अफगानिस्तान पर भारत की बुलाई बैठक पर पाकिस्तान की लामबंदी विफल, रूस व ईरान समेत मध्य एशियाई देश लेंगे भाग

भारत 10 नवंबर को अफगानिस्तान पर क्षेत्रीय सुरक्षा वार्ता की मेजबानी करने के लिए तैयार है। इस बैठक का आयोजन राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (NSA) स्तर पर होगा। एनएसए अजीत डोभाल अगले हफ्ते बैठक की अध्यक्षता करेंगे। पाकिस्तान इसमें शामिल नहीं होगा।

By TaniskEdited By: Publish:Fri, 05 Nov 2021 06:05 PM (IST) Updated:Fri, 05 Nov 2021 07:08 PM (IST)
अफगानिस्तान पर भारत की बुलाई बैठक पर पाकिस्तान की लामबंदी विफल, रूस व ईरान समेत मध्य एशियाई देश लेंगे भाग
भारतीय राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल और पाकिस्तान के एनएसए मोइद यूसुफ । (फाइल फोटो)

जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। अफगानिस्तान पर भारत की तरफ से बुलाई गई बैठक के खिलाफ पाकिस्तान की लामबंदी चल नहीं पा रही है। भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (एनएसए) अजीत डोभाल के आमंत्रण के जवाब में रूस, ईरान और मध्य एशियाई देशों ने हिस्सा लेने पर सहमति जता दी है। चीन की तरफ से अभी जवाब नहीं आया है। पाकिस्तान के रवैये को इस बात से समझा जा सकता है कि उसने आधिकारिक तौर पर भारतीय पत्र का कोई जवाब नहीं दिया है, लेकिन मीडिया के सामने उसके एनएसए मोईद यूसुफ बयान दे चुके हैं कि वह इस बैठक में हिस्सा लेने नई दिल्ली नहीं आएंगे। साथ ही उन्होंने भारत पर अफगानिस्तान में शांति बिगाड़ने वाली ताकत के तौर पर भी उलटबयानी की थी।

विदेश मंत्रालय के सूत्रों का कहना है कि उन्हें पाकिस्तान के एनएसए के बयान से कोई आश्चर्य नहीं हुआ है। हालांकि, यह काफी दुर्भाग्यपूर्ण था। इससे उसकी अफगानिस्तान के गार्जियन वाली मानसिकता का पता चलता है। यह भी याद रखना चाहिए कि पाकिस्तान ने पूर्व में भी भारत की तरफ से अफगानिस्तान पर बुलाई गई बैठक में हिस्सा नहीं लिया है। भारत की भूमिका पर सवाल उठाकर उसने मीडिया का ध्यान भटकाने की कोशिश की है। असल में पाकिस्तान की भूमिका अफगानिस्तान को लेकर हानिकारक रही है और वह उसे छिपाने की कोशिश कर रहा है।

डोभाल की अध्यक्षता में अफगानिस्तान के पड़ोसी देशों के एनएसए की यह बैठक 10 नवंबर को होनी है। सूत्रों का कहना है कि चीन और पाकिस्तान को छोड़कर दूसरे देशों ने भारत के आवेदन को सहर्ष स्वीकार किया है। इन देशों की प्रतिक्रिया जबर्दस्त रही है। यह भारत की अध्यक्षता में होने वाली इस तरह की पहली बैठक है, जिसमें अफगानिस्तान के सभी पड़ोसी मध्य एशियाई देशों के एनएसए हिस्सा लेंगे। इस तरह की बैठक की शुरुआत वर्ष 2018 में हुई थी। पहली दोनों बैठकें ईरान में हुई थीं। पिछले वर्ष कोरोना महामारी की वजह से तीसरी बैठक नहीं हो पाई, जो नई दिल्ली में होनी थी। सूत्रों का कहना है कि जिस तरह अन्य देशों ने भारत के आग्रह पर बैठक में हिस्सा लेने पर सहमति जताई है उससे साफ है कि वे अफगानिस्तान में स्थायी शांति के लिए भारत की भूमिका को अहम मानते हैं। ये सभी देश अफगानिस्तान के बिगड़ते हालात से चिंतित हैं और चाहते हैं कि वहां स्थायी शांति की राह निकले।

सनद रहे कि 15 अगस्त, 2021 को काबुल पर पाकिस्तान के समर्थन से तालिबान ने कब्जा कर लिया था। उसके बाद से अफगानिस्तान के अंदरूनी हालात काफी खराब हैं और वहां खाने-पीने की चीजों से लेकर तमाम चीजों की भारी किल्लत है। बड़ी संख्या में अफगानिस्तान निवासी दूसरे देशों को पलायन कर चुके हैं। भारत समेत तमाम देशों की तरफ से चलाई जा रहीं विकास परियोजनाओं का काम ठप है। भारत भी तालिबान के साथ दो बार बात कर चुका है और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी वहां मानवीय मदद पहुंचाने की अपील तक कर चुके हैं। डोभाल की अगुआई में होने वाली बैठक की अहमियत इसलिए है, क्योंकि इसमें हिस्सा लेने वाले अधिकांश देश अफगानिस्तान की जमीन से आतंकियों के दूसरे देशों में जाने की आशंका व इसे रोकने की रणनीति पर बात करेंगे।

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