अंतरराष्ट्रीय बाघ दिवस: बाघ इतने बढ़ने लगे कि जंगल छोटे पड़ने लगे, बनाने लगे नए ठिकाने

श में बाघों की संख्या लगातार बढ़ रही है। चाहे मध्य प्रदेश हो उत्तराखंड या बिहार का वाल्मिकी टाइगर रिजर्व सभी जगह बाघों की संख्या में इजाफा हुआ है। कार्बेट टाइगर रिजर्व (सीटीआर) बाघों की संख्या के मामले में देश के 51 टाइगर रिजर्व में नंबर एक है।

By Arun Kumar SinghEdited By: Publish:Wed, 28 Jul 2021 06:39 PM (IST) Updated:Wed, 28 Jul 2021 06:39 PM (IST)
अंतरराष्ट्रीय बाघ दिवस: बाघ इतने बढ़ने लगे कि जंगल छोटे पड़ने लगे, बनाने लगे नए ठिकाने
देश में बाघों की संख्या लगातार बढ़ रही है

 नई दिल्ली, जागरण टीम। देश में बाघों की संख्या लगातार बढ़ रही है। चाहे मध्य प्रदेश हो, उत्तराखंड या बिहार का वाल्मिकी टाइगर रिजर्व, सभी जगह बाघों की संख्या में इजाफा हुआ है। राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (एनटीसीए) के मुताबिक कार्बेट टाइगर रिजर्व (सीटीआर) बाघों की संख्या के मामले में देश के 51 टाइगर रिजर्व में नंबर एक है। राज्यों में बाघ की संख्या के लिहाज से उत्तराखंड तीसरे स्थान पर है। वहीं, मध्य प्रदेश में बाघों का कुनबा ऐसा बढ़ा है कि वहां के जंगल छोटे पड़ने लगे हैं। उन स्थानों पर भी बाघ के पगमार्क देखे गए हैं जहां से वह गायब हो चुके थे। अंतरराष्ट्रीय बाघ दिवस (29 जुलाई) पर जानिए देश में किन प्रयासों से बढ़ रही है बाघों की संख्या।

मप्र ने धोया कलंक

मध्य प्रदेश के माथे पर करीब 15-20 वर्ष पहले बाघों के बेतहाशा शिकार का कलंक लगा था, लेकिन शिकार पर रोक और संरक्षण के प्रयासों का नतीजा है कि अब वहां संख्या बढ़ने के बाद बाघ अपने लिए नए ठिकाने बना रहे हैं। वर्तमान में मध्य प्रदेश में देश के सर्वाधिक 526 बाघ हैं, जबकि 524 बाघों के साथ कर्नाटक दूसरे स्थान पर है। टाइगर स्टेट कहे जाने वाले मध्य प्रदेश में इंदौर, गुना, हरदा, बुरहानपुर, खंडवा, बैतूल, सतना जिले में पिछले दो दशक से बाघ नहीं देखे गए थे, वहां भी अब इनके पगमार्क मिल रहे हैं। गुना जिले के राघौगढ़ क्षेत्र में करीब आठ माह पहले बाघ के पगमार्क मिले हैं। खंडवा जिले में मां नर्मदा के किनारे जंगलों में भी दो दशक बाद बाघ की उपस्थिति दर्ज हुई है। वन अधिकारी बताते हैं कि वर्ष 2002 में जब प्रदेश में करीब 725 बाघ थे, तब इन क्षेत्रों में बाघ पाए जाते थे।

शिकारी गिरोह का था आतंक

मध्य प्रदेश में वर्ष 1995 से वर्ष 2000 के बीच शिकार की सबसे ज्यादा घटनाएं हुईं। संसार चंद और ठोकिया जैसे दुर्दांत शिकारी गिरोह के कारण बाघों का बेतहाशा शिकार हुआ। पन्ना टाइगर रिजर्व से तो बाघ खत्म ही हो गए थे। बीते आठ साल में राज्य सरकार ने शिकारियों पर पूरी कठोरता से शिकंजा कसा। स्टेट टाइगर स्ट्राइक फोर्स का गठन किया गया, जिसमें डाग स्क्वाड भी है। इससे शिकार में 80 फीसद तक कमी आ गई। बाघ संरक्षण पर भी ठोस काम किया गया। परिणाम यह हुआ कि आठ साल में 269 बाघ बढ़ गए।

