बांधों की सुरक्षा प्रक्रिया में एकरूपता लाना चाहती है सरकार, राज्‍यसभा में विधेयक पेश, लोकसभा हो चुका है पारित

बांधों की सुरक्षा एक बड़ी और गंभीर चुनौती है इसीलिए सरकार सदन से आनन-फानन में पारित कराने के बजाय वह लगातार विपक्षी दलों को इस पर होने में वाली बहस में हिस्सा लेने का आग्रह कर रही है।

By Krishna Bihari SinghEdited By: Publish:Wed, 01 Dec 2021 08:35 PM (IST) Updated:Wed, 01 Dec 2021 08:54 PM (IST)
बांधों की सुरक्षा प्रक्रिया में एकरूपता लाना चाहती है सरकार, राज्‍यसभा में विधेयक पेश, लोकसभा हो चुका है पारित
सरकार बांध सुरक्षा विधेयक, 2019 को लेकर सभी राजनीतिक दलों से गंभीर मंत्रणा करना चाहती है।

सुरेंद्र प्रसाद सिंह, नई दिल्ली। बांध सुरक्षा विधेयक, 2019 को लेकर सरकार सभी राजनीतिक दलों से गंभीर मंत्रणा करना चाहती है। बांधों की सुरक्षा एक बड़ी और गंभीर चुनौती है। इसीलिए सदन से आनन-फानन में पारित कराने के बजाय वह लगातार विपक्षी दलों को इस पर होने में वाली बहस में हिस्सा लेने का आग्रह कर रही है। लोकसभा से यह विधेयक पहले ही पारित हो चुका है। सरकार की मंशा देश के सभी बांधों की सुरक्षा संबंधी प्रक्रिया में एकरूपता लाने की है। विधेयक के जरिये एक ऐसा तंत्र विकसित किया जाएगा जो सभी बांधों की सुरक्षा की निगरानी करेगा। इसमें राज्यों की अहम भूमिका सुनिश्चित की गई है।

कुछ राज्यों ने जताया है एतराज

हालांकि, कुछ राज्यों ने विधेयक के प्रविधानों पर एतराज जताया है। इसके लिए विधेयक में जरूरी हुआ तो संशोधन भी किया जा सकता है। सूत्रों का कहना है कि तमिलनाडु और कर्नाटक जैसे राज्यों के प्रतिनिधि सदन में अपनी आपत्तियां जता सकते हैं। दरअसल, जल राज्य का विषय है। विधेयक में किसी भी तरह राज्यों के अधिकारों के साथ छेड़छाड़ नहीं करने का आश्वासन दिया जा रहा है। विधेयक के माध्यम से एक तंत्र तैयार किया जाएगा जो राज्यों के अधिकारों की सुरक्षा करेगा।

सुरक्षा मानकों का है प्रविधान

विधेयक में बांधों के निर्माण और रखरखाव के साथ उसके सुरक्षा मानकों का प्रविधान है। बांधों का सीधा ताल्लुक राज्यों के सिंचाई विभाग और केंद्रीय जल आयोग से है, जिन्हें मजबूती देने की जरूरत है। बांधों के निरीक्षण संबंधी कार्य राज्य सरकारों के पास रहेंगे। बांधों के निर्माण की विफलता से बचने के लिए निवारक तंत्र भी बनेगा क्योंकि बांधों की विफलता के लिए कोई स्थान नहीं है। दरअसल जलवायु परिवर्तन के साथ पानी के मुद्दे पर सावधानी और सटीकता के साथ विचार करने की जरूरत है। बांधों की एकरूपता पर विचार करते समय जलवायु, जलग्रहण क्षेत्रों जैसे स्थानीय कारकों पर भी विशेष बल देने की जरूरत है।

293 बांध सौ साल से भी ज्यादा पुराने

देश में फिलहाल कुल 5,344 बांधों में से 92 प्रतिशत बांधों का निर्माण एक राज्य से दूसरे राज्य में प्रवाहित होने वाली नदियों पर किया गया है। इनमें से 293 बांध ऐसे हैं जो 100 साल से भी ज्यादा पुराने हैं। उनकी सुरक्षा पर विशेष जोर देने की जरूरत है। देश में 25 प्रतिशत बांध 50 से 100 साल पहले बनाए गए थे। 80 प्रतिशत बांध 25 साल या उससे पुराने हैं। आजादी के बाद देश में कई बांध ध्वस्त भी हो चुके हैं। 1979 में गुजरात में ऐसी ही एक घटना में हजारों लोगों की जान चली गई थी।

जमती गाद की वजह से घट रही बांधों की जल भंडारण क्षमता

देश में बांध सुरक्षा संबंधी गंभीर चुनौतियां हैं। कुछ बांध बहुत पुराने हो चुके हैं, जिनके डिजायन जल विज्ञान और बाकी सुरक्षा प्रणाली आधुनिक टेक्नोलाजी पर आधारित नहीं है। इसके अलावा ज्यादातर बांधों में बड़े पैमाने पर गाद (सिल्ट) जमा होने से उनकी जल भंडारण क्षमता लगातार कम हो रही है। इन्हीं चुनौतियों से निपटने के लिए बांध सुरक्षा विधेयक की जरूरत महसूस की गई। 

chat bot
आपका साथी