केरल हाईकोर्ट ने 14 अलग अलग मामलों में 18 साल जेल की सजा काटने वाले व्यक्ति की रिहाई का दिया आदेश

14 अलग-अलग आपराधिक मामलों में 18 साल से अधिक समय जेल में अपने गुनाहों की सजा काट रहे दोषी को केरल उच्च न्यायालय ने जेल से रिहा करने का आदेश दिया है। 61 साल का यह व्यक्ति 2003 में गिरफ्तार किया गया था और तब से वह जेल में था।

By Ashisha SinghEdited By: Publish:Mon, 26 Jul 2021 06:22 PM (IST) Updated:Mon, 26 Jul 2021 06:22 PM (IST)
केरल हाईकोर्ट ने 14 अलग अलग मामलों में 18 साल जेल की सजा काटने वाले व्यक्ति की रिहाई का दिया आदेश
केरल हाईकोर्ट ने 14 अलग-अलग मामलों में 18 साल जेल की सजा काटने वाले व्यक्ति की रिहाई का दिया आदेश

कोच्चि, पीटीआइ। 61 वर्षीय एक अपराधी जिसने 14 अलग-अलग आपराधिक मामलों में 18 साल से अधिक समय जेल में अपने गुनाहों की सजा काटी, उसे केरल उच्च न्यायालय ने जेल से रिहा करने का आदेश दिया है। बता दें कि 61 साल का यह दोषी व्यक्ति 2003 में गिरफ्तार किया गया था और तब से वह जेल में था।

क्या है पूरा मामला

61 वर्षीय एक अपराधी शिवानंदन को केरल उच्च न्यायालय ने सोमवार को यहां करने का आदेश दिया जिस पर अलग-अलग समय पर किए गए 14 अलग-अलग मामलों में शामिल होने दोषी पाया गया था। ‌ यह व्यक्ति 2003 से अपने किए गए गुनाहों की जेल में सजा काट रहा है। बता दें कि यदि उच्च न्यायालय ने हस्तक्षेप नहीं किया होता तो वह चोरी, घर में तोड़फोड़, रात में गुप्त रूप से घर में घुसना जैसे अपराधों के लिए लगभग 30 साल जेल की सजा काट चुका होता।

14 अलग-अलग मामलों में दोषी पाए गए शिवानंदन को 6 महीने से लेकर 5 साल तक की अवधि के लिए अलग-अलग जेल की सजा दी गई थी, जिसकी सजा की कुल अवधि मिलाकर 30 साल और छह महीने हो गए थे। हालांकि अलग-अलग समय पर किए गए अपराध के मामले विभिन्न निचली अदालतों में दर्ज किए गए थे। उनमें से किसी ने भी दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) के तहत अपने विवेक का प्रयोग नहीं किया ताकि 14 अलग-अलग मामलों के लिए एक साथ सजा चलाए जाने का निर्णय उच्च न्यायालय द्वारा लिया जाए सके।

क्या कहा न्यायमूर्ति अशोक मेनन ने

14 अलग-अलग मामलों के लिए सजा काट रहे दोषी शिवानंदन का यह मामला उच्च न्यायालय के ध्यान में तब आया जब दोषी ने इस आधार पर अपनी रिहाई की मांग करते हुए एक याचिका दायर की कि उसकी निरंतर नजरबंदी अवैध थी और वह बूढ़ा और कमजोर था।

मामले को देखते हुए कि उसे केवल एक मामले में पांच साल की जेल की सजा सुनाई गई थी और बाकी में उन्हें कम कारावास की सजा सुनाई गई थी, न्यायमूर्ति अशोक मेनन ने कहा, 'मुझे लगता है कि यह न्याय के हित में होगा यदि यह अदालत अपने अधिकार क्षेत्र का प्रयोग करती है। 'मौजूदा मामले में, मुझे लगता है कि याचिकाकर्ता (शिवानंदन) मामले में नहीं लड़े थे और उसे दोषी ठहराया था, जिसके परिणामस्वरूप उसे कारावास की सजा सुनाई गई थी। उनकी उम्र 60 वर्ष से अधिक है और अब 18 साल से अधिक समय से जेल में है।

न्यायमूर्ति मेनन ने कहा कि 'परिस्थितियों में, सीआरपीसी की धारा 482 (उच्च न्यायालय की अंतर्निहित शक्तियों) के तहत अधिकार क्षेत्र का प्रयोग करते हुए, प्रतिवादियों (राज्य और जेल अधिकारियों) को याचिकाकर्ता (शिवानंदन) को तुरंत रिहा करने का निर्देश दिया जाता है कि वह सभी में सजा काट चुका है। जिन अपराधों में उन्हें दोषी ठहराया गया था। 

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