रहें चाहे जहां मगर अपने खेतों में पैदा हुए जैविक अनाज ही हैं मनोज सिन्हा की पहली पसंद

गाजीपुर उनका घर है वहां उनके खेत हैं जहां वह जैविक खेती करते हैं। यही कारण है कि वह रहें चाहे जहां आटा दाल और चावल उनके खेतों का ही उनके पास पहुंच जाता है।

By Vinay TiwariEdited By: Publish:Sun, 09 Aug 2020 12:47 PM (IST) Updated:Sun, 09 Aug 2020 12:47 PM (IST)
रहें चाहे जहां मगर अपने खेतों में पैदा हुए जैविक अनाज ही हैं मनोज सिन्हा की पहली पसंद
रहें चाहे जहां मगर अपने खेतों में पैदा हुए जैविक अनाज ही हैं मनोज सिन्हा की पहली पसंद

गाजीपुर [सर्वेश मिश्र]। कश्मीर के राजभवन में कश्मीरी आलू दम के साथ उत्तर प्रदेश के गाजीपुर के खेतों की महक वाली रोटी जब नए उपराज्यपाल मनोज सिन्हा की थाली में परोसी जाएगी तो यह भरोसा किया जा सकता है कि कश्मीर में समन्वय और सद्भाव का रंग कुछ और निखर आएगा, प्रेम की इबारत कुछ और चटख हो जाएगी। जम्मू-कश्मीर में राज्यपाल का पद सबसे अधिक चुनौतीपूर्ण रहा है। इस पद पर बैठने वाले के लिए दो कसौटियां सबसे बड़ी होती हैं।

एक, वह सामरिक मामलों का विशेषज्ञ हो और दूसरा ऐसा राजनीतिक व्यक्तित्व जो संवेदनशीलता के साथ जमीनी हकीकत और अपेक्षाओं का इम्तिहान हर वक्त देने में माहिर हो। सिन्हा के अंदर दूसरी खूबी निश्चित ही देखी गई होगी। उनमें कोई न कोई बात तो है कि वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के भरोसेमंद हैं।

मोदी ने पहले कार्यकाल में उन्हें संचार राज्य मंत्री का स्वतंत्र प्रभार सौंपा और फिर 2019 में चुनाव हारने के बावजूद जम्मू-कश्मीर का राज्यपाल बना दिया। कश्मीर में हालात सामान्य हो रहे हैं। अब वहां राजनीतिक गतिविधियों का वक्त है, इनका इंतजार भी किया जा रहा है।

इस आधार पर सिन्हा का एजेंडा साफ है-जम्मू और कश्मीर में इलेक्ट्रानिक वोटिंग मशीनें स्ट्रांग रूम से निकलें। हमेशा धोती-कुर्ता पहनने वाले मनोज सिन्हा उत्तर प्रदेश के वह खांटी नेता हैं जो 1996 और 1999 में दो बार गाजीपुर से लोकसभा के लिए चुने गए। फिर एक लंबा अरसा खामोशी में बीता, लेकिन 2014 के लोकसभा चुनाव से वह फिर सुर्खियों में आए।

उससे पहले वह बनारस के सिगरा में रहते और गाजीपुर, बलिया और काशी की भाजपाई राजनीति में सक्रिय रहते। उनका घर वैसे तो गाजीपुर में है, लेकिन लोकसभा सीट बलिया की लगती है। पार्टी के कहने पर गाजीपुर से लड़े और जीत भी।

गाजीपुर के लोग आज भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का दिया वह भाषण याद करते हैं, जिसमें उन्होंने मनोज सिन्हा को अपना बहुत पुराना मित्र बताया था। गाजीपुर उनका घर है, वहां उनके खेत हैं जहां वह जैविक खेती करते हैं। यही कारण है कि वह रहें चाहे जहां आटा, दाल और चावल उनके खेतों का ही उनके पास पहुंच जाता है। ये तीनों उनकी रसोई की अनिवार्य शर्त हैं।

सिन्हा जब बीएचयू आइआइटी में सिविल इंजीनियरिंग कर रहे थे, वह समय गाजीपुर में कम्युनिस्ट नेता सरजू पांडेय का था। गाजीपुर ही क्या, उस समय तो पूरे पूर्वांचल में कम्युनिस्टों की धमक थी। उनके सहपाठी प्रो. विक्रमादित्य राय बताते हैं कि अन्य युवाओं की तरह मनोज सिन्हा भी सरजू पांडेय के संघर्ष की प्रशंसा करते और उन्हीं तरह भाषण देने की कल्पना भी करते, लेकिन बस वहीं तक।

उनके संस्कार राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के थे जो बीएचयू की छात्र राजनीति में भी उनके आगे आगे चले जहां 1982 में वह छात्रसंघ अध्यक्ष का चुनाव जीते। उस समय भी धोती-कुर्ता ही पहनते थे। रात कितनी भी देर हो जाए, लेकिन उठ वह भोर में ही जाते हैं। बाटी चोखा और साढ़ी वाले दही के बेहद शौकीन सिन्हा नाश्ते में पोहा, सैंडविच, कच्चा पनीर, बादाम, चना और ग्रीन टी भी पसंद करते हैं।

अखबार उनकी दिनचर्या का पहला हिस्सा है और हनुमान चालीसा वह नियम से पढ़ते हैं। पूर्वांचल में भूमिहारों के सबसे बड़े चेहरे के तौर पर पहचाने जाने जाने वाले सिन्हा 2019 का चुनाव हारे तो जीतने वालों से अधिक चर्चा उनकी हार की थी।

सिन्हा की हार से विरोधी भी हैरान थे, लेकिन सपा-बसपा की सोशल इंजीनियरिंग उन पर भारी पड़ गई। वह हारे तो, लेकिन अपने शहर से नाता लगातार बनाए रखा। पूर्वांचल का कोई मिले तो पूछेंगे, ‘का हो, का हाल चाल बा।’ उनके साथ वाले बताते हैं कि वह पुराने फिल्मी गीतों के शौकीन हैं।

जब बहुत प्रसन्न होते हैं तो गुनगुनाते भी हैं। दूसरे अनेक नेताओं से उलट मनोज सिन्हा सोशल मीडिया पर स्वयं एक्टिव रहते हैं और अपने फेसबुक व ट्विटर अकाउंट खुद ही चलाते हैं। देखना अब यह है कि मनोज सिन्हा को भला श्रीनगर में वह बनारसी मगही पान कहां से मिलेगा, जिसके वह हर बनारसी की तरह मुरीद हैं।  

chat bot
आपका साथी