...और बढ़ने लगी संख्या

वर्ष 2010 में मध्प्र प्रदेश में 257 बाघ थे, जो वर्ष 2018 की गिनती में 526 पाए गए। वर्ष 2006 में तो प्रदेश में महज 300 बाघ बचे थे। बीते दशक में शिकार इतना कम हो गया कि वर्ष 2020 में 29 बाघों की मौत में से सिर्फ चार में शिकार की पुष्टि हुई। शेष की मौत प्राकृतिक कारणों, वर्चस्व की लड़ाई या ट्रेन से टकराने के चलते हुई। वन्यप्राणी मुख्यालय में पदस्थ उप वनसंरक्षक रजनीश सिंह कहते हैं कि पन्ना, बांधवगढ़ सहित कुछ इलाकों में करीब दो दर्जन बाघों की ट्रैकिंग की जाती है।

इस बार संख्या 700 होने की संभावना

मध्य प्रदेश के टाइगर रिजर्व में इस साल जनवरी में बाघों की गिनती हुई है। संभावना है कि प्रदेश में इस बार बाघों की संख्या 700 के आसपास रहेगी। वन अधिकारी बताते हैं कि वर्ष 2020 की तुलना में 15 से 20 फीसद की वृद्धि हो सकती है। वर्ष 2020 में सतपुड़ा नेशनल पार्क में 45, पेंच नेशनल पार्क में 64, कान्हा में 118, पन्ना में 42, संजय दुबरी राष्ट्रीय उद्यान में 13 और बांधवगढ़ में 164 बाघ गिने गए थे, जो वर्ष 2018 में क्रमश: 40, 61, 88, 25, पांच और 124 थे।

जैव विविधता से कार्बेट में बढ़े बाघ

दूसरी तरफ, उत्तराखंड में कार्बेट नेशनल पार्क में प्राकृतिक आवास, प्राकृतिक व पक्के वाटरहोल, भरपूर पानी बाघों को सुरक्षित माहौल देता है। 700 फील्ड स्टाफ, कई किलोमीटर तक निगाह रखने वाले हाइटेक थर्मल कैमरे, ड्रोन मानिटरिंग, रामगंगा नदी में मोटरबोट से गश्त के इंतजाम यहां के बाघों को संरक्षित करने के मकसद से ही हैं। कार्बेट नेशनल पार्क का दायरा नैनीताल एवं पौड़ी गढ़वाल जिले तक है

सीटीआर में बाघों की संख्या

वर्ष- बाघ

2006- 160

2010 - 186

2014 - 215

2018 - 231

(2019 में सीटीआर ने आंतरिक गणना भी कराई जिसमें 252 बाघ थे। 2021 में दो बाघ राजाजी रिजर्व हरिद्वार भेजने से अब यहां 250 बाघ वर्तमान में मौजूद हैं।)

मप्र में बाघ

टाइगर रिजर्व -बाघ-शावक

कान्हा नेशनल पार्क-118-40

पन्ना टाइगर रिजर्व-70-करीब 20

पेंच नेशनल पार्क-65-करीब 35

बांधवगढ़ नेशनल पार्क-124-लगभग 40

बिहार के वीटीआर में तीन गुना बढ़े बाघ

बिहार के पश्चिम चंपारण के वाल्मीकि टाइगर रिजर्व (वीटीआर) में बीते 10 साल में बाघों की संख्या तीन गुना बढ़ी है। वीटीआर को 1994 में टाइगर रिजर्व घोषित किया गया था। उस समय बाघों की संख्या 26 थी। 2010 में 15 और 2014 की गणना में 31 बाघ मिले थे। 2018 में इनकी संख्या बढ़कर 37 हो गई थी। वर्तमान में इनकी संख्या बढ़कर 45 से 50 होने के संकेत हैं। शिकारियों पर लगाम के लिए 16 वाच टावर और 54 एंटी पोचिंग कैंप बनाए गए हैं।

कार्बेट में बाघों के संरक्षण के लिए किए जा रहे कार्यों का ही परिणाम है कि यहां इनकी संख्या लगातार बढ़ रही है। जैव विविधता के बीच अनुकूल माहौल में बाघों की बढ़ती संख्या सुखद पहलू है।

-राहुल, निदेशक सीटीआर, रामनगर

संरक्षण के उपायों ने बाघ को संरक्षित किया है। अब उनकी आबादी इतनी हो गई है कि जंगल छोटे पड़ने लगे हैं।

- एके सिंह, डायरेक्टर, कान्हा नेशनल पार्क, मध्य प्रदेश

प्रदेश में संसार चंद और ठोकिया जैसे शिकारी गिरोह खत्म हुए तो बाघ के शिकार पर रोक लगी है। संरक्षण पर ठोस काम हुआ है।

- आरके दीक्षित, पूर्व संचालक, रातापानी अभयारण्य, मध्य प्रदेश

प्रदेश में बाघों की संख्या में इजाफा हो रहा है। इस वर्ष भी मध्य प्रदेश अपना टाइगर स्टेट का सम्मान बरकरार रखने में कामयाब रहेगा।

- आलोक कुमार, मुख्य वन्यप्राणी अभिरक्षक, मध्य प्रदेश

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