Jallianwala Bagh Massacre: देखते ही देखते लोगों पर गोलियों की बौछार शुरू हो गई थी, कुआं लाशों से पट चुका था

जलियांवाला बाग अंग्रेजी हूकूमत की शर्मसार कर देने वाली घटना थी। ये बात ब्रिटेन के पीएम डेविड कैमरॉन ने यहां के दौरे पर विजिटर बुक में लिखी थी। इस घटना में सैकड़ों लोग मारे गए थे और हजारों घायल हुए थे।

By Kamal VermaEdited By: Publish:Tue, 13 Apr 2021 08:07 AM (IST) Updated:Tue, 13 Apr 2021 09:13 AM (IST)
Jallianwala Bagh Massacre: देखते ही देखते लोगों पर गोलियों की बौछार शुरू हो गई थी, कुआं लाशों से पट चुका था
जलियांवाला बाग नरसंहार से पूरा देश हिल गया था।

नई दिल्‍ली (ऑनलाइन डेस्‍क)। 13 अप्रैल 1919 का वो दिन भारत कभी नहीं भूल सकेगा, जब आजादी की शांतिपूर्ण मांग करने वालों पर अंग्रेजी हुकूमत के सिरफिरे जनरल गोलियों की बौछार करवा दी थी। इस जघन्‍य नरसंहार में 400 से अधिक लोग मारे गए थे जिनमें महिलाएं और बच्‍चे भी शामिल थे। इस घटना में 2000 से अधिक लोग घायल हुए थे। जिस जनरल ने जलियांवाला बाग में ये मौत का तांडव खेला था उसका नाम था जनरल ओ डायर।

13 अप्रैल को दरअसल जलियांवाला बाग, जो कि अमृतसर में स्वर्ण मन्दिर के निकट है, में बैसाखी के दिन अंग्रेजों के रौलेट एक्ट का विरोध करने के लिए एकजुट हुए थे। ये एक शांतिपूर्ण तरीके से की जा रही सभा थी, जिसमें काफी लोग एकत्रित हुए थे। जलियांवाला बाग चारों तरफ से मकानों से घिरा हुआ था। यहां पर आने और जाने के लिए एक ही पतली सी गली थी। जिस वक्‍त यहां पर सभा हो रही और लोग शांतिपूर्वक दूसरों को सुन रहे थे तभी जनरल डायर अपनी फौजियों की टुकड़ी को लेकर वहां पहुंच गया। उसने यहां से निकलने के सारे रास्‍ते बंद कर दिए थे। लोगों का ध्‍यान धीरे-धीरे उसकी और जा रहा था।

जलियांवाला बाग में बैठे लोगों के पीछे एक एक कर राइफल लिए फौजी अपनी पॉजीशन ले रहे थे। एकाएक सभी फौजियों ने लोगों पर निशाना साध लिया। अब बस एक इशारा मिलने की देरी थी। जैसे ही डायर ने फायर बोला अग्रेंजी हुकूमत के तहत काम कर रहे जवानों ने अपनी राइफल के मुंह खोल दिए और देखेते ही देखते वहां पर मौत मंडराने लगी। लोग इधर-उधर अपनी जान बचाने के लिए भाग रहे थे। जलियांवाला बाग में मौजूद कुए में लोगों ने अपनी जान बचाने के लिए छलांग लगा दी थी। लेकिन उनकी किस्‍मत अच्‍छी नहीं थी। कहा जाता है कि ये कुआं लाशों से पट गया था।

आपको बता दें कि जिस रॉलेट एक्‍ट का विरोध करने के लिए जलियांवाला बाग में सभा हो रही थी वो दरअसल, 1915 में लागू हुआ था। इसको एक ब्रिटिश जज सिडनी रॉलेट की अध्यक्षता में सेडीशन समिति ने सुझाया था। ये एक्‍ट भारत में चल रहे आजादी के संग्राम पर रोक लगा सकता था। इसके अंतर्गत ब्रिटिश सरकार प्रेस पर सेंसरशिप लगा सकती थी, नेताओं को बिना मुकदमें के जेल में रख सकती थी। इतना ही नहीं वो लोगों को बिना वारंट के गिरफ्तार कर सकती थी और उन पर मुकदमे चला सकती थी। कुल मिलाकर इसका मकसद ब्रिटिश शासन के खिलाफ और देश ही आजादी की मांग को कुचलना था, जिसके खिलाफ सारा देश एकजुट हो गया था।

जलियांवाला बाग की इस घटना ने देश के स्‍वतंत्रता संग्राम में आग लगा दी थी। हर कोई गुस्‍से में था। अमृतसर के डिप्टी कमिश्नर ऑफिस में आज भी यहां पर शहीद होने वाले 484 लोगों की लिस्‍ट मौजूद हैं। वहीं जलियांवाला बाग में कुल 388 शहीदों की लिस्‍ट है। ब्रिटिश हुकूमत के दस्‍तावेजों में इस घटना में 379 लोगों की मौत होने और 200 से अधिक के घायल होने की बात को स्‍वीकार किया गया है। इनमें 337 पुरुष, 4 नाबालिग बच्‍चे और एक नवजात शामिल है। हालांकि अनाधिकारिक आँकड़े बताते हैं कि यहां पर उस वक्‍त 1000 से अधिक लोग मारे गए और 2000 से अधिक घायल हुए थे।

1997 में जब ब्रिटेन की महारानी एलिजाबेथ भारत दौरे पर आई थीं तो वो जलियांवाला बाग भी देखने गई थीं। उस वक्‍त उन्‍होंने यहां पर शहीदों को श्रद्धांजलि भी दी थी। हालांकि उनके इस दौरे का जबरदस्‍त विरोध भी हुआ था। इसके बाद वर्ष 2013 में जब ब्रिटेन के तत्‍कालीन प्रधानमंत्री डेविड कैमरॉन भारत आए थे तो उन्‍होंने जलियांवाला बाग के दौरे के दौरान वहां मौजूद विजिटर्स बुक में इसको ब्रिटिश इतिहास की यह एक शर्मनाक घटना बताया था।

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