जानिए, किन-किन मुल्कों में चलन में नहीं है तीन तलाक, अब भारत में भी अवैध
पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान और सऊदी अरब जैसे 22 देशों में तीन तलाक़ पर प्रतिबंध है। आइए, जानते हैं कि भारत के पड़ोसी मुल्कों में आखिर क्या है तलाक के नियम।
नई दिल्ली [ जागरण स्पेशल ]। इस अध्यादेश के बाद भारत भी उन मुल्कों में शामिल हो गया, जहां तीन तलाक पर पाबंदी है या फिर यह चलन में नहीं है। पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान और सऊदी अरब जैसे 22 देशों में तीन तलाक़ पर प्रतिबंध है। आइए, जानते हैं कि भारत के पड़ोसी मुल्कों में आखिर क्या है तलाक के नियम। इसके साथ केंद्र सरकार के नए अध्यादेश का लेखाजोखा भी। इस मामले में कौन से किए गए अहम सुधार।
पाकिस्तान और बांग्लादेश में है प्रतिबंध
पाकिस्तान में इस प्रथा पर प्रतिंबध लगाया है। 1961 में पाकिस्तान ने मुस्लिम विवाह लागू कर तीन तलाक पर रोक लगा दी है। उस वक्त बांग्लोदश एक स्वतंत्र मुल्क नहीं था, वह पाकिस्तान का ही भाग था, इसलिए यहां भी यही नियम लागू है। स्वतंत्र होने के बाद यहां तलाक के मामले में पूर्व के नियम को बरकरार रखा गया है। इन मुल्कों में अगर कोई व्यक्ति तलाक देना चाहता है तो उसे मध्यस्थता परिषद को लिखित में सूचना देनी होती है। इसकी एक प्रति बीवी को भी देना अनिवार्य होता है।
अफगानिस्तान में तीन माह के अंदर करनी होती है प्रक्रिया
पाकिस्तान की तरह अफगानिस्तान में भी तीन तलाक की प्रथा पर रोक है। एक बार में तीन तलाक नहीं दिया जा सकता है। यह गैर कानूनी है। यहां एक बार तलाक कहने के बाद तीन महीने के अंतराल में तलाक की प्रक्रिया पूरी करनी होती है।
श्रीलंका में काजी का बड़ा रोल
श्रीलंका में तलाक के प्रावधान कुछ अलग हैं, यहां काजी की भूमिका अहम है। तलाक के लिए शौहर को पहले काजी के पास अर्जी देनी होती है। काजी दोनों पक्षों में सुलह की कोशिश करता है। बात नहीं बनने पर काजी पति का नोटिस बीवी को हस्तांतरित करता है। बीवी की गैरमौजूदगी में उसकी नजदीकी संबंधी को नोटिस दिया जाता है।
अब क्या है भारत की स्थिति
केंद्र सरकार ने नए अध्यादेश के बाद देश में किसी भी तरह के तीन तलाक पर प्रतिबंध लगा दिया गया है। अब तलाक को बोलकर, लिखकर, ईमेल, एसएमएस या व्हाट्सएप के माध्यम को गैर कानूनी माना गया है।
1- बदले नियम के मुताबिक बीवी का पक्ष सुने बिना मजिस्ट्रेट जमानत नहीं दे सकते। इसलिए अब जमानत देना आसान नहीं होगा।
2- नए कानून के तहत महिला पक्ष को अहमियत दी गई है। इसके तहत पत्नी के प्रयास और रजामंदी से ही समझौता हो सकता है। शिकायत के बाद कोई समझौता अदालत से बाहर नहीं होगा। यदि शौहर सुलह करना चाहता है तो उसे बीवी को मनाना होगा। इसके लिए बीवी और शौहर मिलकर अदालत में समझौते के लिए अपील करेंगे।
3- मामले के दौरान नाबालिग बच्चे मां के संरक्षण में होंगे। पत्नी और बच्चों को गुजारा भत्ता अदालत के निर्देश पर शौहर को देना होगा।
4- कानून में यह प्रावधान है कि इस मामले में मजिस्ट्रेट जमानत तभी देंगे जब पति प्रावधानों के मुताबिक बीवी को मुआवजा राशि देने को राजी हो। इस मुआवजे की राशि अदालत तय करेगी।
5- पुराने मामलों में यह कानून अमल में नहीं आएगा। उस पर उसके प्रावधान लागू नहीं होगा। ऐेसे किसी मामले का निस्तारण उसके कानूनी पहलू को ध्यान में रखकर किया जाएगा।
तलाक : तब और अब
1- संशोधन के पूर्व यह प्रावधान था कि इस मामले में पहले कोई भी मुकदमा दर्ज करा सकता था। इतना ही नहीं पुलिस खुद संज्ञान में लेकर मामला दर्ज कर सकती है। लेकिन संशोधन के बाद इसमें बदलाव किया गया है। नया संशोधन ये कहता है कि अब पीड़ित का सगा रिश्तेदार ही केसे दर्ज करा सकेगा।
2- पहले गैर जमानती अपराध और संज्ञेय अपराध था। पुलिस बिना वारंट के गिरफ्तार कर सकती थी। लेकिन अब नया संशोधन यह कहता है कि मजिस्ट्रेट को जमानत देने का अधिकार होगा। हालांकि इसके लिए तीन साल की सजा को बरकरार रखा गया है।
3- पहले समझौते का कोई प्रावधान नहीं था। अब नयाा संशोधन ये कहता है कि मजिस्ट्रेट के सामने पति पत्नी में समझौते का विकल्प भी खुला रहेगा।