पूरी दुनिया में विस्तार ले रहे क्रिप्टोकरेंसी को भारत में नियमन के दायरे में लाना समय की मांग

अपेक्षाकृत कम फायदे वाली क्रिप्टोकरेंसी मेमेकाइन के ‘सिबा इनू’ की कीमत भी पिछले माह 145 प्रतिशत बढ़ी। इसकी बदौलत भारत के प्रमुख क्रिप्टोकरेंसी एक्सचेंज वजीर एक्स ने 28 अक्टूबर को एक दिन में 56 करोड़ डालर का रिकार्ड कारोबार किया। क्रिप्टोकरेंसी के बड़े-बड़े विज्ञापन आने लगे।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Publish:Mon, 29 Nov 2021 10:53 AM (IST) Updated:Mon, 29 Nov 2021 10:53 AM (IST)
पूरी दुनिया में विस्तार ले रहे क्रिप्टोकरेंसी को भारत में नियमन के दायरे में लाना समय की मांग
पूरी दुनिया में विस्तार ले रहे क्रिप्टोकरेंसी को भारत में नियमन के दायरे में लाना समय की मांग। प्रतीकात्मक

अवधेश माहेश्वरी। समूचे विश्व में निवेश को लेकर सबसे बड़ा आकर्षण वृद्धि की तेज क्षमता से जुड़ा है, परंतु इसमें सुरक्षा के ब्रेक भी होने चाहिए। पिछले पांच वर्षो में क्रिप्टोकरेंसी ने निवेश को जादुई तरीके से कई गुना किया है, लेकिन यह देखना हैरतभरा है कि इसमें सुरक्षा करने वाला कोई नट-बोल्ट ही नहीं है। इसके बावजूद क्रिप्टोकरेंसी को लेकर भारतीय युवाओं में आकर्षण इस तरह हो गया है कि यहां दुनिया के सर्वाधिक 10 करोड़ क्रिप्टोकरेंसी निवेशक हैं। इनके बीच निवेश का फामरूला भी- मोर रिस्क, मोर गेन और दूसरा रिस्क है तो, इश्क है, इस प्रकार से है। क्रिप्टोकरेंसी निवेश में खतरे के सिद्धांत वाले यही फामरूले केंद्र सरकार को चिंता में डाल रहे हैं, और वह संसद के शीतकालीन सत्र में क्रिप्टोकरेंसी एवं आधिकारिक मुद्रा विनियमन विधेयक-2021 ला रही है।

दुनिया की पहली क्रिप्टोकरेंसी बिटकाइन की उम्र केवल 12 साल है और इसमें निवेश करने वाले भारतीय निवेशकों की औसत उम्र 24 साल। आज क्रिप्टोकरेंसी का बाजार मूल्य 2.7 लाख करोड़ डालर है। यदि भारत की अर्थव्यवस्था से इसकी तुलना करें तो हमारा सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) भी 2.9 लाख करोड़ डालर के बराबर ही है। पिछले कुछ समय से क्रिप्टो की कीमतों में उछाल और बढ़ते निवेश को देखते हुए सरकार बार-बार चेतावनी दे रही थी कि युवा क्रिप्टोकरेंसी के विज्ञापनों के जाल में न फंसें। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने लोकतांत्रिक देशों से अपील की कि वे क्रिप्टो नियमन को साथ लाएं। अन्यथा यह युवाओं को गलत रास्ते पर ले जा सकती है। आखिर क्रिप्टोकरेंसी को लेकर भारत सहित दुनियाभर की सरकारों की मुश्किलें क्या हैं?

क्रिप्टो मुद्रा बिटकाइन ने पिछले पांच वर्षो में दुनिया में अमीरों का एक नया वर्ग पैदा किया है, अगले दशक में यह संख्या और ज्यादा होगी। बिटकाइन की कीमतों में इस दौरान तेजी से उछाल आया है। इसने युवाओं में नई मियामी संस्कृति को जन्म दिया है। वे क्रिप्टो से कमाते हैं और बिंदास अंदाज में खर्च करते हैं। बिटकाइन इस अवधारणा को भी मजबूत कर रहा है कि फिएट करेंसी (किसी देश की सरकार द्वारा लीगल टेंडर के रूप में जारी नोट या सिक्का) की जगह यह डीसेंट्रलाइज्ड करेंसी अधिक श्रेष्ठ है। उल्लेखनीय है कि दुनियाभर की कागजी मुद्राओं में डालर, यूरो या रुपया इन सभी के साथ अवमूल्यन का खतरा साथ जुड़ा है। कोविड काल में तो अमेरिका सहित कई अन्य देशों की सरकारों ने जिस तरह मुद्रा की छपाई की है, इसने अवमूल्यन के खतरे को और बढ़ा दिया है। वहीं किसी भी देश की सीमा की परिधि से दूर बिटकाइन की कीमतों ने जीरो से लेकर 60 हजार डालर तक के मूल्य को छुआ है। हर गिरावट में नए निवेशकों के डूबने का खतरा तो दिखा है, लेकिन बिटकाइन हर बार और मजबूत होकर उभरा है, तो उसके लिए पैदा हुआ विश्वास भी। यही वजह है कि दुनिया के कई देशों के फंड हाउस तेजी से इसमें निवेश को कदम उठा रहे हैं।

