पिछले 50 वर्षों में खराब मौसम के चलते 1.4 लाख लोगों की गई जान, जानें किन राज्यों में हुआ ज्यादा नुकसान
खराब मौसम के चलते पिछले 50 साल के दौरान देश में 1.4 लाख से ज्यादा लोगों की मौत हुई है। इसमें भीषण गर्मी और आकाशीय बिजली गिरने जैसी घटनाएं शामिल हैं। जानें किन देश के किन राज्यों में सबसे ज्यादा नुकसान हुआ है...
नई दिल्ली, पीटीआइ। चरम मौसम घटनाओं (ईडब्ल्यूई) यानी खराब मौसम के चलते पिछले 50 साल के दौरान देश में 1.4 लाख से ज्यादा लोगों की मौत हुई है। इसमें भीषण गर्मी और आकाशीय बिजली गिरने जैसी घटनाएं शामिल हैं। देश के शीर्ष मौसम विज्ञानियों द्वारा एक रिपोर्ट में यह जानकारी दी गई है। रिपोर्ट में कहा गया है कि 1970 से 2019 के दौरान 7,063 चरम मौसम की घटनाएं रिकॉर्ड की गईं। इनमें गर्म हवा, शीत लहर, बाढ़, आकाशीय बिजली और चक्रवात शामिल हैं।
इन राज्यों में सबसे ज्यादा नुकसान
रिपोर्ट में ज्यादा आबादी वाले राज्यों जैसे आंध्र प्रदेश, बिहार, ओडिशा, असम, महाराष्ट्र, केरल और बंगाल को प्राथमिकता में रखते हुए कार्य योजना विकसित करने की जरूरत पर बल दिया गया है। जटिल मौसम संबंधी घटनाओं से सबसे ज्यादा इन्हीं राज्यों को जानमाल का नुकसान उठाना पड़ता है।
कुल 1,41,308 लोगों की गई जान
मौसम विज्ञानियों ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि 50 वर्षों के दौरान 7,063 घटनाओं में से प्रत्येक में औसतन 20 लोगों की मौत के हिसाब से कुल 1,41,308 लोगों की जान गई। इसके मुताबिक बाढ़ की 3,175 घटनाओं में 65,130 लोगों, उष्णकटिबंधीय चक्रवात की 117 घटनाओं में 40,358 लोगों की मौत हुई। प्रचंड गर्म हवाओं से जुड़ी 706 घटनाओं ने 17,362 लोगों की जान ली। जबकि, आकाशीय बिजली गिरने की 2,157 मामलों में 8,862 लोगों की मौत हुई।
लू लगने से बड़ी संख्या में मौतें
भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (आइएमडी) ने इस साल भी उत्तर और पूर्वी भारत में भीषण गर्मी पड़ने का पूर्वानुमान व्यक्त किया है। इन क्षेत्रों में हर साल आमतौर पर लू लगने से बड़ी संख्या में लोगों की मौत होती है। ग्लोबल वार्मिग के चलते पिछले दो दशकों से तापमान बढ़ रहा है। 1901 के बाद से साल 2020 आठवां सबसे गर्म साल था। हालांकि, 2016 में इससे भी भीषण गर्मी पड़ी थी।
दो दशकों में मृत्युदर में कमी
मौसम संबधी यह रिपोर्ट कमलजीत रे, आरके गिरी, एसएस रे, एपी डिमरी और एम राजीवन ने तैयार की है। राजीवन पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय में सचिव हैं। हालांकि, रिपोर्ट में कहा गया है कि पहले के दशकों की तुलना में पिछले दो दशकों में ईडब्लूई में वृद्धि के बावजूद मृत्युदर में 27 फीसद और 31 फीसद की कमी आई।