जानें क्या होता है जैविक हथियार, जिसके कारण कटघरे में है 'चीन', सबसे पहले वुहान से ही निकला था कोरोना वायरस

अभी कोरोना वायरस संक्रमण के कारण फैली महामारी से घिरे दुनिया के तमाम देशों ने चीन को कटघरे में खड़ा कर दिया है जहां से करीब डेढ़ साल पहले घातक संक्रमण का सफर शुरू हुआ था। हालांकि चीन इसे खारिज कर रहा है... जानें

By Monika MinalEdited By: Publish:Tue, 11 May 2021 12:29 PM (IST) Updated:Tue, 11 May 2021 12:29 PM (IST)
जानें क्या होता है जैविक हथियार, जिसके कारण कटघरे में है 'चीन', सबसे पहले वुहान से ही निकला था कोरोना वायरस
कठघरे में है 'चीन', उठे सवाल- जैविक हथियार है कोरोना वायरस

नई दिल्ली, एजेंसियां। कोरोना वायरस को चीन का जैविक हथियार कहा जा रहा है, जिसके कारण पूरी दुनिया महामारी से जूझ रही है। दरअसल, जैविक हथियार के तौर पर सूक्ष्मजीव जैसे वायरस, बैक्टीरिया, फंगी या किसी जहर का इस्तेमाल लोगों, पशुओं या पेड़ पौधों को नष्ट करने के लिए किया जाता है। दुनिया में पहले भी रासायनिक और जैविक हथियारों के इस्तेमाल के उदाहरण मौजूद हैं। कई युद्धों के दौरान इस तरह के हथियार का इस्तेमाल किया जा चुका है। ईसा पूर्व से लेकर 9/11 आतंकी हमले के बाद तक जैविक हथियार का इस्तेमाल किया जा चुका है। 

2002 में अमेरिका में 'एंथ्रेक्स बैक्टीरिया'  का हमला  

जैविक हथियार के खतरे का आभास 1925 में ही हो गया था और  इसे रोकने के लिए कोशिशों की शुरुआत 1975 में की गई, लेकिन सब असफल रहा। 1980 के दशक में इराक ने मस्टर्ड गैस, सरिन (sarin) और ताबुन (tabun) का इस्तेमाल इरान के खिलाफ किया। इसके बाद टोक्यो सबवे सिस्टम में सरिन नर्व गैस हमले ने हजारों को घायल कर दिया और अनेकों मौतें हुई। शीतयुद्ध के बाद ऐसे हथियार के इस्तेमाल में कमी आई, लेकिन 9/11 हमले के बाद एक बार फिर जैविक हथियारों के इस्तेमाल की आहट सुनाई दी और वो थी एंथ्रेक्स पाउडर के साथ पत्र (Anthrax letters)। 2002  में अमेरिका इसका शिकार बना, जब एंथ्रेक्स नामक बैक्टीरिया वाली चिट्ठियां लोगों को संक्रमित करने लगी थीं ।  

1925 में ही इसपर रोक की हुई थी शुरुआत  

हालांकि, जैविक हथियार के विकास व  इस्तेमाल पर रोक के लिए वैश्विक स्तर पर अनेकों सम्मेलन हुए, लेकिन अब तक इसके इस्तेमाल के मामले सामने आते रहे हैं। वर्ष 1925 में जेनेवा प्रोटोकॉल के तहत अनेकों देशों ने इसपर काबू पाने के लिए वार्ता की शुरुआत की थी।  इसके बाद वर्ष 1972 में बायोलॉजिकल वेपन कन्वेंशन (Biological weapon Convention) की स्थापना हुई और 26 मार्च 1975 को 22 देशों ने इसपर हस्ताक्षर किए। वर्ष 1973 में भारत ने भी इसकी सदस्यता ली।  

2019 के अंत में चीन से निकला था कोरोना वायरस  

मौजूदा समय में पूरी दुनिया महामारी कोविड-19 से संघर्ष कर रही है, जिसकी शुरुआत वर्ष 2019 के अंत में चीन के वुहान से हुई थी। इसने दो-तीन माह के भीतर ही दुनिया के लगभग सभी छोटे-बड़े देशों को चपेट में ले लिया। आखिरकार 11 मार्च, 2020 को विश्व स्वास्थ्य संगठन की ओर से इसे महामारी घोषित कर दिया गया था।  

चीन ने किया आरोपों को खारिज  

कोरोना वायरस को जैविक हथियार की तरह विकसित करने के आरोपों से घिरे चीन की ओर से सफाई दी गई है। सबसे पहले इन आरोपों व दावों को बीजिंग ने खारिज कर दिया और इसे अमेरिका की उसके खिलाफ साजिश करार दी। दरअसल, अमेरिकी विदेश मंत्रालय को चीन के सैन्य विज्ञानियों और चिकित्सा अधिकारियों का लिखा दस्तावेज मिला है। इसके मुताबिक, 2015 में चीन के वैज्ञानिकों ने कोरोना वायरस को जैविक हथियार के रूप में विकसित करने पर विचार करना शुरू कर दिया था। चीन की विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता हुआ चनयिंग ने कहा, 'मैंने रिपोर्ट देखी है। कुछ लोग चीन को बदनाम करने की कोशिश कर रहे हैं। लेकिन स्पष्ट है कि तथ्यों का गलत तरीके से प्रयोग किया जा रहा है।' उन्होंने कहा कि चीन अपनी प्रयोगशाला में सुरक्षा का पूरा ध्यान रखता है। 

ऑस्ट्रेलियन स्ट्रैटजिक पॉलिसी इंस्टीट्यूट के एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर पीटर जेनिंग्स के मुताबिक, यह हथियार भले ही आत्मरक्षा के लिए तैयार किए गए हों, लेकिन इनके इस्तेमाल का फैसला वैज्ञानिकों के हाथ में नहीं होगा।वर्तमान में संकट का सामना कर रही दुनिया के सभी देशों को मिलकर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कुछ मजबूत मानदंडों को विकसित करने की जरूरत आन पड़ी है, जो किसी भी हाल में ऐसे जैविक हथियारों से बचाव का राह आसान कर सके। 

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