सुप्रीम कोर्ट की न्यायाधीश इंदिरा बनर्जी ने स्वयं को पश्चिम बंगाल हिंसा मामले में सुनवाई से किया अलग
सुप्रीम कोर्ट ने गत 18 मई को बिस्वजीत सरकार और स्वर्णलता अधिकारी की याचिका पर विचार का मन बनाते हुए पश्चिम बंगाल सरकार और केंद्र सरकार को नोटिस जारी कर जवाब मांगा था। हिंसा में बिस्वजीत के भाई और स्वर्णलता के पति की हत्या हुई थी।
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट न्यायाधीश इंदिरा बनर्जी ने पश्चिम बंगाल में चुनाव बाद हुई हिंसा में मारे गए दो भाजपा कार्यकर्ताओं के परिजनों की याचिका पर सुनवाई से स्वयं को अलग कर लिया है। जस्टिस बनर्जी के स्वयं को सुनवाई से अलग किये जाने के बाद यह मामला अब किसी ऐसी पीठ के समक्ष सुनवाई पर लगेगा जिसमें जस्टिस बनर्जी शामिल नहीं होंगी।
पश्चिम बंगाल में चुनाव बाद मतगणना के दौरान हिंसा हुई थी जिसमें भाजपा के दो कार्यकर्ताओं की हत्या हो गई थी। भाजपा कार्यकर्ताओं के परिजनों ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर मामले की जांच कोर्ट की निगरानी में एसआइटी या सीबीआइ जैसी स्वतंत्र एजेंसी से कराने की मांग की है।
यह मामला गुरुवार को न्यायमूर्ति इंदिरा बनर्जी और एमआर शाह की पीठ के सामने सुनवाई पर लगा था। मामले की सुनवाई शुरू होते ही जस्टिस बनर्जी ने कहा कि वह इस मामले को नहीं सुन सकतीं। इस मामले को किसी और पीठ के समक्ष सुनवाई पर लगाया जाए।
कोर्ट की निगरानी में एसआइटी या सीबीआइ को सौंपी जाए इस मामले की जांच
सुप्रीम कोर्ट ने गत 18 मई को बिस्वजीत सरकार और स्वर्णलता अधिकारी की याचिका पर विचार का मन बनाते हुए पश्चिम बंगाल सरकार और केंद्र सरकार को नोटिस जारी कर जवाब मांगा था। हिंसा में बिस्वजीत के भाई और स्वर्णलता के पति की हत्या हुई थी। इन लोगों की याचिका में पश्चिम बंगाल में मतगणना के दौरान हुई हिंसा का मुद्दा उठाया गया है। कहा गया है कि टीएमसी के कार्यकर्ताओं और समर्थकों ने भाजपा कार्यकर्ताओं और समर्थकों के खिलाफ बड़े पैमाने पर हिंसा और लूटपाट की। यह गंभीर मामला है लेकिन इसमें राज्य ने कोई कार्रवाई नहीं की इसलिए मामले की जांच कोर्ट की निगरानी में एसआइटी या सीबीआइ को सौंपी जाए।
पश्चिम बंगाल में चुनाव बाद हुई हिंसा में सामूहिक दुष्कर्म की दो पीड़िताओं ने भी सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर मामले की जांच एसआइटी या सीबीआइ से कराने की मांग की है। दोनों ने कोर्ट से मुख्य मामले में पक्षकार बनाए जाने की मांग है। हालांकि यह याचिका अभी सुनवाई पर नहीं आई है।