आखिर क्यों पेट्रोल-डीजल को जीएसटी में लाने को राजी नहीं हो रहीं सरकारें? जानें क्या है कारण

जीएसटी काउंसिल की हालिया बैठक के फैसलों से पेट्रोल व डीजल की कीमतों में राहत की सारी उम्मीदें फिलहाल खत्म हो गई है। पेट्रोल और डीजल को जीएसटी के दायरे में लाना तकरीबन सभी राज्यों की सहमति से लंबे समय के लिए ठंडे बस्ते में चला गया है।

By TaniskEdited By: Publish:Sat, 18 Sep 2021 09:53 PM (IST) Updated:Sat, 18 Sep 2021 09:53 PM (IST)
आखिर क्यों पेट्रोल-डीजल को जीएसटी में लाने को राजी नहीं हो रहीं सरकारें? जानें क्या है कारण
सरकारें पेट्रोल-डीजल को जीएसटी में लाने को राजी नहीं। (फाइल फोटो)

जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। जीएसटी काउंसिल की हालिया बैठक के फैसलों से पेट्रोल व डीजल की कीमतों में राहत की सारी उम्मीदें फिलहाल खत्म हो गई है। पेट्रोल और डीजल को जीएसटी के दायरे में लाना तकरीबन सभी राज्यों की सहमति से लंबे समय के लिए ठंडे बस्ते में चला गया है। वहीं केंद्र के लिए भी पेट्रो राजस्व में कटौती वहन करना मुश्किल है। यानी पेट्रोल डीजल की कीमत में बड़ी राहत की संभावना नहीं है। शनिवार को नई दिल्ली में पेट्रोल की खुदरा कीमत 101.19 रुपये प्रति लीटर थी। इसमें 32.90 रुपया केंद्र के खजाने में जाता है जबकि दिल्ली सरकार 23.35 रुपये प्रति लीटर वसूल रही है।

प्रति लीटर डीजल के लिए एक आम ग्राहक 88.62 रुपये दे रहा है जिसमें 31.80 रुपये केंद्र और 12.96 रुपया राज्य सरकार वसूल रही है। केंद्र से जो कर संग्रह किए जाते हैं, उसका भी एक हिस्सा राज्यों को मिलता है। राज्यों की हिस्सेदारी उनकी तरफ से लगाए अलग-अलग बिक्री कर की दरों से तय होती है। अब दिल्ली में पेट्रोल व डीजल पर पर बिक्री कर की दर क्रमश: 30 फीसद व 16.75 फीसद है। लेकिन मध्य प्रदेश में पेट्रोल पर 33 फीसद का वैट, 4.50 रुपये प्रति लीटर का अतिरिक्त वैट व एक फीसद सेस लगाया जाता है।

इसी तरह से वहां डीजल पर 22 फीसद वैट, तीन रुयये का अतिरिक्त वैट व एक फीसद टैक्स लगाया जाता है। राजस्थान इन दोनो पर 36 फीसद और 26 फीसद वैट भी लगाता है और भारी भरकम सड़क विकास अधिभार भी वसूलता है। उत्तर प्रदेश सरकार पेट्रोल पर 26 फीसद या 18.74 रुपये (दोनो में जो ज्यादा हो) व डीजल पर 17.48 फीसद या 10.41 रुपये प्रति लीटर (जो भी ज्यादा हो) वैट लगाती है।

वर्ष 2020-21 में राज्यों का कुल बिक्री कर संग्रह 3,42,236 करोड़ रुपये

तीन दिन पहले आरबीआइ की तरफ से जारी आंकड़ों के आधार पर देखें तो पिछले तीन वित्त वर्षों में सभी राज्यों के कुल बिक्री कर व वैट संग्रह में पेट्रोलियम उत्पादों से हासिल राजस्व का हिस्सा क्रमश: 70 फीसद, 64.5 फीसद और 59 फीसद है। वर्ष 2020-21 में राज्यों का कुल बिक्री कर संग्रह 3,42,236 करोड़ रुपये रही है, जिसमें से पेट्रोलियम उत्पादों की हिस्सेदारी 2,02,937 करोड़ यानी 59.3 फीसद रही है। इसके पीछे के दो लगातार वित्त वर्षों में कुल बिक्री कर संग्रह की राशि 3,10,839 करोड़ रुपये 2,88,683 करोड़ रुपये रही, जबकि इसमें पेट्रोलियम उत्पादों से वसूल बिक्री कर का हिस्सा क्रमश: 2,00,493 करोड़ रुपये और 2,01,265 करोड़ रुपये रहा।

राज्यों के अलावा केंद्र के खजाने में भी पेट्रो उत्पादों से खूब कमाई होती है

राज्यों के अलावा केंद्र के खजाने में भी पेट्रो उत्पादों से खूब कमाई होती है। वर्ष 2020-21 में 3,71,726 करोड़ रुपये, 2019-20 में 2,33,057 करोड़ रुपये, 2018-19 में 2,14,369 करोड़ रुपये का उत्पाद शुल्क सिर्फ पेट्रोल व डीजल से वसूला गया था। केंद्र सरकार की तरफ से अभी पेट्रोल पर 1.40 रुपये का अतिरिक्त कस्टम डयूटी, 11 रुपये विशेष कस्टम ड्यूटी, 2.50 रुपये की एक अन्य ड्यूटी तथा 18 रुपये की अतिरिक्त कस्टम ड्यूटी लगाई जाती है।

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