मेघालय के इस जंगल में गूंजती है अजीबो-गरीब आवाजें, ये है इनके पीछे का राज

यहां के जंगल में दिन में भी अजीबो-गरीब आवाजें आती रहती हैं। यह आवाज न तो किसी जंगली जानवर ही हैं न ही किसी पक्षी की।

By Kamal VermaEdited By: Publish:Thu, 20 Sep 2018 10:47 PM (IST) Updated:Fri, 21 Sep 2018 02:48 PM (IST)
मेघालय के इस जंगल में गूंजती है अजीबो-गरीब आवाजें, ये है इनके पीछे का राज
मेघालय के इस जंगल में गूंजती है अजीबो-गरीब आवाजें, ये है इनके पीछे का राज

नई दिल्‍ली [जागरण स्‍पेशल]। उत्‍तर पूर्व का एक राज्‍य मेघालय अपनी खूबसूरती के लिए पूरे देश में प्रसिद्ध है। यहां का एक बड़ा हिस्‍सा वन से भरा हुआ है। ऐसे ही जंगल से घिरा एक गांव है कोंगथोंग। यहां की सबसे खास बात ये है कि यहां के जंगल में दिन में भी अजीबो-गरीब आवाजें आती रहती हैं। यह आवाज न तो किसी जंगली जानवर ही हैं न ही किसी पक्षी की। मेघालय के सुदूर इस इलाके में बाहर से आने वालों के लिए यह किसी पहेली से कम नहीं है। लेकिन इस पहेली की बड़ी दिलचस्‍प कहानी भी है। इसी कारण इस गांव को व्हिसलिंग विलेज  भी  कहा जाता है। 

सच जानकर होगी हैरानी
आपको इन आवाजों के पीछे सुनकर हैरानी जरूर होगी। दरअसल, यहां के जंगल में गूंजने वाली आवाजों के पीछे वह राज है जिसपर आप शायद यकीन भी न करें। आपको बता दें कि यहां पर रहने वाले स्‍थानीय लोग इस तरह की अजीबो-गरीब आवाज का इस्‍तेमाल दूर मौजूद अपने किसी भी साथी, परिजन आदि से बात करने के लिए करते हैं। यह सुनने में भले ही अजीब लगे लेकिन यही सच है। कोंगथोंग में रहने वाले लगभग हर व्‍यक्ति को इस तरह की भाषा का ज्ञान है। यह अपनों से इसी भाषा में बात भी करते हैं। यह आवाजें किसी पक्षी की तरह नहीं होती हैं बल्कि यह सुनने में एक धुन या सीटी की तरह लगती हैं। इन आवाजों के पीछे की वजह भी बेहद दिलचस्‍प है। दरअसल, इस तरह की आवाजें ज्‍यादा तेजी और ज्‍यादा दूर तक जाती हैं। इसकी दूसरी वजह ये भी है कि सबसे अलग होने की वजह से यह आसानी से इनके परिजन या जानने वाले पहचान लेते हैं और फिर उसी भाषा में जवाब भी देते हैं।

जंगल में पूरे दिन गूंजती हैं आवाजें
मेघालय के इस गांव कोंगथोंग के जंगल में इस तरह की आवाजें लगभग पूरे दिन ही गूंजती रहती हैं। यहां के लोगों की यह म्‍यूजिकल लैंग्‍वेज भले ही आपको न समझ में आए और आपको ये आवाजें किसी पक्षी की लगें, लेकिन यहां के स्‍थानीय लोग इस भाषा को बखूबी पहचानते हैं। यह एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक पहुंचती रही हैं। इसकी जिम्‍मेदारी खासतौर पर यहां के बुजुर्ग और परिवार का मुखिया उठाता है। मौजूदा समय में यह यहां की संस्‍कृति का हिस्‍सा भी है। यह यहां की फिजाओं में दिखाई देता है। यहां की एक मजेदार बात यह भी है कि यह भाषा यहां के ही लोगों की बनाई गई है। आपको बता दें कि इस गांव में खासी जनजाति के लोग रहते हैं। आपको जानकर हैरानी होगी कि यह एक दूसरे के नाम को भी इसी भाषा में लेते हैं। यहां कर नाम को पुकारकर किसी को बुलाना यदा-कदा ही होता है। यहां की प्रमुख सड़क पर पैदल गुजरने के बाद इसका अहसास बखूबी हो भी जाता है।

 

