पाकिस्‍तान में सेना से इतर जाने वालों का होता रहा है बुरा अंजाम, भुट्टो से लेकर नवाज तक हैं इसका उदाहरण

पाकिस्‍तान में सेना का विरोध करने वाला कभी चैन से नहीं बैठा है। उसको या तो मरवा दिया गया या फिर उसका तख्‍तापलट कर उसको जेल में डाल दिया गया। यही पाकिस्‍तान का एक कड़वा सच भी है।

By Kamal VermaEdited By: Publish:Fri, 23 Oct 2020 04:01 PM (IST) Updated:Sun, 25 Oct 2020 07:55 AM (IST)
पाकिस्‍तान में सेना से इतर जाने वालों का होता रहा है बुरा अंजाम, भुट्टो से लेकर नवाज तक हैं इसका उदाहरण
पाकिस्‍तान का सैन्‍य इतिहास वहां की राजनीति पर हावी रहा है।

नई दिल्‍ली (ऑनलाइन डेस्‍क)। पाकिस्‍तान में किसी भी प्रधानमंत्री ने तभी तक राज किया है, जब तक उसने सेना की हां में हां मिलाई। जब उसने ऐसा नहीं किया तो सेना ने उसको किनारे कर दिया। पाकिस्‍तान में ऐसे एक नहीं कई उदाहरण देखने को मिल जाते हैं। पाकिस्‍तान का राजनीतिक और सैन्‍य-राजनीतिक इतिहास भी इसकी गवाही देता है। आज हम आपको ऐसे ही पाकिस्‍तान के प्रधानमंत्रियों के बारे में जानकारी दे रहे हैं जिन्‍हें सेना ने सत्‍ता से बेदखल कर दिया। 2007 में बेनजीर भुट्टो की हत्‍या के बाद पाकिस्‍तान में बनी पीपीपी की सरकार ने वहां के इतिहास में पहली बार अपना कार्यकाल सफलतापूर्वक पूरा किया था।

पाकिस्‍तान के निर्माण के बाद मुस्लिम लीग के अध्यक्ष मुहम्मद अली जिन्ना वहां के नए गवर्नर जनरल बने थे। उन्‍होंने लियाकत अली खान को देश का पहला प्रधानमंत्री नियुक्‍त किया था, लेकिन फौज की साजिश के चलते 16 अक्टूबर, 1951 को लियाकत अली की हत्या करवा दी गई। उनकी हत्या के बाद 1951 से 1958 तक के सात वर्षो में पाकिस्तान को सात प्रधानमंत्री और मिले। ये सभी गवर्नर जनरल द्वारा नियुक्त थे, न कि चुनकर आए हुए।

जुल्‍फिकार अली भुट्टो 1973-1977 तक पाकिस्‍तान के 9वें प्रधानमंत्री रहे और इससे पहले 1971-1973 तक वो देश के चौथे राष्‍ट्रपति थे। पीएम रहते हुए उन्‍होंने तत्‍कालीन लेफ्टिनेंट जनरल जिया उल हक को तरक्‍की देकर सेनाध्‍यक्ष बनाया था। लेकिन उसी जिया उल हक ने बाद में उनकी सरकार का तख्‍ता पलट कर उन्‍हें न सिर्फ जेल में डाल दिया, बल्कि उनपर चलाए गए मुकदमों के चलते उन्हें 4 अप्रैल 1979 रावलपिंडी सेंट्रल जेल में फांसी दे दी गई। पूरी दुनिया इस बात को जानती है कि कानून की आड़ में ये एक हत्‍या थी, जिसको जिया उल हक ने अंजाम दिया था। भुट्टो को कोर्ट ने अपने राजनीतिक प्रतिद्वंदी के हत्या करवाने का दोषी मानते हुए फांसी की सजा सुनाई थी। उस वक्‍त अंतरराष्‍ट्रीय समुदाय से लगातार भुट्टो को फांसी की सजा न दिए जाने की अपील की गई थी, लेकिन हक ने इस अपील को यह कहते हुए खारिज कर दिया था कि वह सुप्रीम कोर्ट के आदेश में दखल नहीं दे सकते हैं। बीबीसी से एक खास इंटरव्‍यू में भी उन्‍होंने इसका जिक्र किया था। वैश्विक मंच से आ रहे दबाव की वजह से भुट्टो को तय समय से तीन घंटे पहले ही फांसी के फंदे पर लटका दिया गया था। 17 अगस्‍त 1988 को जिया उल हक की हवाई दुर्घटना में मौत हो गई। वो उस वक्‍त देश के छठे राष्‍ट्रपति थे।

बेनजीर भुट्टो पाकिस्‍तान की दो बार प्रधानमंत्री बनीं। पहली बार वो 1988-1990 तक और दूसरी बार 1993-1996 तक पीएम रहीं। उन्‍हें देश की पहली महिला प्रधानमंत्री होने का भी गौरव हासिल है। अपने राजनीतिक करियर में उन्‍होंने कई उतार-चढ़ाव देखे। जिया उल हक ने उन्‍हें 1984 में देश निकाला दे दिया था। इसके दो साल बाद वो स्‍वदेश वापस आईं। 1990 में उनकी सरकार को राष्‍ट्रपति गुलाम इशाक खान ने बर्खास्त कर दिया था। इसकी वजह सेना से उनका गतिरोध था और खान सेना के कहे पर काम करते थे। उनके ऊपर भ्रष्‍टाचार के आरोप लगाए गए थे। दूसरी बार उनकी सत्‍ता को राष्‍ट्रपति फारूक अहमद खान लेगारी ने बर्खास्‍त कर दिया था। 1997 में उनको चुनाव में हार मिली और वो दुबई चली गईं। 2007 के चुनाव में उन्‍होंने बढ़चढ़कर हिस्‍सा लिया था, लेकिन एक रैली के दौरान उनकी गोली मारकर हत्‍या कर दी गई।

बेनजीर के बाद नवाज शरीफ सत्‍ता में आए। उनकी सरकार को भी पहली बार में भ्रष्‍टाचार के आरोप में बर्खास्‍त कर दिया गया। नवाज तीन बार अपना प्रधानमंत्री का कार्यकाल पूरा करने से चूक गए। इमरान खान के सत्‍ता में आने से पहले उन्‍हें कोर्ट ने भ्रष्‍टाचार के आरोंपों के तहत अयोग्‍य करार दिया था। इसकी वजह से उन्‍हें इस्‍तीफा देना पड़ा था। इससे पहले 1999 में उनकी सरकार का तख्‍ता पलट कर दिया गया। ये तख्‍तापलट करने वाले तत्‍कालीन सेनाध्‍यक्ष परवेज मुशर्रफ थे। ये संयोग ही है कि नवाज ने ही उन्‍हें तरक्‍की देकर सेनाध्‍यक्ष बनाया था, लेकिन सेना से अलगाव के चलते उनकी सरकार का तख्‍तापलट किया गया और भारत के ऊपर युद्ध थोप दिया गया, जिसको पूरी दुनिया कारगिल युद्ध के नाम से जानती है।

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