भारतीय वैज्ञानिकों ने विकसित की भूकंप की चेतावनी देने वाली प्रणाली, दो मिनट का मिलेगा समय, बचेंगी लाखों जिंदगियां

आइआइटी मद्रास के शोधकर्ताओं ने भूकंप की पूर्व चेतावनी देने वाली एक तकनीक विकसित की है। इस तकनीक की मदद से विनाशकारी तरंगों के भूमि की सतह से टकराने के बीच लगभग 30 सेकंड से दो मिनट का लीड समय भी मिल सकता है।

By Krishna Bihari SinghEdited By: Publish:Fri, 12 Nov 2021 07:33 PM (IST) Updated:Sat, 13 Nov 2021 12:49 AM (IST)
भारतीय वैज्ञानिकों ने विकसित की भूकंप की चेतावनी देने वाली प्रणाली, दो मिनट का मिलेगा समय, बचेंगी लाखों जिंदगियां
आइआइटी मद्रास के शोधकर्ताओं ने भूकंप की पूर्व चेतावनी देने वाली प्रणाली विकसित की है।

चेन्नई, पीटीआइ। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आइआइटी) मद्रास के शोधकर्ताओं ने एक ऐसी प्रणाली विकसित की है जिससे न केवल भूकंप की पूर्व चेतावनी दी जा सकती है वरन इससे विनाशकारी तरंगों के भूमि की सतह से टकराने के बीच लगभग 30 सेकंड से दो मिनट का लीड समय भी मिल सकता है। यह अवधि भले ही कम लग सकती है लेकिन कई उपायों के लिए यह पर्याप्त हो सकती है, जिनसे अनगिनत जिंदगियां बच सकती हैं।

इनमें परमाणु रिएक्टरों और मेट्रो जैसी परिवहन सेवाओं को बंद करना व लिफ्ट या एलिवेटर्स को रोकने जैसे उपाय शामिल हैं, जो भूकंप की स्थिति में जान-माल के नुकसान को कम करने में मददगार हो सकते हैं। यह शोध आइआइटी मद्रास में केमिकल इंजीनियरिंग विभाग के प्रोफेसर अरुण के. तंगीराला के नेतृत्व में किया गया है। शोधकर्ताओं में आइआइटी मद्रास में पीएचडी शोधकर्ता कंचन अग्रवाल शामिल हैं। उनका यह अध्ययन शोध पत्रिका प्लास वन में प्रकाशित किया गया है।

जब भूकंप आता है तो यह भूकंपीय तरंगों की एक श्रृंखला उत्पन्न करता है। तरंगों के पहले सेट को पी-वेव कहा जाता है जो हानि रहित होता है। शोधकर्ताओं के मुताबिक, इन तरंगों की शुरुआत का पता लगाना महत्वपूर्ण है, क्योंकि इसके आगमन के समय का एक सटीक अनुमान एक मजबूत प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली विकसित करने में मदद कर सकता है, जिससे विनाशकारी भूकंप तरंगों के अगले सेट के आने के बीच के समय का आकलन किया जा सकता है।

भूकंप के केंद्र और निगरानी स्थल के बीच की दूरी के आधार पर यह लीड समय 30 सेकंड से दो मिनट तक हो सकता है। सभी मौजूदा पी-तरंगों की पहचान की विधियां सांख्यिकीय सिग्नल प्रोसेसिंग और समय-श्रृंखला माडलिंग पर आधारित आइडिया के संयोजन पर आधारित हैं। हालांकि, इन विधियों की कुछ सीमाएं हैं। समय-आवृत्ति या अस्थायी-वर्णक्रमीय स्थानीयकरण विधि से समायोजित करके ऐसी विधियों को और प्रभावी बनाया जा सकता है।

आइआइटी मद्रास का यह नया अध्ययन इस अंतर को पाटने में प्रभावी भूमिका निभा सकता है। यह अध्ययन समय-आवृत्ति स्थानीयकरण सुविधा के साथ भविष्यवाणी ढांचे में एक नया रीयल-टाइम स्वचालित पी-वेव डिटेक्टर और पिकर का प्रस्ताव पेश करता है।

प्रोफेसर तंगीराला के मुताबिक यह जरूरी नहीं है कि प्रस्तावित ढांचा भूकंपीय घटनाओं का पता लगाने तक ही सीमित है, बल्कि इसका व्यापक उपयोग हो सकता है। इसका उपयोग भ्रंशों का पता लगाने और अलगाव के लिए भी किया जा सकता है। इसके अलावा, यह मशीन लर्निंग और डीप लर्निंग माडल को समायोजित कर सकता है, जो इस तरह के आकलन में मानवीय हस्तक्षेप को कम करेगा। 

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