सरकार की चिंता का विषय : सरकार की चिंता यहीं से शुरू होती है। बिना उसके नियंत्रण वाली मुद्रा की स्वीकार्यता इसी तरह बढ़ती रही तो कभी भी बड़े निवेशक गैर अनुभवी युवा निवेशकों के निवेश को डुबा सकते हैं। ऐसे में सवाल उठेगा कि जब हमारे देश में 10 करोड़ लोग (ब्रोकर चूज नामक एक ब्रोकर डिस्कवरी और कंपैरिजन प्लेटफार्म की रिपोर्ट के अनुसार) इसमें निवेश कर रहे थे तो, सरकार क्या कर रही थी? उसने नियम क्यों नहीं बनाए? सरकार ही नहीं, तमाम आर्थिक विशेषज्ञ भी मान रहे हैं कि क्रिप्टो की ओर भारतीय निवेशक जिस तेजी से बढ़े हैं, वह तेजी से अमीर बनने की चाहत से ही। अन्यथा अमेरिका के लगभग 2.75 करोड़ निवेशकों की तुलना में यह संख्या इतनी अधिक नहीं हो सकती थी। अन्यथा भारतीय निवेशकों का शेयर बाजार में रिकार्ड बहुत अच्छा नहीं है। यहां जून तक सात करोड़ डीमैट एकाउंट खुले हैं। इसमें भी तीन करोड़ की संख्या तो पिछले डेढ़ साल में कोरोना के दौरान की तेजी के दौर में ही आई है। ये निवेशक अभी नियमन वाले शेयर बाजार के रिस्क को ही नहीं समझ पाते हैं।

यही वजह है कि नायका और वन 97 कम्युनिकेशन जैसी कंपनियां लिस्टिंग के साथ ही टाटा स्टील और बीपीसीएल जैसी कंपनियों से ज्यादा मूल्यवान हो जाती हैं। भारत सहित दुनियाभर की सरकारों की क्रिप्टो को लेकर एक अन्य चिंता अपनी मुद्रा को लेकर है। यदि क्रिप्टोकरेंसी चलेंगी तो वह मुद्रा कैसे बचेगी, जिसके लिए तमाम देशों की सरकारों द्वारा नियंत्रित केंद्रीय बैंक धारक को उसकी कीमत अदा करने का वचन देती हैं। यदि इस मुद्रा से विश्वास हटता है तो किसी सरकार की विश्वसनीयता कहां रह जाएगी। उन्हें ज्यादा पैसे की जरूरत होने पर विकल्प क्या होगा। यदि दुनिया के अब तक के सबसे समृद्ध देश और सबसे मान्य मुद्रा डालर को देखें तो अमेरिका ने सितंबर 2016 में 1.378 लाख करोड़ डालर की छपाई की थी, जो पांच वर्ष बाद सितंबर 2021 में 7.245 लाख करोड़ डालर तक पहुंच गई। मुद्रा की इतनी ज्यादा आपूर्ति मुद्रास्फीति को बढ़ावा देगी।

अमेरिका में वार्टन स्कूल में फाइनेंस से जुड़े प्रोफेसर गोल्डस्टीन कहते हैं कि मुद्रास्फीति का खतरा ही बिटकाइन और क्रिप्टोकरेंसी की मांग बढ़ा रहा है। बिटकाइन की कुल 2.1 करोड़ की अधिकतम माइनिंग हो सकती है। ऐसे में यदि मांग बढ़ेगी तो लोग सोने की तरह इसे रखेंगे। बिटकाइन इस दर्जे को बखूबी स्वीकार करा चुका है। दुनिया में कई देशों के फंड हाउस इसीलिए इसमें निवेश कर रहे हैं, तो बिटकाइन माइनिंग करने वाली कंपनियों के शेयर अमेरिकी शेयर बाजार में लिस्टेड हैं। अमेरिकी अरबपति मार्क क्यूबान डागकाइन की प्रशंसा कर चुके हैं तो टेस्ला के सीईओ एलन मस्क तो बिटकाइन पर बड़ा दाव लगा चुके हैं। ऐसे में भारत या दूसरे देशों की सरकारें आखिर क्या कदम उठाएं? यह सवाल फिर उनके लिए मुश्किलें खड़ी करता है। इसके लिए नियमन जैसे कदम तो उठाने होंगे। परंतु यदि सरकार क्रिप्टो पर बैन जैसा कदम उठाती है तो यह ब्लाकचेन तकनीक के विकास को रोकने वाला होगा है। क्रिप्टो में अब ब्लाकचेन डेवलप से जुड़ी करेंसी तेजी से आ रही है। भारत को पहली क्रिप्टो अरबपति देने वाली कंपनी पालीगोन भी ब्लाकचेन से जुड़ी है।

