निजी हाथों में खिसक गई सरकारी जमीन, कैसे हुआ ये पूरा खेल जांच शुरू

इंदौर के सिरपुर की 443 एकड़ जमीन का मामला पुराने अफसरों की मिलीभगत का भी शक। दस्तावेज जुटा रहा राजस्व विभाग पंजीयन विभाग से भी मांगेंगे जानकारी कब--किसने की जमीन की रजिस्ट्री। इंदौर के सिरपुर क्षेत्र में सर्वे नंबर 525 की 443 एक़़ड सरकारी जमीन।

By Shashank PandeyEdited By: Publish:Thu, 16 Sep 2021 08:10 AM (IST) Updated:Thu, 16 Sep 2021 08:10 AM (IST)
निजी हाथों में खिसक गई सरकारी जमीन, कैसे हुआ ये पूरा खेल जांच शुरू
मध्य प्रदेश के इंदौर में सरकारी जमीन का मामला।(फोटो: दैनिक जागरण)

इंदौर, जेएनएन। मध्य प्रदेश के इंदौर में सरकारी जमीन के निजी हाथों में खिसकने का मामला सामने आया है। इंदौर के सिरपुर क्षेत्र में सर्वे नंबर 525 की 443 एक़़ड सरकारी जमीन होलकर राजवंश की महारानी उषा राजे होलकर के नाम होने के मामले में अफसरों ने जांच शुरू कर दी है। यह बात किसी को गले नहीं उतर रही कि सरकारी अभिलेखों में दर्ज इतनी ब़़डी सरकारी जमीन खिसककर निजी नामों पर कैसे चली गई। इसमें पुराने अधिकारियों की भूमिका पर भी सवाल उठ रहे हैं।

जांच अधिकारियों ने बताया कि हम जमीन से जुड़े पुराने दस्तावेज जुटा रहे हैं। इसमें कुछ समय लगेगा। जांच में यह भी देखा जाएगा कि होलकर के बाद यह जमीन और किन-किन लोगों को कैसे बिकी और किस व्यक्ति ने किसको रजिस्ट्री की। पंजीयन विभाग से भी इसकी जानकारी मांगी जाएगी। प्रशासन की ओर से अपर कलेक्टर अभय बेड़ेकर की अगुआई में एसडीएम, तहसीलदार, राजस्व निरीक्षक और पटवारियों की टीम जांच में लगी है।

अब भी चल रहा अवैध निर्माण

एक तरफ प्रशासन मामले की जांच कर रहा है तो दूसरी तरफ इसी जमीन के एक हिस्से पर अब भी अवैध निर्माण हो रहे हैं। अधिकारियों का कहना है कि अतिक्रमण करने वालों को नोटिस जारी किए जाएंगे और काम रकवाया जाएगा।

यह है मामला

शहर के सिरपुर तालाब के कैचमेंट एरिया से लगी 443 एक़़ड जमीन 1963 तक शासकीय थी, लेकिन इसके बाद वह अचानक होलकर राजवंश की महारानी उषषाराजे होलकर के नाम हो गई। इसके बाद यह जमीन बिकती चली गई और आज इस पर विदुर नगर, प्रजापत नगर जैसी अवैध कालोनियां बस गई हैं। बाजार मूल्य के हिसाब से यह जमीन एक हजार करोड़ रपये से अधिक की है। अधिकारियों के अनुसार 1925 में मिसल बंदोबस्त से लेकर 1962-63 तक यह जमीन विश्रामबाग फारेस्ट के नाम से शासकीय भूमि के रूप में दर्ज थी। इसके बाद 1964 में अचानक इस जमीन पर उषषाराजे होलकर का नाम आ गया। राजस्व रिकार्ड में इस जमीन का मूल सर्वे नंबर 525 है। आज भी इस जमीन पर अवैध तरीके से जमीन की खरीदी-बिक्री हो रही है।

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