लॉकडाउन में फिर गूंजी लुप्त हो रहे बांस गीत की धुन, रंगकर्मी हबीब तनवीर थे इसके खास प्रशंसक

बांस गीत में एक गायक होता है। उनके साथ दो बांस बजाने वाले होते है। गायक के साथ और दो व्यक्ति होते है जिसे कहते हैं रागी और डेही कहते हैं।

By Dhyanendra SinghEdited By: Publish:Fri, 05 Jun 2020 04:36 PM (IST) Updated:Fri, 05 Jun 2020 04:49 PM (IST)
लॉकडाउन में फिर गूंजी लुप्त हो रहे बांस गीत की धुन, रंगकर्मी हबीब तनवीर थे इसके खास प्रशंसक
लॉकडाउन में फिर गूंजी लुप्त हो रहे बांस गीत की धुन, रंगकर्मी हबीब तनवीर थे इसके खास प्रशंसक

धीरेंद्र कुमार सिन्हा, बिलासपुर। प्रख्यात रंगकर्मी हबीब तनवीर के नाटकों के पार्श्व संगीत में बांस गीत का उपयोग होता था। वे इसके खास प्रशंसक थे। शादी समारोह या गमी में बांस गीत बजाया जाता था। आकाशवाणी से भी बांस गीत की मधुर धुनें अक्सर सुनने को मिल जाती थीं। छत्तीसगढ़ी लोक गीतों में बांस गीत बहुत महत्वपूर्ण शैली है। धीरे-धीरे यह लुप्तप्राय होने लगा। लॉकडाउन के बीच अचानक गांव में इसकी धुन फिर से सुनाई देने लगी। गांव ही नहीं शहरी युवाओं में भी इसका क्रेज बढ़ने लगा है।

सोशल मीडिया के माध्यम से युवाओं तक पहुंचाया

बिलासपुर मुख्यालय से करीब 30 किलोमीटर दूर कोटा विकासखंड एक बैगा आदिवासी बाहुल क्षेत्र है। ग्राम मंझगंवा का रहने वाला युवक रवि पैकरा ने बांस गीत के विरासत को बचाने सोशल मीडिया के माध्यम से युवाओं तक पहुंचाया। देखते ही देखते आसपास गांव में भी इसका क्रेज वापस लौटने लगा। बिलासपुर के कॉलेज-यूनिवर्सिटी के स्टूडेंट भी इसे काफी पसंद कर रहे हैं।

गांव-गांव में कर रहे इसका प्रसार

लोक कलाकार जवाहिल यदु, लाल जी यदु, कुंजल प्रसाद सहित कृपाराम यदु, जय भरोस, छेदन लाल यादव, राजाराम यादव, साहेब लाल व सहयोगी नीकू पैकरा, ऋषभ ठाकुर की मदद इस विरासत को बचाने के लिए अब गांव-गांव में इसका प्रसार कर रहे हैं। वे युवाओं को इसे सिखाने की कोशिश कर रहे हैं ताकि यह कला लुप्त होने की बजाए एक बार फिर से जी उठे। युवा भी इस कला को पसंद कर रहे हैं। रवि ने यह भी बताया इस यंत्र को बांस करीब चार फुट लंबे टुकड़े से तैयार किया जाता है। यह बांस अपनी विशेष धुन से लोगों को मोहित कर देता है।

बांस गीत में एक गायक होता है। उनके साथ दो बांस बजाने वाले होते है। गायक के साथ और दो व्यक्ति होते है जिसे कहते हैं रागी और डेही कहते हैं। यदुवंशियों की यह सदियों पुरानी परंपरा है पर संगीत के क्षेत्र में बॉलीवुड और पाश्चात्य तौर-तरीकों के अतिक्रमण ने इसे विलुप्ति की कगार पर पहुंचा दिया था। अब दोबारा इसकी रौनक लौटने लगी है। 

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