अगर सांस लेने के लिए शुद्ध ऑक्सीजन चाहिए तो याद रहे यही पौधे आज हर मर्ज के लिए है रामबाण

आइए हम सब संकल्प लें कि पौधरोपण की अपने दादा-बाबाओं की संस्कृति को पुनर्जीवित करते हुए हर साल दस पौधे रोपें।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Publish:Mon, 06 Jul 2020 09:49 AM (IST) Updated:Mon, 06 Jul 2020 12:52 PM (IST)
अगर सांस लेने के लिए शुद्ध ऑक्सीजन चाहिए तो याद रहे यही पौधे आज हर मर्ज के लिए है रामबाण
अगर सांस लेने के लिए शुद्ध ऑक्सीजन चाहिए तो याद रहे यही पौधे आज हर मर्ज के लिए है रामबाण

नई दिल्‍ली, जेएनएन। इंसानी कोशिका के पालन-पोषण के लिए प्रकृति ने पादप कोशिका का भी निर्माण किया। धरती पर पुष्पित-पल्लवित होने में दोनों एक दूजे के हमसफर बने। इस सहजीवी संबंध की सहजता से दुनिया में खुशहाली और हरियाली बढ़ती गई। कालांतर में इंसानों ने लोभ के चलते हरियाली को खत्म करना शुरू कर दिया। औद्योगिक युग आते-आते यह सहजीवी संबंध दरक गया। जो पौधे इंसानी विषाक्त उत्सर्जन को अपने में समाहित कर लेते थे, उनकी संख्या घटती चली गई। पौधों से मिलने वाले प्रत्यक्षअप्रत्यक्ष लाभ कम होते गए। इसका प्रतिफल आज हमारे चारों ओर दिखता है। जहरीली हवा, बेतरतीब मौसम, प्राकृतिक आपदाओं की अनियमितता, रेगिस्तान होती जमीन जैसे विद्रूप सामने हैं।

हम यह तो समझते हैं कि यह सब तेजी से पौधों के विलुप्त होने से हुआ। खैर, रोने-धोने से काम नहीं चलेगा। अपनी गलती को सुधारने में ही भलाई है। हर साल एक से सात जुलाई तक देश में वन महोत्सव मनाया जाता है। इसमें पौधे लगाने के लिए लोगों को जागरूक किया जाता है। मानसून से तर हो चुकी जमीन के चलते यह समय पौधरोपण के लिए बहुत अनुकूल है। लिहाजा हमें एक सप्ताह के इस हरियाली वाले उत्सव को अनवरत साल भर चलने वाले अभियान में बदलना होगा। लेकिन ध्यान रहे, हमें उन्हीं पौधों और प्रजातियों का पौधरोपण करना है जो पर्यावरण और इंसानों के लिए लाभदायक हैं।

आइए, हम सब संकल्प लें, कि पौधरोपण की अपने दादा-बाबाओं की संस्कृति को पुनर्जीवित करते हुए हर साल दस पौधे रोपें। किसी पारिवारिक उत्सव या शुभ घड़ी को यादगार बनाने के लिए भी पौधों को रोप सकते हैं। मौका नहीं छोड़ना है। अगर सांस लेने के लिए शुद्ध ऑक्सीजन चाहिए तो इतना तो करना ही होगा। याद रहे यही पौधे आज हर मर्ज के रामबाण हैं।

अर्थव्यवस्था में योगदान: औद्योगिक क्रांति से पहले दुनिया के सभी देश अपनी अधिकांश जरूरतें जंगल से ही पूरी करते थे। भारत की जीडीपी में वनों का 0.9 फीसद योगदान है। इनसे ईंधन के लिए सालाना 12.8 करोड़ टन लकड़ी प्राप्त होती है। हर साल 4.1 करोड़ टन टिंबर मिलता है। महुआ, शहद, चंदन, मशरूम, तेल, औषधीय पौधे प्राप्त होते हैं।

स्वस्थ बनाते हैं: खुद को कीटों से बचाने के लिए पेड़-पौधे फाइटोनसाइड रसायन हवा में छोड़ते हैं। इसमें एंटी बैक्टीरियल खूबी होती है। सांस के जरिए जब ये रसायन हमारे शरीर में जाता है तो हमारी रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ जाती है।

मिट्टी का कटाव रोकते हैं: आठ करोड़ हेक्टेयर भूमि हवा और पानी के चलते मिट्टी के कटाव से गुजर रही है। 50 फीसद भूमि को इसके चलते गंभीर नुकसान हो रहा है। भूमि की उत्पादकता घट रही है। इस भूमि को पेड़-पौधों के जरिए ही बचाया जा सकता है।

प्रदूषण से बचाव: वातावरण से कार्बन डाइऑक्साइड सोख ऑक्सीजन देते हैं। एक एकड़ में लगे पेड़ उतनी कार्बन सोखने में सक्षम हैं जितना एक कार 26,000 मील चलने में उत्सर्जित करती है। साथ ही वे वातावरण में मौजूद हानिकारक गैसों को भी कैद कर लेते हैं।

हानिकारक किरणों से बचाव: पेड़ पौधे धूप की अल्ट्रा वायलेट किरणों के असर को 50 फीसद तक कम कर देते हैं। ये किरणें त्वचा के कैंसर के लिए जिम्मेदार होती हैं। ऐसे में घर के आसपास, बगीचे और स्कूलों में पेड़ लगाने से बच्चे धूप की हानिकारक किरणों से सुरक्षित रहते हैं।

बिजली की बचत: यदि किसी घर के आसपास पौधे लगाए जाएं तो ये गर्मियों के दौरान उस घर की एयर कंडीशनिंग जरूरत को 50 फीसद तक कम कर देते हैं। घर के आसपास पेड़ पौधे लगाने से बगीचे से वाष्पीकरण बहुत कम होता है। नमी भी बरकरार रहती है।

हर अंग करता है दंग: पत्तियां, टहनी और शाखाएं शोर को सोखती हैं, तेज बारिश का वेग धीमा कर मृदा क्षरण रोकती है जड़ें, पत्तियां तने पक्षियों, जानवरों और कीट-पतंगों को आवास मुहैया कराते हैं जड़ें मिट्टी के स्थिरीकरण द्वारा क्षरण रोकती हैं पत्तियां वायु के हानिकारक तत्वों को छानने में सक्षम, वातावरण को नम रखने में सहायक, वाष्पोत्सर्जन प्रक्रिया के तहत प्राणवायु का उत्सर्जन।

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