कोविशील्ड वैक्सीन की दो खुराकों में 12-16 सप्ताह का अंतर करने की सिफारिश, कोवैक्सीन की खुराक में कोई बदलाव नहीं
भारत में कोविड-19 महामारी की रोकथाम के लिए लगाई जाने वाली कोविशील्ड वैक्सीन की दो खुराकों का अंतराल बढ़ाने की सिफारिश की गई है। ऐसा इसलिए भी किया गया है क्योंकि इससे लोगों को अधिक समय तक इम्युनिटी बरकरार रह सकेगी।
नई दिल्ली (एजेंसियां)। सरकार के पैनल ने कोरोना महामारी की रोकथाम को लगाई जा रही कोविड-19 वैक्सीन कोविडशील्ड की दो खुराकों में 12 से 16 सप्ताह का अंतर करने की सिफारिश की है। पीटीआई के मुताबिक नेशनल टेक्नीकल एडवाइजरी ग्रुप ऑन इम्यूनाइजेशन ने इसकी सिफारिश की है। एएनआई के मुताबिक इस ग्रुप ने कोवैक्सीन की दो खुराक के अंतराल को बढ़ाने की कोई जरूरत महसूस नहीं की है। सरकार के पैनल की तरह से इस तरह की ये सिफारिश उस समय सामने आई है जब एक नई स्टडी में इस तरह का दावा किया गया था कि यदि कोविड-19 वैक्सीन की दोनों खुराकों के बीच अंतराल को बढ़ा दिया जाए तो इससे होने वाली मौतों को भी कम किया जा सकता है।
रॉयटर्स की एक खबर के मुताबिक इसमें कहा गया था कि ये तभी कारगर होगा जब परिस्थितियां अनुकूल होंगी। आपको बात दें कि भारत ने पहले भी कोविड-19 की रोकथाम को लगाई जाने वाली वैक्सीन की दो खुराकों में अंतराल को बढ़ाया था। अब एक बार फिर से विश्व भर में इस डोज के अंतराल को बढ़ाए जाने की चर्चा जोरों पर चल रही है। ब्रिटेन ने अपने यहां पर दो खुराकों के बीच 12 सप्ताह का अंतर करने का फैसला लिया है। खबर में कहा गया है कि वहां पर कोरोना वैक्सीन की पहली डोज के बाद करीब 80 फीसद मौतों को कम किया गया है। इसके अलावा संक्रमण की रफ्तार भी करीब 70 फीसद तक कम हुई है।
रॉयटर्स की खबर के मुताबिक, फाइजर कंपनी का ये भी कहना है कि दो खुराक के बीच समय सीमा को बढ़ाने का असर 65 वर्ष से कम उम्र के लोगों पर भी दिखाई दे सकता है। कंपनी ने ये भी साफ किया है कि इसके बेहद परिणाम के लिए कुछ अनुकूल परिस्थितियों का होना बेहद जरूरी है। हालांकि, कंपनी ने साफ किया है कि उनके पास फिलहाल इसको लेकर न तो कोई पुख्ता सुबूत है और न ही कोई डाटा ही है। यही वजह है कि फाइजर ब्रिटेन से आने वाली खबरों को आधार बनाकर ये बात कह रही है।
खबर के मुताबिक, मिनेसोटाक के मायो क्लिनिक के थॉमस सी किंग्सलेन ने अपनी रिसर्च में कहा है कि वैक्सीन की दो खुराक में अंतराल को बढ़ाकर न सिर्फ वायरस से होने वाली मौतों को कम किया जा सकता है, बल्कि इससे स्वास्थ्य सेवाओं पर बढ़ रहे बोझ को भी कम करने में मदद मिल सकती है। इससे संक्रमण की रफ्तार को भी कम किया जा सकता है। कहा ये भी जा रहा है कि इस तरह से वैक्सीन की कारगरता को करीब 80 फीसद तक किया जा सकता है।