दिल से निकलती है आवाज
तीन बच्‍चों की मां पेनडाप्लिन शबोंग यहां की स्‍थानीय निवासी हैं। वह बताती हैं कि जब कभी भी उन्‍हें अपने बच्‍चों को जंगल से बुलाना होता है या उनकी खैर-खबर लेनी होती है तो वह इसी भाषा का इस्‍तेमाल करती हैं। यह आवाज सही मायने में उनके दिल से निकलती है। उनके बच्‍चे भी उन्‍हें इसी भाषा में जवाब देते हैं। यहां कम्‍युनिटी लीडर रोथेल खोंगसित बताते हैं कि यह भाषा उनके बच्‍चों के प्रति उनके प्‍यार को दर्शाता है। उनके मुताबिक जब उनका कोई बच्‍चा गलती करता है तो गुस्‍से में जरूर उनके नाम से उन्‍हें आवाज लगाई जाती है। इसके अलावा बच्‍चों को बुलाने के लिए भी भी अजीबो-गरीब धुन का इस्‍तेमाल करते हैं।

प्रकृति के करीब हैं ये लोग
लकड़ी के बने खूबसूरत घर प्रकृति के काफी करीब दिखाई देते हैं। यह हिस्‍सा काफी समय तक अलग-थलग रहा था। वर्ष 2000 में यहां पर पहली बार बिजली आई और वर्ष 2013 में पक्की सड़क बनी। जंगल में उगने वाली ब्रूम ग्रास यहां की आजीविका का प्रमुख स्रोत है। काम की तलाश में यहां के काफी लोग गांव के बाहर रहते हैं। यहां के लोग जो आवाज निकालते हैं उसकी अ‍वधि लगभग तीस सेकेंड की होती है। घने जंगल के बीच बसे कोंगथोंग गांव के लोग अपने को प्रकृति के काफी करीब मानते हैं। वह यहां के प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग करते हैं। जिस भाषा का वह एक दूसरे को बुलाने के लिए इस्‍तेमाल करते हैं उसको यहां जिंगरवई लाबेई कहते हैं। इसका अर्थ उनके कबीले की पहली महिला का गीत, जिसे वह पौराणिक तौर पर अपनी मां मानते हैं।

महिलाओं को मानते हैं देवी
इस गांव की हर चीज निराली है। यहां पर समाज पितृात्‍मक न होकर मातृात्‍मक है। यही वजह है कि यहां पर जमीन-जायदाद भी मां से बेटी को जाती है। यहां पर महिला को परिवार के मुखिया का दर्जा दिया जाता है। मां को ही यहां पर सर्वोच्‍च स्‍थान प्राप्‍त है। यहां के लोगों का मानना है कि मां ही बच्‍चों समेत पूरे परिवार का जिम्‍मा संभालती है, इसलिए उससे बड़ा कोई और नहीं हो सकता है। इसलिए महिला को यहां पर परिवार की देवी के रूप में मान्‍यता है। लेकिन इसके बाद भी महिला को यहां पर किसी तरह का फैसला लेने का हक नहीं है। वह राजनीति में शामिल नहीं हो सकती है।

ऐसे बनती है खास आवाज  
जानकारी के अनुसार इस गांव में 100 से ज्यादा परिवार हैं जिनके सदस्यों के नाम अलग-अलग धुन के हिसाब से रखे गए हैं। आपको जानकर हैरानी होगी कि इस गांव के लोग इस खास घुन को बनाने के लिए प्रकृति का सहारा लेते हैं। यानी पक्षियों की आवाज से नई-नई धुनों का निर्माण। यह गांव पहाड़ियों और जंगलों से घिरा है, जहां विभिन्न प्रकार के पक्षी निवास करते हैं, नईं धुन बनाने के लिए परिवार के सदस्यों को जंगल का भ्रमण करना होता है। जिसके बाद में किसी अलग धुन का निर्माण करते हैं। धुन बनाने का तरीका पूरी तरह से अलग है, जो शायद आपको कहीं ओर दिखाई देगा।

 

सभी की जिम्‍मेदारी बंंटी हुई
महिलाओं और पुरुषों के लिए यहां के नियम बेहद साफ हैं। बच्‍चों और परिवार की देखभाल करना महिलाओं की जिम्‍मेदारी है, इसके अलावा दूसरे कामों का जिम्‍मा पुरुष संभालते हैं। एक तरफ जहां पर लोग अपने को मॉर्डन वर्ल्‍ड के नाम पर मोबाइल समेत दूसरी चीजों में काफी उलझा चुके हैं वहां पर ये गांव अपनी सभ्‍यता और संस्‍कृति को वर्षों से संजोए हुए है। यहां पर अपनों से बात करने के लिए फोन का इस्‍तेमाल नहीं करते बल्कि इनके लिए अपनी प्‍यारी-सी धुनें ही इसके लिए काफी साबित होती हैं।

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