तमिलनाडु से टकराया चक्रवाती तूफान 'गज', जानें- अर्थ और नामकरण की वजह

‘गाजा’ तूफान का नाम संस्कृत के शब्द गज से बना है, जिसका मतलब होता है हाथी। इस चक्रवाती तूफान को ये नाम श्रीलंका के वैज्ञानिकों ने दिया है। दिलचस्प है तूफानों के नामकरण की ये कहानी।

By Amit SinghEdited By: Publish:Thu, 15 Nov 2018 02:13 PM (IST) Updated:Fri, 16 Nov 2018 09:02 AM (IST)
तमिलनाडु से टकराया चक्रवाती तूफान 'गज', जानें- अर्थ और नामकरण की वजह
तमिलनाडु से टकराया चक्रवाती तूफान 'गज', जानें- अर्थ और नामकरण की वजह

नई दिल्ली [जागरण विशेष]। बंगाल की खाड़ी से उठने वाला चक्रवाती तूफान गाजा, बृहस्पतिवार रात तमिलनाडु के पम्बन और कडलोर के बीच तट से टकरा गया है। इसे लेकर तमिलनाडु और पुड्डुचेरी में ऑरेंज अलर्ट जारी किया गया था। इस दौरान 80-100 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ़्तार से हवा चली। अब ये तूफान केरल की तरफ बढ़ रहा है। केरल से टकराने के बाद ये तूफान अरब महासगर में मिल जाएगा। क्या आप इसका सही नाम और उसका अर्थ जानते हैं। कौन इन खतरनाक तूफानों को तितली, कटरीना, हुदहुद, नरगिस, नीना जैसे नाम देता है? इन तूफानों को नाम देने की वजह क्या है? ऐसे ही कई दूसरे सवाल हैं जिनके बारे में हम यहां पर आपको जानकारी दे रहे हैं। 

‘गाजा’ तूफान का नाम संस्कृत के शब्द गज से बना है, जिसका मतलब होता है हाथी। इस चक्रवाती तूफान को ये नाम श्रीलंका के वैज्ञानिकों ने दिया है। श्रीलंका में हाथियों की अच्छी तादात है और वहां उन्हें काफी सम्मान के तौर पर देखा जाता है। श्रीलंका के रईस लोगों में इन दिनों हाथियों के बच्चे पालने का भी एक नया चलन शुरू हो चुका है। अनुमान लगाया जा रहा है कि इसी वजह से वैज्ञानिकों ने इस तूफान का नाम ‘गज’ रखा है। लेकिन इसको इंग्लिश में Gaza लिखने की वजह से इसको गाजा कहा गया है, जबकि इसका सही नाम गज ही है।  

संचार सुविधा है मुख्य मकसद
अलग-अलग रीजन में उठने वाले तूफानों को अलग-अलग चेतावनी केंद्र के वैज्ञानिकों द्वारा नाम दिया जाता है। इसका मकसद ये होता है कि वैज्ञानिकों, आम जनता और चेतावनी केंद्रों के बीच संचार में सुविधा हो और किसी तरह की गलतफहमी न हो। सामान्यतः भविष्य में आने वाले तूफानों के नाम पहले ही रख कर उनकी सूची तैयार कर ली जाती है। जैसे ‘गज’ के बाद अगला तूफान ‘फेथाई’ होगा। इसका नामकरण थाईलैंड के वैज्ञानिकों ने किया है। इस तूफान के भी इस वर्ष के अंत तक आने की आशंका है।

1953 से वर्ल्ड मेटीरियोलॉजिकल ऑर्गनाइज़ेशन की पहल
दुनिया भर में चक्रवातों के नाम रखने की शुरुआत 1953 से हुई। इसके पहले इस अवधारणा का विकास नहीं हुआ था। 1953 से वर्ल्ड मेटीरियोलॉजिकल ऑर्गनाइज़ेशन (डब्लूएमओ) और मायामी नेशनल हरीकेन सेंटर ने चक्रवातों के नाम रखने की परंपरा शुरू की। डब्लूएमओ जेनेवा स्थित संयुक्त राष्ट्र संघ की एजेंसी है। डब्लूएमओ, उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में आने वाले चक्रवातों के नाम रखता आया है। लेकिन 2004 में डब्लूएमओ की अगुवाई वाली अंतरराष्ट्रीय पैनल को भंग कर दिया गया। इसके बाद सभी देशों से अपने-अपने क्षेत्र में आने वाले चक्रवात का नाम ख़ुद रखने को कहा गया।

उत्तरी हिंद महासागर में बाद में शुरू हुई ये पहल
पहले उत्तरी हिंद महासागर में उठने वाले चक्रवातों का कोई नाम नहीं रखा जाता था। जानकारों के मुताबिक इसकी वजह यह थी कि सांस्कृतिक विविधता वाले इस क्षेत्र में ऐसा करते हुए बेहद सावधानी की जरूरत थी ताकि लोगों की भावनाएं आहत होने से कोई विवाद खड़ा न हो। लेकिन बाद में हिंद महासागर क्षेत्र के आठ देशों ने भारत की पहल पर चक्रवातीय तूफानों को नाम देने की व्यवस्था शुरू की। इसमें भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश, मालदीव, म्यांमार, ओमान, श्रीलंका और थाईलैंड को मिलाकर कुल आठ देश शामिल हैं।

