नागरिकता एक महत्वपूर्ण अधिकार, गुवाहाटी हाई कोर्ट ने विदेशी ट्रिब्यूनल का आदेश किया रद

ट्रिब्यूनल के फैसले के खिलाफ राज्य की राजधानी दिसपुर से 70 किलोमीटर दूर मोरीगांव जिले के मोरीबाड़ी के रहने वाले असोरउद्दीन की याचिका पर जस्टिस मनीष चौधरी और जस्टिस एन. कोटेश्वर सिंह की पीठ ने यह फैसला सुनाया।

By Manish PandeyEdited By: Publish:Tue, 14 Sep 2021 07:17 AM (IST) Updated:Tue, 14 Sep 2021 07:17 AM (IST)
नागरिकता एक महत्वपूर्ण अधिकार, गुवाहाटी हाई कोर्ट ने विदेशी ट्रिब्यूनल का आदेश किया रद
ट्रिब्यूनल को योग्यता के आधार पर तय करना चाहिए नागरिकता का अधिकार

गुवाहाटी, प्रेट्र। गुवाहाटी हाई कोर्ट ने मोरीगांव जिले के रहने वाले एक शख्स को विदेशी घोषित करने वाले विदेशी ट्रिब्यूनल के एक पक्षीय आदेश को खारिज कर दिया है। हाई कोर्ट ने कहा कि नागरिकता व्यक्ति का एक महत्वपूर्ण अधिकार है, जिसे ट्रिब्यूनल को योग्यता के आधार पर तय करना चाहिए था। ट्रिब्यूनल के फैसले के खिलाफ राज्य की राजधानी दिसपुर से 70 किलोमीटर दूर मोरीगांव जिले के मोरीबाड़ी के रहने वाले असोरउद्दीन की याचिका पर जस्टिस मनीष चौधरी और जस्टिस एन. कोटेश्वर सिंह की पीठ ने यह फैसला सुनाया।

मोरीगांव ट्रिब्यूनल असम के 100 ऐसे अर्ध-न्यायिक निकायों में से एक है, जिन्हें उन लोगों की नागरिकता पर निर्णय लेना अनिवार्य है, जिन्हें सीमा पुलिस की तरफ से संदिग्ध विदेशियों के रूप में चिह्नित किया गया है या मतदाता सूची में संदिग्ध मतदाता (डी-वोटर) के रूप में लिस्ट किया गया है। असोरउद्दीन ने दलील दी कि मोरीगांव ट्रिब्यूनल ने उन्हें विदेशी अधिनियम, 1946 के तहत विदेशी घोषित कर दिया, क्योंकि वह संवादहीनता के कारण ट्रिब्यूनल में सुनवाई से चूक गए और उन्हें अपनी नागरिकता स्थापित करने के लिए सुबूत पेश करने में समय लग गया।

हाई कोर्ट की पीठ ने नौ सितंबर को अपने फैसले में कहा कि नागरिकता व्यक्ति का एक महत्वपूर्ण अधिकार होने के नाते आमतौर पर योग्यता के आधार पर तय किया जाना चाहिए, जो संबंधित व्यक्ति की तरफ से प्रस्तुत किए जा सकने वाले भौतिक सुबूत पर विचार करके किया जाना चाहिए, न कि डिफाल्ट के रूप में जैसा कि वर्तमान मामले में हुआ है।

हाई कोर्ट ने याचिकाकर्ता को अपनी नागरिकता स्थापित करने के लिए विदेशी ट्रिब्यूनल के समक्ष पेश होने के लिए आठ नवंबर तक का समय दिया है। साथ ही हाई कोर्ट ने उन्हें 5,000 रुपये का जमानत बांड और इतनी ही राशि की जमानत राशि जमा करने का भी आदेश दिया। इसके अलावा उन्हें ट्रिब्यूनल को लागत के रूप में 5,000 रुपये का भुगतान करने के लिए भी कहा गया है। हाई कोर्ट ने कहा कि अगर असोरउद्दीन भुगतान करने में विफल रहता है या 8 नवंबर को या उससे पहले विदेशी ट्रिब्यूनल के सामने पेश नहीं होता है, तो हाई कोर्ट की तरफ से निर्धारित आदेश को पुनर्जीवित किया जाएगा और फिर कानून अपना काम करेगा।

chat bot
आपका साथी