ऐसी लापरवाही दे सकती है ब्लैक फंगस को दावत, जानें क्‍या है इलाज और कैसे बरतें एहतियात

कोरोना संक्रमण के साथ ही अब म्यूकरमाइकोसिस (ब्लैक फंगस) के मामले बढ़ने लगे हैं। विशेषज्ञ बताते हैं कि कोरोना संक्रमित या संक्रमण से निकल चुके व्यक्ति में ब्लैक फंगस होने की बड़ी वजह ओरल हाइजीन मेंटेन नहीं रखना भी है।

By Krishna Bihari SinghEdited By: Publish:Fri, 14 May 2021 10:07 PM (IST) Updated:Fri, 14 May 2021 10:07 PM (IST)
ऐसी लापरवाही दे सकती है ब्लैक फंगस को दावत, जानें क्‍या है इलाज और कैसे बरतें एहतियात
ब्लैक फंगस होने की बड़ी वजह ओरल हाइजीन मेंटेन नहीं रखना भी है।

नई दिल्ली [जागरण टीम]। कोरोना संक्रमण के साथ ही अब म्यूकरमाइकोसिस (ब्लैक फंगस) के मामले बढ़ने लगे हैं। विशेषज्ञ बताते हैं कि कोरोना संक्रमित या संक्रमण से निकल चुके व्यक्ति में ब्लैक फंगस होने की बड़ी वजह ओरल हाइजीन मेंटेन नहीं रखना भी है। जो संक्रमित आक्सीजन पर होते हैं, उनके मुंह की कई दिन तक सफाई नहीं हो पाती। ऐसे में लगातार ह्यूमिडीफाइड आक्सीजन उसके अंदर जाने से मुंह में ब्लैक फंगस बनने का खतरा बढ़ जाता है। ऐसे में जरूरी है कि जिन मरीजों को आक्सीजन दी जा रही हो, उनका विशेष ध्यान रखा जाए।

मध्‍य प्रदेश में दवाओं की किल्‍लत

वहीं, मध्य प्रदेश के कई जिलों में ब्लैक फंगस के मरीजों की संख्या बढ़ने से जरूरी दवाओं की किल्लत शुरू हो गई है। इसके अलावा झारखंड सरकार अलर्ट हो गई है और कहा है कि इसकी अनदेखी न करे।

यह है बड़ी वजह

श्री राममूर्ति स्मारक मेडिकल कालेज (एसआरएमएस) के माइक्रोबायोलाजिस्ट डॉ. राहुल गोयल बताते हैं कि जरूरत पड़ने पर संक्रमितों को पांच से सात दिन तक ऑक्सीजन लगाई जा रही। इस दौरान स्वजन उनसे दूर होते हैं और मेडिकल स्टाफ मरीज की साफ सफाई या ओरल हाइजीन का ध्यान नहीं रखता। इससे मुंह और नाक में लगातार आक्सीजन जाने के चलते सफेद पपड़ी जम जाती है, यहीं से फंगस व्यक्ति में प्रवेश कर जाता है।

ऐसे डालता है दुष्प्रभाव

विशेषज्ञों के मुताबिक यह फंगस खून के साथ बहकर फेफड़ों, नाक, आंख और मस्तिष्क में पहुंचता है। जिस जगह यह ज्यादा दुष्प्रभाव डालता है, वहां सूजन होने लगती है। उन्होंने बताया कि ह्यूमिडीफाइड ऑक्सीजन में यह जल्दी पनपता है।

मधुमेह के मरीजों को सबसे ज्यादा खतरा

ब्लैक फंगस की चपेट में आने से गुरुवार तक झारखंड में दो मरीजों की जान जा चुकी है। ऐसे में राज्य सरकार भी अलर्ट हो गई है। एक मरीज को तो सर्जरी कर आंख निकालनी पड़ी है। आइसीएमआर ने कोरोना मरीजों को सलाह दी है कि वे ब्लैक फंगस के लक्षणों पर नजर रखें तथा इसकी अनदेखी न करें। झारखंड के स्टेट एपिडेमियोलाजिस्ट डा. प्रवीण कर्ण का कहना है कि ब्लैक फंगस का सबसे ज्यादा खतरा मधुमेह के मरीजों को है। स्टेरायड के अलावा कोरोना की कुछ दवाओं का उपयोग मरीज की प्रतिरक्षा प्रणाली पर असर डालता है। यह ब्लैक फंगस के खतरे को बढ़ाते हैं।

लाइपोजोमल इंजेक्शन मरीज के लिए ज्यादा सुरक्षित

इलाज में सबसे उपयोगी एंटी फंगल इंजेक्शन एम्फोटेरिसन- बी लाइपोजोमल है। यह पहले करीब पांच- छजार रुपये में मिल जाता था। मांग नहीं होने की स्थिति में एमआरपी से कम कीमत पर भी मिल जाता था, लेकिन अब एमआरपी से अधिक कीमत पर भी मुश्किल से मिल रहा है। एम्फोटेरिसन- बी में भी कई श्रेणी के इंजेक्शन आते हैं। कन्वेंशनल इंजेक्शन सस्ता पड़ता है पर इसे देने पर मरीज की किडनी की मानीटरिंग करनी पड़ती है ताकि दुष्प्रभाव का पता चलता रहे।

ऐसे बरतें एहतियात सामान्य व्यक्ति तो दिन में दो बार ब्रश करें। पानी को बोतल करें प्रतिदिन साफ। मरीज अगर होश में है तो सामान्य व्यक्ति की तरह प्रतिदिन मुंह साफ करें। मरीज अगर होश में नहीं है तो डेमिकल माउथ पेंट डालकर मुंह साफ कर सकते हैं। जिस व्यक्ति को आक्सीजन लगी है और होश में नहीं है तो मेडिकल स्टाफ द्वारा प्रतिदिन उनके मुंह की सफाई करानी चाहिए। यह सिर्फ कोविड में ही नहीं नॉन कोविड मरीजों के साथ करना होगा।

क्या है उपचार

किसी मरीज में संक्रमण सिर्फ एक त्वचा से शुरू होता है, लेकिन यह शरीर के अन्य भागों में फैल सकता है। उपचार में सभी मृत और संक्रमित ऊतक को हटाने के लिए सर्जरी की जाती है। कुछ मरीजों में के ऊपरी जबड़े या कभी-कभी आंख तक निकालनी पड़ जाती है। इलाज में एंटी-फंगल थेरेपी का चार से छह सप्ताह का कोर्स भी शामिल हो सकता है। चूंकि यह शरीर के विभिन्न हिस्सों को प्रभावित करता है, इसलिए इसके उपचार के लिए फिजिशियन के अलावा, न्यूरोलाजिस्ट, ईएनटी विशेषज्ञ, नेत्र रोग विशेषज्ञ, दंत चिकित्सक, सर्जन की टीम जरूरी है। 

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