भूमि अधिग्रहण मामले की सुनवाई से नहीं हटेंगे जस्टिस अरुण मिश्र, जानें- इससे जुड़ी खास बातें

विभिन्न किसान संगठनों और व्यक्तियों ने जस्टिस मिश्र द्वारा मामले की सुनवाई करने पर आपत्ति जताई थी। इसको लेकर याचिकाएं दायर की गई थीं।

By Dhyanendra SinghEdited By: Publish:Wed, 23 Oct 2019 11:41 PM (IST) Updated:Thu, 24 Oct 2019 02:12 AM (IST)
भूमि अधिग्रहण मामले की सुनवाई से नहीं हटेंगे जस्टिस अरुण मिश्र, जानें- इससे जुड़ी खास बातें
भूमि अधिग्रहण मामले की सुनवाई से नहीं हटेंगे जस्टिस अरुण मिश्र, जानें- इससे जुड़ी खास बातें

नई दिल्ली, प्रेट्र। सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को कहा कि भूमि अधिग्रहण कानून के प्रावधानों को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई कर रही संविधान पीठ से जस्टिस अरुण मिश्र अलग नहीं होंगे। भूमि अधिग्रहण कानून से संबंधित शीर्ष अदालत के दो अलग-अलग फैसलों को चुनौती दी गई है। संविधान पीठ अब इस पर छह नवंबर से सुनवाई करेगी।

जस्टिस अरुण मिश्र की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने ही यह फैसला सुनाया। पीठ की तरफ से फैसला सुनाते हुए जस्टिस मिश्र ने कहा, 'मैं इस मामले की सुनवाई से अलग नहीं हो रहा हूं।' संविधान पीठ में जस्टिस इंदिरा बनर्जी, जस्टिस विनीत शरण, जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस एस. रवींद्र भट शामिल थे।

मामले से जुड़ी खास बातें

भूमि अधिग्रहण को लेकर दो पीठों ने सुनाया था अलग-अलग फैसला एक पीठ के अध्यक्ष थे जस्टिस अरुण मिश्र इसी आधार पर की जा रही है उन्हें संविधान पीठ से हटाने की मांग पिछली सुनवाई पर संविधान पीठ ने की थी सख्त टिप्पणी

विभिन्न किसान संगठनों और व्यक्तियों ने जस्टिस मिश्र द्वारा मामले की सुनवाई करने पर आपत्ति जताई थी। इसको लेकर याचिकाएं दायर की गई थीं। इनका कहना था कि जस्टिस मिश्र ने ही इस मामले में पिछले साल फरवरी में फैसला दिया था और अपने ही फैसले के खिलाफ दायर याचिकाओं पर वो कैसे सुनवाई कर सकते हैं।

शीर्ष अदालत में 16 अक्टूबर को इस मामले में सुनवाई के दौरान जस्टिस मिश्र ने पक्षकारों के वकील श्याम दीवान से कहा था कि यह अपनी पसंद के जज को पीठ में लाने की कोशिश के सिवा कुछ नहीं है। अगर पक्षकारों की यह मांग मान ली जाती है तो यह संस्था को नष्ट कर देगी। अदालत ने यह भी कहा था कि जस्टिस मिश्र को हटाने की मांग स्वीकार कर ली जाती है तो यह इतिहास का सबसे काला अध्याय होगा।

सरकारी एजेंसियों द्वारा किया जाता है भूमि अधिग्रहण

दरअसल, यह मामला इसलिए उठा है क्योंकि शीर्ष अदालत की दो पीठों ने इस कानून को लेकर अलग-अलग फैसले दिए थे। इसके बाद दोनों ही फैसलों और इस कानून के प्रावधानों की व्याख्या के लिए संविधान पीठ का गठन किया गया था। जस्टिस मिश्र की अध्यक्षता वाली एक पीठ ने कहा था कि अगर सरकारी एजेंसियों द्वारा भूमि का अधिग्रहण किया जाता है तो उसे इस आधार पर रद नहीं किया जा सकता है कि किसानों ने निर्धारित पांच साल के भीतर मुआवजा नहीं लिया है। जबकि, 2014 में एक दूसरी पीठ ने कहा था कि अगर पांच साल के भीतर किसान मुआवजा नहीं लेते हैं तो उनकी जमीन का अधिग्रहण रद माना जाएगा।

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