जानिए बीएसएफ की ऊंटों की टुकड़ी का कितनी ड्रेसों से किया जाता है श्रृंगार

राजपथ पर परेड में शामिल होने के अलावा बीएसएफ की ऊंटों की इन टुकड़ी को कई बार विदेशी मेहमानों का स्वागत और उनका सम्मान करने के लिए भी बुलाया जाता है।

By Vinay TiwariEdited By: Publish:Sun, 26 Jan 2020 02:15 PM (IST) Updated:Sun, 26 Jan 2020 02:15 PM (IST)
जानिए बीएसएफ की ऊंटों की टुकड़ी का कितनी ड्रेसों से किया जाता है श्रृंगार
जानिए बीएसएफ की ऊंटों की टुकड़ी का कितनी ड्रेसों से किया जाता है श्रृंगार

नई दिल्ली [जागरण स्पेशल]। रेगिस्तान का जहाज कहे जाने वाले ऊंटों की भारतीय सेना की बीएसएफ में अपनी अलग ही पहचान है। ऊंटों की ये टोली सीमा की सुरक्षा में तैनात रहने के अलावा राजपथ पर होने वाली परेड में भी हिस्सा लेकर अपनी महत्ता दिखाती है। राजपथ पर परेड में शामिल होने के अलावा बीएसएफ की ऊंटों की इन टुकड़ी को कई बार विदेशी मेहमानों का स्वागत और उनका सम्मान करने के लिए भी बुलाया जाता है। अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा के स्वागत और सम्मान के लिए भी इन ऊंटों की टुकड़ी को बुलाया गया था। 

राजपथ के बाद बीटिंग द रिट्रीट में लेते हैं हिस्सा 

राजपथ पर अपनी मस्त धुनों पर चलने के अलावा ये ऊंट तीन दिन बाद यानि 29 जनवरी को होने वाली बीटिंग द रिट्रीट सेरेमनी का भी हिस्सा बनते हैं। इस दौरान ऊंटों का ये दल रायसीना हिल पर उत्तर और दक्षिण ब्लॉक की प्राचीर पर खड़े दिखाई पड़ते हैं। इकलौता ऊंट दस्ता दुनिया का यह इकलौता ऊंट दस्ता है जो न केवल बैंड के साथ राजपथ पर प्रदर्शन करता है बल्कि सरहद पर रखवाली भी करता है। 

Delhi: The Camel Contingent of Border Security Force under the command of Deputy Commandant Ghanshyam Singh. BSF's motto is ‘Duty unto Death’; There are over 75 different dress items which are necessary to ceremonially dress the camels and riders of the Force pic.twitter.com/PtfjTzZFL1

— ANI (@ANI) January 26, 2020

1976 में पहली बार 90 ऊंटों की टुकड़ी हुई थी शामिल 

पहली बार 1976 में 90 ऊंटों की टुकड़ी पहली बार 1976 में गणतंत्र दिवस का हिस्सा बनी थी, जिसमें 54 ऊंट सैनिकों के साथ और शेष बैंड के जवानों के साथ थे। ऊंटों का दलबीएसएफ देश का अकेला ऐसा फोर्स है, जिसके पास अभियानों और समारोह दोनों के लिए सुसज्जित ऊंटों का दल है। शाही और भव्य अंदाज में सजे ‘रेगिस्तान के जहाज’ ऊंट को सीमा सुरक्षा के लिए तैनात किया जाता है और पहली बार यह ऊंट दस्ता सन 1976 में इस राष्ट्रीय पर्व की झांकी का हिस्सा बना था। इससे पहले सन 1950 से इसकी जगह सेना का ऐसा ही एक दस्ता गणतंत्र दिवस परेड का हिस्सा था। 

बैंड और हथियारबंद सैनिकों का होता है दस्ता 

ऊंट दस्ते में शामिल एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि बीएसएफ ऊंट दस्ता हर साल 26 जनवरी को राजपथ पर होने वाली परेड का एक अभिन्न हिस्सा था। इसमें दो दस्ते होते थे, एक 54 सदस्यीय सैनिकों का दस्ता तो दूसरा 36 सदस्यीय बैंड का दस्ता। पहला दस्ता ऊंट पर सवार हथियारबंद बीएसएफ सीमा सैनिकों का होता था, दूसरा दस्ता ऊंट पर सवार रंग-बिरंगी पोशाकों में सजे बैंड‍्समैन का होता था।

इतिहास 

BSF ऊंट की टुकड़ी बीकानेर रॉयल कैमल फोर्स की विरासत का उत्तराधिकारी है, जिसे 'गंगा रिसाला' के रूप में जाना जाता है। यह राजस्थान के सीमावर्ती शहर जैसलमेर में हर साल यह 1 दिसंबर को बीएसएफ के स्थापना दिवस कार्यक्रम में भाग लेने के लिए दिल्ली आता है। उसके बाद गणतंत्र दिवस की परेड में हिस्सा लेते हैं फिर वापस चले जाते हैं। बीएसएफ देश की सबसे बड़ी सीमा सुरक्षा बल है जो 1965 में उठाया गया था और इसे मुख्य रूप से पाकिस्तान और बांग्लादेश के साथ भारतीय सीमाओं को सुरक्षित करने का काम सौंपा गया है। 

