Jaswant Singh: पूर्व मंत्री जसवंत सिंह ने 1999 में हाईजैक प्लेन छुड़ाने में निभाया था अहम रोल

24 दिसंबर 1999 को इंडियन एयरलाइंस की फ्लाइट नंबर IC-814 को हाईजैक करके अफगानिस्तान के कंधार ले जाया गया था। यात्रियों को बचाने के लिए भारत सरकार को तीन आतंकी छोड़ने पड़े थे। जिसमें जसवंत सिंह की भूमिका अहम रही।

By Sanjeev TiwariEdited By: Publish:Sun, 27 Sep 2020 09:43 AM (IST) Updated:Sun, 27 Sep 2020 10:45 AM (IST)
Jaswant Singh: पूर्व मंत्री जसवंत सिंह ने 1999 में हाईजैक प्लेन छुड़ाने में निभाया था अहम रोल
पूर्व रक्षामंत्रीजसवंत सिंह का रविवार को निधन हो गया। फाइल फोटो

नई दिल्ली, एजेंसी। अटल सरकार में मंत्री रहे जसवंत सिंह का रविवार को निधन हो गया। वे लंबे समय से बीमार थे। अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में जसवंत ने विदेश, रक्षा और वित्त जैसे तीनों अहम विभाग संभाले। 24 दिसंबर 1999 को इंडियन एयरलाइंस की फ्लाइट नंबर IC-814 को हाईजैक करके अफगानिस्तान के कंधार ले जाया गया था। यात्रियों को बचाने के लिए भारत सरकार को तीन आतंकी छोड़ने पड़े थे। जिन आतंकियों को छोड़ा गया था, उनमें मुश्ताक अहमद जरगर, अहमद उमर सईद शेख और मौलाना मसूद अजहर शामिल थे। इन आतंकियों को लेकर जसवंत ही कंधार गए थे। 1998 में परमाणु परीक्षण के बाद अमेरिका ने भारत पर सख्त प्रतिबंध लगाए थे। तब जसवंत ने ही अमेरिका से बातचीत की थी। 1999 में करगिल युद्ध के दौरान भी उनकी भूमिका अहम रही।

1960 में सेना में मेजर के पद से इस्तीफा देकर राजनीतिक के मैदान में उतरे

जसवंत सिंह 1960 में सेना में मेजर के पद से इस्तीफा देकर राजनीतिक के मैदान में उतरे थे। अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली राजग सरकार में वह अपने कैरियर के शीर्ष पर थे। 1998 से 2004 तक राजग के शासनकाल में जसवंत ने वित्त, रक्षा और विदेश मंत्रालयों का नेतृत्व किया।

जसवंत का राजनीतिक कैरियर कई उतार चढाव से गुजरा।1999 में एयर इंडिया के अपहृत विमान के यात्रियों को छुड़ाने के लिए आंतकवादियों के साथ कंधार जाने के मामले में उनकी काफी आलोचना हुई। राजग शासन के दौरान जसवंत सिंह हमेशा अटल बिहारी वाजपेयी के विश्वासपात्र रहे। वह ब्रजेश मिश्र और प्रमोद महाजन के साथ वाजपेयी की टीम के अहम सदस्य थे।

दार्जिलिंग से चुनाव लड़े और जीत दर्ज की

बाद में वह 2009 तक राज्य सभा में विपक्ष के नेता रहे और गोरखालैण्ड के लिए संघर्ष करने वाले स्थानीय दलों की पेशकश पर दार्जिलिंग से चुनाव लड़े और जीत दर्ज की। जसवंत सिंह को एक समय ऐसी स्थिति का भी सामना करना पड़ा जब अगस्त 2009 में उन्हें अपनी पुस्तक ‘जिन्नाः भारत विभाजन और स्वतंत्रता’ में पाकिस्तान के संस्थापक मोहम्मद अली जिन्ना की प्रशंसा करने पर भाजपा से निष्कासित कर दिया गया था।

एक बार पार्टी ने निकाला, एक बार खुद पार्टी छोड़ी

2012 में भाजपा ने उन्हें उप राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाया, लेकिन, यूपीए के हामिद अंसारी के हाथों हार का सामना करना पड़ा। अपनी किताब में जसवंत ने मुहम्मद अली जिन्ना की तारीफ की। भाजपा ने उन्हें पार्टी से निकाल दिया। 2010 में उनकी वापसी हुई। 2014 में उन्हें भाजपा ने लोकसभा चुनाव का टिकट नहीं दिया। उनकी बाड़मेर सीट से भाजपा ने कर्नल सोनाराम चौधरी को उतारा। इसके बाद जसवंत ने फिर भाजपा छोड़ दी। निर्दलीय चुनाव लड़े, लेकिन हार गए। इसी साल उन्हें सिर में चोट लगी। इसके बाद से जसवंत कोमा में ही थे।

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