पाकिस्तानी मौसम वैज्ञानिकों ने नाम दिया 'तितली'
हिंद महासागर क्षेत्र के आठ देशों ने भारत की पहल पर चक्रवात को नाम देने की व्यवस्था शुरू की। इन देशों के मौसम वैज्ञानिकों ने 64 नामों की सूची बनाई है। हर देश की तरफ से आठ नाम इसमें शामिल किए गए हैं। पिछली बार भारी तबाही मचाने वाले तूफान ‘तितली’ का नामकरण पाकिस्तान ने किया था। 'तितली' के बाद आने वाले तूफान का नाम 'लोबान' रखा गया था, जो ओमान के मौसम वैज्ञानिकों ने प्रस्तावित किया है। 'लुबान' के आसपास ही आए चक्रवाती तूफान का नाम 'दाए' था, जो म्यांमार के मौसम वैज्ञानिकों ने रखा था। अब बारी श्रीलंका की थी, लिहाजा उनके प्रस्तावित नाम के अनुसार मौजूदा तूफान का नाम गाजा रखा गया है।

इतनी सावधानी के बावजूद विवाद
साल 2013 में 'महासेन' तूफान को लेकर आपत्ति जताई गई थी। श्रीलंका द्वारा रखे गए इस नाम पर इसी देश के कुछ वर्गों और अधिकारियों को ऐतराज था। उनके मुताबिक राजा महासेन श्रीलंका में शांति और समृद्धि लाए थे, इसलिए आपदा का नाम उनके नाम पर रखना गलत है। इसके बाद इस तूफान का नाम बदलकर 'वियारु' कर दिया गया।

क्या महिला तूफान पुरुष तूफानों से ज्यादा खतरनाक होते हैं
तूफानों और चक्रवातों के नाम महिलाओं के नाम पर ही क्यों? इसे लेकर भी विवाद हो चुका है, जिसके बाद तूफानों के नाम पुरुषों के नाम पर भी रखने शुरू किए गए। वेस्टइंडीज के निवासी तूफानों और चक्रवातों के नाम, अपने किसी संत के नाम पर रखते रहे हैं। ठीक वैसे ही जैसे हमारे भारत में रेनबो को हिंदू देवताओं के मुखिया इंद्र से जोड़ते हुए इंद्रधनुष कहते रहे हैं।

नाम को लेकर विवाद में ईवान आर. तन्नेहिल की किताब ‘हरीकेंस’ में पता चला कि आस्ट्रेलियाई मौसम विज्ञानी क्लीमेंट रैगी ने 19वीं सदी के पूर्वाध में उष्णकटिबंधीय चक्रवातों के महिला नाम रखने का सिलसिला शुरू किया था। दूसरे विश्व युद्ध के दौरान तो तूफानों के महिला नामकरण की अवधारणा इतनी तेज हुई कि इसके खिलाफ कई नारीवादियों ने नाराजगी जाहिर की। 50, 60 और 70 के दशक में इस मसले को घोर लैगिंक पूर्वाग्रह और नारी अपमान से जोड़कर प्रमुखता से उठाया गया। उस समय की प्रखर नारीवादी रॉक्सी बोल्टन ने मौसम सेवा को एक आपत्तिनामा भेजकर पूछा, ‘क्या महिलाएं जीवन और समाज के लिए नाशक हैं? क्या महिलाएं तूफान की तरह ही तबाही लाती हैं?’ बोल्टन ने अमेरिकी संसद के पुरुष सदस्यों और मंत्रियों के नाम पर चक्रवातों के नामकरण की वकालत की। ताकि पुरुषों को महिला समाज का अपमान समझ में आए। उनकी आवाज में जब हजारों लोगों की आवाज मिली तो 1979 में पुरुष तूफानों का जन्म हुआ। फिर पुरुषों के नाम से भी तूफानों के नाम रखे जाने लगे। पर अभी भी महिला तूफानों के नाम कहीं ज्यादा हैं।

हाल ही में इलिनॉय यूनिवर्सिटी के एक शोध में यहां तक बता दिया गया कि महिला तूफान पुरुष तूफानों से तीन गुना खतरनाक होते हैं। नारीवादियों ने इस पर घोर आपत्ति जताई थी। ‘एनसाइक्लोपीडिया ऑफ हरीकेन, टायफून एंड साइक्लोन’ में लिखा गया है, ‘तूफानों के अप्रत्याशित व्यवहार और चरित्र के कारण उनका नामकरण महिलाओं के नाम पर किया जाता रहा है’। नारीवादियों का तर्क है कि जो पैनल ऐसे नाम रखते हैं, उनमें मर्दों का वर्चस्व है।

यह भी पढ़ेंः इस बार पहाड़ों पर जल्द शुरू हुई बर्फबारी, जानें- कैसा रहेगा इस बार सर्दियों का मौसम

chat bot
आपका साथी