 

ऊंटों की टुकड़ी का इतिहास

ऊंटों का दस्ता बीकानेर के तात्कालीन शासक राव बीकाजी ने 1465 में शुरू किया था। महाराजा गंगासिंह ने 500 ऊंटों के दस्ते को युद्ध के साथ मनोरंजन में भी शामिल किया था। उन्हीं की ओर से फौज को ऊंटों का ये दस्ता भेजा गया था।

1948 में भारतीय सेना में ऊंट दस्ते को शामिल कर लिया गया।

1975 में भारतीय सेना ने इसे बीएसएफ को सुपुर्द कर दिया।

1976 में बीएसएफ के अधिकारी के एस राठौड़ ने इस ऊंट दस्ते को मनोरंजन से जोडऩे की ठानी।

1986 में उन्होंने असिस्टेंट कमांडेंट तखतसिंह व मोतीसिंह को घोड़ों की तरह ऊंटों को भी करतब का प्रशिक्षण प्रारंभ किया।

1990 में ऊंट दस्ता और मांउटेंड बैंड राजपथ पर प्रदर्शन को शामिल किया गया, तब से लगातार यह दस्ता राजपथ परेड का हिस्सा बन रहा है।

2016 में गूगल ने अपने डूडल में इस दस्ते को स्वतंत्रता दिवस पर दिखाया।

1948, 1965 और 1971 की लड़ाई में ऊंट शामिल थे और इससे पहले प्रथम वर्ल्ड वार में भी। 

दुल्हन की तरह किया जाता श्रृंगार 

परेड में शामिल किए जाने वाले इन ऊंटों का श्रृंगार दुल्हन की तरह किया जाता है। पांव से लेकर गर्दन और पीठ पर इनको सजाने के लिए सामग्रियां ररखी जाती है। उसके बाद इनके ऊपर बीएसएफ के जवान भी मूंछों पर ताव देते हुए और शाही वेश में बैठते हैं।

ऊंटों के आकर्षक करतब 

दो ऊंटों पर एक जवान की सवारी, ऊंट पर सवार का नजर नहीं आना, पणिहारी का ऊंट पर कलश के साथ, ऊंट पर ही बैठकर खाना और नाश्ता करना और दूल्हा दुल्हन की ऊंट पर सवारी ऐसे करतब है जो इनको और भी खास बनाते है।

जवानों का गाना बजाना भी गजब का 

बीएसएफ के जवान अकसर सीमा पर रहते है और संसाधनों की कमी भी रहती है। ऐसे में यहां मौजूद डिब्बे, तगारी, मटकी, सांकल, गेंती, खुरपी, बाल्टी, चम्मच को ही साज की तरह बजाते हैं।

गजब का प्रशिक्षण 

इन ऊंटों को दिए गए प्रशिक्षण का ही यह नतीजा होता है जो ये इतने बेहतर तरीके से इनका प्रदर्शन कर पाते हैं। ऊंटों के साथ बीएसएफ का दोस्ताना व्यवहार रहता है और उसके बाद इनके साथ रहकर इनको अपने जैसे ढालने का प्रशिक्षण दिया गया।

अलग-अलग ड्रेस 

चूंकि इन ऊंटों के दस्ते का प्रयोग अलग-अलग समारोहों के मौके पर भी किया जाता है इस वजह से इनके पास ड्रेस का भी खजाना होता है। अलग-अलग मौकों के लिए इनके पास लगभग 65 ड्रेसें मौजूद हैं। विदेशी राजनयिकों के आने पर ये उस तरह की ड्रेस पहनते हैं और गणतंत्र दिवस जैसे समारोह के लिए अलग ड्रेस पहनते हैं। 

ऊंटों पर बैठने वाले जवान 

और तो और इन ऊंटों पर बैठने वाले जवान भी खास होते हैं। इनकी ऊंचाई 6 फुट या उससे अधिक होती है। सीएसएफ ऐसे जवानों का चयन इस तरह के मौकों के लिेए करती है। ये जवान ऐसी परेड के मौकों पर दिख जाते हैं।

जवानों की मूंछें भी होती खास 

इस ऊंट बटालियन की एक खास बात और है। इन ऊंटों पर बीएसएफ के जो जवान बिठाए जाते हैं उनकी मूंछें भी सामान्य नहीं होती है। सभी की मूंछें ऊपर की ओर उठी हुई होती है जिससे इनको पहचाना जाता है। इनके गालों पर बढ़ी मूंछों को गलमुच्छा भी कहा जाता है।

रंग-बिरंगे दस्ते 

ऊंटों के रंग-बिरंगे दस्ते का कोई जवाब नहीं है। करीब 40 सालों से यह ऊंट दस्ता परेड में शामिल होकर गणतंत्र दिवस की रौनक बढ़ाता रहा है।  

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