौतिक चीजों से अधिक जीवन अनुभवों के संग्रह पर खर्च करते हैं। समारोहों में जाना पसंद होता है पर उन्हें अपना साथ सबसे अधिक भाता है। नई चीजों को सीखने में आनंद पाते हैं और यह यकीन होता है कि ज्ञान की कोई सीमा नहीं। लोगों के मतों से अपनी ऊर्जा को प्रभावित नहीं होने देते। बंद राहों में भी नए विकल्प तलाश लेते हैं। चाहे जिंदगी कितनी ही मुश्किल भरी हो, हंसने का बहाना तलाश ही लेते हैं। प्रतिस्पर्धा नहीं करते बल्कि उनमें अपना बेस्ट करने की भूख होती है। बेहतरीन जीवन जीने में यकीन करते हैं। सबसे प्रेम और बेहतर संबंध को अहमियत देते हैं।

कैसे बनें वह योद्धा भय का सामना करें। आईने के सामने खड़े होकर अपनी आंखों में देखें। आपको उसमें अपना अक्स दिखेगा और अपना गुण भी। उन गुणों को भीतर उतारें और उन्हें जीना शुरू करें। कहते हैं न आंखें मन का आईना हैं। अब उस पर काम करने की जरूरत है। कुछ नया करने के लिए तैयार रहें। किस युद्ध के लिए आपको तैयार होना है, क्या है वह जिसकी सबसे अधिक जरूरत है जीवन में, उसमें पूरी शक्ति से जुट जाएं। अपने लक्ष्यों को जानें। उसके प्रति लगातार सजग रहें। अनुशासित रहें। यही आगे बढ़ने और बेडि़यों से बाहर आने की कुंजी है। अपना सम्मान करें, तभी आप औरों का सम्मान भी कर सकेंगे।

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