जानिए 'हर्ड इम्युनिटी' से कोरोना संक्रमण के खिलाफ जंग में कहां तक जागरुक हैं हम

डॉ. दीपक कुमार ने बताया कि इन दिनों यह मुद्दा बहुत गर्म है कि क्या किसी प्रभावी वैक्सीन की गैरमौजूदगी में कोरोना वायरस के खिलाफ हर्ड इम्युनिटी साबित हो सकती है कारगर...

By Sanjay PokhriyalEdited By: Publish:Fri, 19 Jun 2020 08:40 AM (IST) Updated:Fri, 19 Jun 2020 08:40 AM (IST)
जानिए 'हर्ड इम्युनिटी' से कोरोना संक्रमण के खिलाफ जंग में कहां तक जागरुक हैं हम
जानिए 'हर्ड इम्युनिटी' से कोरोना संक्रमण के खिलाफ जंग में कहां तक जागरुक हैं हम

नई दिल्ली, जेएनएन। Herd Immunity कोरोना संक्रमण के खिलाफ वैक्सीन पर प्रयोग जारी है, लेकिन ये कितनी कारगर होगी और कब तक भारत पहुंचेगी, इस पर पक्के तौर पर कुछ कहा नहीं जा सकता। ऐसे में कुछ वैज्ञानिक कोरोना संक्रमण के खिलाफ हर्ड इम्युनिटी यानी सामूहिक रोग प्रतिरोधक क्षमता को लेकर उम्मीद जता रहे हैं। सामुदायिक प्रतिरोधक क्षमता, जनसंख्या प्रतिरोधक क्षमता या सामाजिक प्रतिरोधक क्षमता के रूप में पहचानी जाने वाली हर्ड इम्युनिटी सालों पुरानी संकल्पना है। जानें क्‍या कहते है डॉ. दीपक कुमार पब्लिक हेल्थ एक्सपर्ट।

हर्ड इम्युनिटी दो तरीकों से शरीर में बनती है। पहला, जब हम किसी रोग से संक्रमित होते हैं तो शरीर इसके खिलाफ स्वत: ही प्रतिरोधक क्षमता विकसित करने लगता है। कई लोगों में यह कुदरती प्रक्रिया दोहराई जाती है जिससे हर्ड इम्युनिटी की श्रंखला बन जाती है। इसी तरह दूसरे तरीके में, दवाओं और इलाज की मदद से कृत्रिम प्रतिरोधक क्षमता भी विकसित हो जाती है। इलाज के बाद स्वस्थ होने वाला व्यक्ति भी उस श्रंखला में शामिल हो जाता है। दोनों प्रकार से बनने वाली इस श्रंखला से हर्ड इम्युनिटी का सुरक्षा आवरण बढ़ता जाता है।

बात अगर आज के परिदृश्य में करें तो भारत में कोविड-19 की पकड़ अन्य देशों की अपेक्षा नियंत्रण में ही है। ठीक हो रहे मरीजों के अलावा कई ऐसे लोग भी हैं जिनकी प्रतिरोधक क्षमता ने कोरोना वायरस को मात दे दी। ऐसे में कुल मिलाकर हर्ड इम्युनिटी का आवरण धीरे-धीरे स्वत: बढ़ रहा है। इसमें बीते दिनों बरती गई सावधानियों ने खासी जिम्मेदारी निभाई है। अनलॉक-1 के बावजूद इनका सजगता से पालन हर्ड इम्युनिटी के प्रतिशत में इजाफा करने में अहम भूमिका निभाएगा। तार्किक दृष्टि से इसमें कोई संदेह नहीं कि जिस प्रकार संक्रमण का अंदेशा अधिक है, ठीक वैसे ही हर्ड इम्युनिटी अन्य देशों की अपेक्षा यहां तेजी से काम आ सकती है। मगर सहजबोध कहता है कि इसमें बड़ा जोखिम भी है।

सरकारें और समाज कृपया ध्यान दें कि हर्ड इम्युनिटी का आवरण बनाने के लिए किसी प्रकार का जोखिम लेने की जरूरत नहीं है। भारत में मेडिकल सुविधाएं कम हैं। ऐसे में पर्याप्त सुविधाएं हासिल होने तक कहीं न कहीं नुकसान ज्यादा हो सकता है साथ ही दूसरे देशों के मुकाबले जनसंख्या घनत्व अधिक होने के चलते संक्रमण का खतरा भी काफी है। जो लोग एक बार इसका इलाज करवाकर स्वस्थ हो चुके हैं, वे भी इस गलतफहमी में न रहें कि उनको दोबारा संक्रमण होने की संभावना खत्म हो चुकी है। ठीक होना किसी भी प्रकार का ‘रिस्क फ्री सर्टिफिकेट’ या ‘इम्युनिटी पासपोर्ट’ नहीं है। ऐसे में पूरी सावधानी के साथ अपनी प्रतिरोधक क्षमता का ख्याल रखें।

भारतीय की रग में इम्युनिटी यानी प्रतिरक्षात्मकता का पहला क्षण तब आता है, जब पैदा होते ही मां उसे अपना पहला दूध पिलाती है। फिर सरकार दशकों से बीसीजी और पोलियो वैक्सीन बच्चों को देने के लिए प्रेरित करती रही है। ये दोनों वैक्सीन जिन बच्चों को लगी है या पी रखी है, उन्हें अतिरिक्त प्रतिरक्षा के लिए घबराना नहीं चाहिए। साथ ही मलेरिया के इलाज के लिए दशकों से हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्विन नामक दवा नागरिकों को देने की सरकार ने व्यवस्था कराई है। यही दवा आज कोरोना के इलाज में उपयोगी साबित हो रही है। मगर इसे केवल विशेषज्ञ डॉक्टर की सलाह से कई अन्य दवाओं के साथ मिला कर दिया जाता है। ये सभी मिलकर भारतीयों में हर्ड इम्युनिटी (सामूहिक प्रतिरक्षात्मकता) बना रहे हैं।

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