ओमिक्रोन की गति थामने के लिए जरूरी है जीनोम स्किवेंसिंग, भारत में तैयार है इसका बुनियादी ढांचा

देश के शोधकर्ताओं व सूक्ष्म जीवविज्ञानियों का मानना है कि भारत में एक कुशल निगरानी प्रणाली के लिए पर्याप्त बुनियादी ढांचा है। भारत जीनोम सिक्वेंसिंग (अनुक्रमण) प्रयोगशालाओं के मामले में काफी कुशल है। तभी तो नमूने लेने के चार दिन के भीतर ओमिक्रोन के भारत पहुंचने की रिपोर्ट मिल गई।

By Dhyanendra Singh ChauhanEdited By: Publish:Mon, 06 Dec 2021 08:40 PM (IST) Updated:Mon, 06 Dec 2021 09:46 PM (IST)
ओमिक्रोन की गति थामने के लिए जरूरी है जीनोम स्किवेंसिंग, भारत में तैयार है इसका बुनियादी ढांचा
चार राष्ट्रीय संस्थाओं की 28 प्रयोगशालाओं का नेटवर्क मुस्तैदी से कर रहा है काम

नई दिल्ली, [जागरण स्पेशल]। भारत में ओमीक्रोन के मामले रिपोर्ट होने के साथ ही एक बार फिर इस पर चर्चा शुरू हो गई है कि क्या इसकी निगरानी के लिए हमारे पास जरूरी इंफ्रास्ट्रक्चर (बुनियादी ढांचा) है। तो खबर अच्छी है। देश के शोधकर्ताओं व सूक्ष्म जीवविज्ञानियों का मानना है कि भारत में एक कुशल निगरानी प्रणाली के लिए पर्याप्त बुनियादी ढांचा है। भारत जीनोम सिक्वेंसिंग (अनुक्रमण) प्रयोगशालाओं के मामले में काफी कुशल है। तभी तो नमूने लेने के चार दिन के भीतर ओमिक्रोन के भारत पहुंचने की रिपोर्ट मिल गई। देशभर के विभिन्न प्रयोगशालाओं की रिपोर्ट:

निगरानी के लिए पर्याप्त हैं प्रयोगशालाएं

कई शोधकर्ताओं और सूक्ष्म जीवविज्ञानी ने दावा किया कि जीनोम अनुक्रमण प्रयोगशालाओं की संख्या में भारत में कोविड-19 स्थिति को समझने के लिए पर्याप्त बुनियादी ढांचा है। राष्ट्रीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान संस्थान (आइसीएमआर) के निदेशक डा समीरन पांडा के अनुसार भारत जीनोम अनुक्रमण करने की अपनी क्षमता में काफी अच्छी तरह से तैयार है। जगन्नाथ गुप्ता इंस्टीट्यूट आफ मेडिकल साइंसेज एंड हास्पिटल, कोलकाता में माइक्रोबायोलाजी के प्रोफेसर डा निशिथ कुमार पाल का कहना है कि कोरोना संक्रमण की दूसरी लहर के दौरान बड़ी संख्या में मामले सामने आए थे, इसलिए जीनोम सीक्वेंसिंग की प्रयोगशालाओं की संख्या कम दिखाई पड़ रही थी। वह महामारी की एक अस्वाभाविक स्थिति है। वर्तमान परिस्थितियों में यह अपर्याप्त नहीं हैं।

निगरानी के लिए बनाया इंसाकाग, 28 प्रयोगशालाओं का संघ

भारत में जब महामारी तेजी से बढ़ रही थी। विज्ञानियों का मानना था कि जीनोम सिक्वेंसिंग किए बगैर इसे थामना संभव नहीं होगा। स्थिति को देखते हुए भारत सरकार ने 25 दिसंबर 2020 में भारतीय कोविड-2 जीनोमिक्स कंसोर्टियम (इंसाकाग) का गठन किया। इंसाकाग जीनोमिक विविधताओं की निगरानी के लिए 28 राष्ट्रीय प्रयोगशालाओं का एक संघ है। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय, और जैव प्रौद्योगिकी विभाग के साथ देश की चार संस्थाओं ने साथ मिलकर इस काम को शुरू किया। यह चार संस्थाएं हैं-

- राष्ट्रीय रोग नियंत्रण केंद्र (एनसीडीसी), दिल्ली

- डीबीटी नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ बायोमेडिकल जीनोमिक्स (एनआइबीएमजी), कल्याणी, बंगाल

- वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआइआर)

और भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आइसीएमआर) के साथ मिलकर संयुक्त रूप से शुरू किया गया है। तीसरी लहर की संभावना को ध्यान में रखते हुए जीनोम सिक्वेंसिंग को बढ़ाने का निर्णय लिया गया है।

चार शहरों में लगातार हो रही है सीक्वेंसिंग

सेंटर फार सेल्युलर एंड मालिक्यूलर बायोलाजी (सीसीएमबी) के पूर्व निदेशक शीर्ष वैज्ञानिक राकेश मिश्रा ने ने बताया चार शहरों नई दिल्ली, बेंगलुरु, हैदराबाद और पुणे के चार के राष्ट्रीय प्रयोगशालाओं में लगातार जीनोम सिक्वेंसिंग का काम चल रहा है। यही वजह है कि दक्षिण अफ्रीका में ओमिक्त्रोन मिलने की पुष्टि के चंद दिनों के भीतर ही सिक्वेंसिंग के जरिये बेंगलुरू में दो केस होने की पुष्टि हो गई। इससे ओमिक्रोन के रोकथाम के उपाय पर काम हो सकेगा।

वैश्विक स्तर पर भी साझा कर रहे हैं डाटा

नेशनल सेंटर फार बायोलिजकल साइंस (एनसीबीएस) के सत्यजीत मेयर ने बताया देश में सैंपल इकट्ठा करने के चार दिन बाद ही इसे जारी कर दिया गया। इससे यह अंदाजा लगाया जा सकता है कि कितनी तेजी से काम चल रहा है। देश-दुनिया के विज्ञानियों के लिए यह डाटा वैश्रि्वक स्तर पर भी साझा किया जा रहा है।

चुनौतियां: सही समय पर जांच सबसे ज्यादा जरूरी

1. नमूनों का संरक्षण महत्वपूर्ण है क्योंकि आरएनए अधिक संवेदनशील है। चूंकि कोविड -19 एक आरएनए वायरस है, इसलिए वायरल आरएनए को बरकरार रखने के लिए उपयुक्त परिस्थितियों में नमूनों को संरक्षित करना एक चुनौती है।

2. आरटी-पीसीआर विश्लेषण के लिए कुशल तकनीकी हाथों की आवश्यकता होती है, जिसकी अभी भी भारत के बड़े हिस्से में कमी है। दूरदराज के इलाकों में इस तरह की जांच प्रयोगशालाएं बहुत महत्वपूर्ण हैं।

3. परीक्षण का समय बहुत महत्वपूर्ण है। आरटी-पीसीआर सहित विभिन्न तरीकों से वायरस का आसानी से पता लगाने के लिए पर्याप्त वायरल लोड की आवश्यकता होती है। जागरूकता के अभाव में यह नहीं हो पा रहा है।

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