Oxygen Shortage in India: क्या देश में सच में है ऑक्सीजन की किल्लत, जानें- आखिर प्लांट में कैसे तैयार होती है ये 'संजीवनी', कोरोना काल में कितनी बढ़ी मांग
देश में 75000 मीट्रिक टन ऑक्सीजन का उत्पादन हो रहा है। 6822 मीट्रिक टन राज्यों को सप्लाई हो रही है। 6785 मीट्रिक टन राज्यों को जरूरत है। देश भर में रोज 3300 मीट्रिक टन की खपत बढ़ी है। मांग और आपूर्ति के खेल से गहराया संकट।
नई दिल्ली, ऑनलाइन डेस्क। देश में कोरोना की दूसरी लहर के बाद अस्पतालों में सबसे ज्यादा किल्लत ऑक्सीजन सिलेंडर को लेकर आ रही है। ऑक्सीजन को लेकर मरीज दर-दर भटक रहे हैं। इस मामले को लेकर केंद्र एवं राज्य सरकारों की चिंता साफ दिख रही है। मामला इतना गंभीर हो गया है कि सुप्रीम कोर्ट ने भी इस मामले में केंद्र सरकार को तलब किया है। उधर, सरकार ने ऑक्सीजन की सुचारू आपूर्ति के लिए वायुसेना की मदद ली है। यह भी चर्चा है कि ऑक्सीजन सिलेंडर की कालाबाजारी हो रही है। क्या आप जानते हैं कि भारत में प्रतिदिन कितनी ऑक्सीजन बन रही है ? इसकी कितनी खपत है ? किस प्रक्रिया के तहत यह तैयार की जाती है ? इस समय देश में ऑक्सीजन की कितनी मांग और इसकी कितनी खपत है।
ऑक्सीजन का उत्पादन क्षमता, मांग और खपत
देश में मौजूदा समय में 75,000 मीट्रिक टन ऑक्सीजन का उत्पादन हो रहा है। इसमें 6,822 मीट्रिक टन राज्यों को सप्लाई हो रही है। 6,785 मीट्रिक टन राज्यों को जरूरत है। कोरोना मरीजों की बढ़ती संख्या और उनमें ऑक्सीजन लेबल की कमी के चलते इसकी मांग अचानक बढ़ गई है। इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि देश भर में रोज 3,300 मीट्रिक टन की खपत बढ़ी है। ऑक्सीजन के इस मांग और आपूर्ति के खेल से यह संकट उत्पन्न हुआ है।
रोज 7,500 मीट्रिक टन उत्पादन, 6,600 मीट्रिक टन चिकित्सा उपयोग के लिए
देश में इस समय प्रतिदिन 7,500 मीट्रिक टन ऑक्सीजन का उत्पादन हो रहा है। इस उत्पादन का बड़ा हिस्सा चिकित्सा उद्देश्यों के लिए किया जाता है। हाल में केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने कहा था कि कोरोना की दूसरी लहर में ऑक्सीजन की बढ़ती मांग की वजह से उद्योगों को दी जाने वाली ऑक्सीजन पर फिलहाल रोक लगा दी गई है। स्वास्थ्य मंत्रालय ने कहा कि इसके जरिए अधिक से अधिक मात्रा में ऑक्सीजन चिकित्सकीय उपयोग के लिए उपलब्ध हो सके। मंत्रालय ने कहा कि इस समय 6,600 मीट्रिक टन राज्यों को चिकित्सा उद्देश्यों के लिए आवंटित किया जा रहा है। सभी राज्यों में सार्वजनिक स्वास्थ्य सुविधाओं में स्थापना के लिए केंद्र सरकार द्वारा कुल 162 प्रेशर स्विंग सोर्सेशन प्लांटस को स्वीकृति मिली है। यह प्लांट्स वर्तमान ऑक्सीजन उत्पादन में 154.19 मीट्रिक टन की ऑक्सीजन क्षमता बढ़ाएंगे। 162 पीएसए ऑक्सीजन प्लांटस में से अभी तक 33 स्थापित किए जा चुके हैं।
आखिर मरीज तक कैसे पहुंचती है ऑक्सीजन
प्लांट पर तैयार होने के बाद मेडिकल ऑक्सीजन को एक बड़े से कैप्सूलनुमा टैंकर में भरकर अस्पताल तक पहुंचाया जाता है। मरीजों तक यह दो तरीके से पहुंचाया जाता है। पहले, जिन अस्पतालों में ऑक्सीजन के लिए पाइप लाइन की व्यवस्था होती है, वहां मरीज के बेड तक यह सीधे पाइप के थ्रू पहुंचती है। दूसरे, जिन अस्पतालों में पाइप्स की व्यवस्था नहीं है, वहां रोगी को सिलेंडर के जरिए ऑक्सीजन की सुविधा मुहैया कराई जाती है। कोविड-19 के दूसरी लहर ने विकराल रूप धारण कर लिया है। देश में बड़े पैमाने पर कोविड-19 के मरीज सामने आ रहे हैं, ऐसे में स्थानीय प्रशासन ने कई सरकारी और गैर सरकारी अस्पतालों को कोविड-19 के रूप में तब्दील कर दिया है। इसमें कई अस्पताल ऐसे हैं, जहां गैस पाइप लाइन की व्यवस्था नहीं है और अगर है भी तो अस्पताल द्वारा बनाए गए नए कोरोना वार्ड तक सुलभ नहीं है।
प्लांट में कैसे तैयार होती है ऑक्सीजन, क्या है स्रोत दरअसल, हमारे वायुमंडल में ही प्रचुर मात्रा में ऑक्सीजन सुलभ है। यही उसका सबसे बड़ा स्रोत है। हमारे जीवन में सांसों को चलते रहने के लिए आक्सीजन बेहद जरूरी है। हम अपनी सांसों के जरिए कार्बन डाई ऑक्साइड छोड़ते हैं और ऑक्सीजन ग्रहण करते हैं। इस ऑक्सीजन के जरिए ही हमारे शरीर का रक्त शुद्ध होता है। अस्पतालों में प्रयोग किए जाने वाले ऑक्सीजन को एक प्लांट में तैयार किया जाता है। इसकी पूरी एक प्रक्रिया है, इसे क्रायोजेनिक डिस्टिलेशन प्रोसेस कहा जाता है। चूंकि वायुमंडल में सभी गैसों का मिश्रण होता है। इस प्रक्रिया के तहत हवा में मौजूद पानी के कण, कार्बन डाई ऑक्साइड और हाइड्रोकार्बन अलग हो जाते हैं। प्लांट में हवा से ऑक्सीजन को अलग किया जाता है। इस प्रक्रिया में यूनिक एयर सेपरेशन की तकनीक का प्रयोग किया जाता है। इसके तहत हवा को कम्प्रेस किया जाता है, ताकि हवा को फिल्टर करके उससे अन्य गैसों को अलग किया जा सके। इस तकनीक के जरिए हवा से सारी अशुद्धियां को निकाल दिया जाता है। इसके बाद फिल्टर की गई हवा को ठंडा किया जाता है। फिर इस हवा को डिस्टिल किया जाता है। ऑक्सीजन को बाकी गैसों से अलग किया जाता है। इसके बाद ऑक्सीजन को लिक्विड फॉर्म में एकत्र किया जाता है। मौजूदा समय में इसे एक पोर्टेबल मशीन के द्वारा हवा से ऑक्सीजन को अलग करके मरीज तक पहुंचाया जाता है।