सदी में पहली बार नागार्जुन वेश में नजर आए महाप्रभु जगन्नाथ, बहन सुभद्रा और भाई बलभद्र

नागार्जुन वेश में भगवान जगन्नाथ अपने भाई बहन के साथ 16 प्रकार के अस्त्र-शस्त्रों से सुसज्जित होकर योद्धा का वेश धारण करते हैं। वेश को परशुराम वेश भी कहा जाता है। इस मौके पर देश-विदेश से लाखों साधु-संत और श्रद्धालु भगवान के इस वेश का दर्शन करने जमा होते हैं।

By Vinay TiwariEdited By: Publish:Sat, 28 Nov 2020 12:33 PM (IST) Updated:Sat, 28 Nov 2020 12:33 PM (IST)
सदी में पहली बार नागार्जुन वेश में नजर आए महाप्रभु जगन्नाथ, बहन सुभद्रा और भाई बलभद्र
नागार्जुन वेश में महाप्रभु जगन्नाथ के साथ बलभद्र और सुभद्रा नजर आए। (फोटो जागरण)

शेषनाथ राय, भुवनेश्वर। ओडिशा के श्रीजगन्नाथपुरी में शुक्रवार को भगवान जगन्नाथ, बहन सुभद्रा और भाई बलभद्र के नागाजरुन वेश का विशेष संयोग और दिन था। हालांकि कोरोना संक्रमण के कारण जारी प्रतिबंध के कारण 26 साल बाद होने वाले इस दुर्लभ वेश का भक्त दर्शन नहीं कर सके। 

नागार्जुन वेश में भगवान जगन्नाथ अपने भाई बहन के साथ 16 प्रकार के अस्त्र-शस्त्रों से सुसज्जित होकर योद्धा का वेश धारण करते हैं। इस वेश को परशुराम वेश भी कहा जाता है। इस मौके पर देश-विदेश से लाखों साधु-संत और श्रद्धालु भगवान के नागाजरुन वेश का दर्शन करने जमा होते हैं। इस बार सादे तरीके से इस अनुष्ठान को संपन्न कराया गया। इस दौरान श्रद्धालुओं को प्रभु के विग्रहों तक जाने की अनुमति नहीं थी। सुबह महाप्रभु श्रीजगन्नाथ जी का नागाजरुन वेश ढाई घंटे में संपन्न हुआ।

सुबह सात बजे से विशेष अनुष्ठान के साथ विधि-विधानपूर्वक महाप्रभु का नागाजरुन वेश शुरू हुआ। सुबह 9:30 बजे आयोजन के संपन्न होने की जानकारी जिलाधीश बलवंत सिंह ने दी। निर्धारित संख्या से अधिक सेवकों के श्रीमंदिर में प्रवेश करने पर यह विवाद उत्पन्न हुआ। श्रीमंदिर प्रशासन के हस्तक्षेप के बाद विवाद का समाधान कर लिया गया। फिर नागाजरुन वेश की नीति शुरू हुई और 16 प्रकार के पारंपरिक युद्ध अस्त्र से वीर योद्धा के रूप में सुसज्जित किए गए। 

महाप्रभु श्री जगन्नाथ जी का नागार्जुन वेश अत्यंत ही दुर्लभ होता है। यह एक सामयिक एवं सामरिक वेश होता है। इसमें श्रीजगन्नाथ जी एवं भाई बलभद्र जी को नागा वेश में सजाया जता है। काíतक महीने के पंचुक की मल तिथि में ही महाप्रभु का नागार्जुन वेश होता है। आम तौर पर पंचुक पांच दिन का होता है, मगर जिस साल पंचुक 6 दिन का होता है, उसी साल महाप्रभु का नागार्जुन वेश होता है। इस साल भी पंचुक 6 दिन का है ऐसे में महाप्रभु का यह दुर्लभ वेश हो रहा है।

जानकारी के मुताबिक 25 साल बाद 21वीं शताब्दी में यह पहला नागार्जुन वेश है। ऐसे में इस वेश को लेकर श्रद्धालुओं में भी उत्सुकता का माहौल है। हालांकि इस साल कोरोना प्रतिबंध के कारण प्रभु के इस दुर्लभ वेश का भक्त दर्शन नहीं कर पाएंगे। नागार्जुन वेश के इतिहास पर यदि नजर डालें तो यह वेश काफी पुराना होने का अनुमान किया जा रहा है। इससे पहले 1993 एवं 1994 में महाप्रभु का नागार्जुन वेश हुआ था। 25 साल बाद 2020 में पुन: यह वेश हो रहा है।

नागार्जुन वेश में महाप्रभु श्री जगन्नाथ एवं श्रीविग्रहों के लिए विशेष सामग्री का प्रयोग किया जाता है। विशेष रूप से अलंकार के साथ विभिन्न अस्त्र-शस्त्र से सज्जित किया जाता है। श्रीभुज, श्रीपयर, नाकूआसी, कान का कुंडल, ओलमाल, बाघनखी माली, हरिड़ा माली, पद्ममाली, घागड़ा माली से सजाया जाता है। महाप्रभु जगन्नाथ एवं बलभद्र के मुंह में मूंछ एवं दाढ़ी लगाई जाती है। बाघ की छाल वाले वस्त्र दोनों भाई को पहनाया जाता है। इन वस्त्रों को सोल, कना, जरी से बनाया जाता है। बेत से अस्त्र बनाए जाते हैं। महाप्रभु की सेवा में लगे पुजारी ही विशेष रूप से इसे तैयार करते हैं। पुजारियों के अनुसार हर नागाजरुन वेश में एक जैसे ही वस्त्र पहनाए जाते हैं। 

नागार्जुन वेश को श्रीक्षेत्र लोक संस्कृति की प्रतिछवि माना जाता है। कोरोना संक्रमण के कारण आयोजन सामान्य रहा, हालांकि पंरपराएं पूरी निभाई गई। जिस साल पंचुक छह दिनों का होता है, उसी साल होता है महाप्रभु का यह विरल वेश देखने को मिलता है। 

इन सोलह चीजों से होता है श्रृंगार

- नागाताटी

- नागाफुल

- डेणु

- हांडिया

- बज्र घंटी

- एरा घर

- नाकूआसी

- शंख चक्र

- दाढ़ी

- हरिड़ा माली

-  कटुरी

- ओलमाली

- बाघनख माली

- ढाल

- खंडा

- हस्तपाद 

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