डिजिटल कमोडिटी एक्सचेंज : सरकार को प्रतिबंध की जगह क्रिप्टोकरेंसी के लिए डिजिटल कमोडिटी एक्सचेंज के नियम बनाने चाहिए। ये एक्सचेंज मेटल और शेयर बाजार की तरह ही काम कर सकते हैं। यदि सरकार केवल यह मानती है कि क्रिप्टो का निवेश सुरक्षित नहीं है तो, गलत है। यदि सुरक्षित माने जाने वाले भारतीय शेयर बाजार को देखें तो इसमें भी नियमन कानून में लगातार बदलाव के बाद भी निवेश सुरक्षित नहीं है। हाल में ‘थ्रीआइ इन्फोटेक’ का शेयर इसका बड़ा उदाहरण है। अगस्त 2020 में कंपनी के एक रुपये वाले शेयर की कीमत 8.65 रुपये पर थी, तब इसे डीलिस्ट कर दिया गया। अक्टूबर में कंपनी ने 10 शेयरों को मर्ज कर दोबारा लिस्टिंग कराई तो, यह 31 रुपये थी। पूरी प्रक्रिया में हर शेयर धारक की कीमत दो तिहाई साफ हो गई। आखिर एनएसई के कौन से नियम के तहत ऐसी अनुमति है, यह शेयर बाजार के विशेषज्ञ अनिल सिंघवी भी नहीं जानते। वैसे यह दर्द अकेला नहीं है। इस लिस्टिंग के बाद ‘थ्रीआइ’ के शेयरों में लगातार कई अपर सर्किट से कीमत फिर पुरानी कीमत से ऊपर पहुंच गई, परंतु ऐसी हालत में खुदरा निवेशकों को शेयर मिलते ही नहीं है। यह अकेला ऐसा मामला भी नहीं है।

वन-97 कम्युनिकेशन जैसी कंपनियों के आइपीओ निवेशकों के हाथ नियमों की कमी के चलते ही जला देते हैं। सेबी को यह सवाल आइपीओ से पहले क्यों नहीं उठाना चाहिए कि एक घाटे वाली कंपनी के शेयर की कीमत रिलायंस जैसी भारी मुनाफे वाली कंपनी से ज्यादा क्यों है? देश में रेशम सी त्वचा बनाने वाली क्रीम भी बाजार से अरबों रुपये का व्यापार करती हैं। परंतु ऐसी त्वचा हो नहीं पाती। इसके बाद भी ये बिक रही हैं तो इसलिए कि त्वचा की देख-रेख के लिए इनकी जरूरत को ठुकराया नहीं जा सकता। क्रिप्टोकरेंसी की पारदर्शिता के नियमन को ही आगे बढ़ाना चाहिए, जहां कानून के दायरे से अलग कुछ कीमतों में हो तो सरकार तेज कदम उठाए। यदि कोई करेंसी अप्रत्याशित रूप से दो दिन में ही बड़ा उछाल लेती है तो सवाल उठना चाहिए। इससे ‘स्किड’ जैसी कंपनियों में निवेश डूबने से बचेगा। यह छोटे क्रिप्टो निवेशकों के लिए हितकारी होगा। साथ ही यह भारतीय निवेशकों की क्रिप्टो कंपनियों की तेज प्रगति से कमाई की चाहत में बाधा भी नहीं बनेगा।

क्रिप्टोकरेंसी को लेकर दुनियाभर की सरकारों के कदमों की ओर देखें तो यह एक-दूसरे के परस्पर विपरीत भी हैं। चीन ने कुछ समय पहले क्रिप्टोकरेंसी पर प्रतिबंध लगा दिया और अपनी डिजिटल मुद्रा ‘युआन’ निकाली है। वहीं अल सल्वाडोर ने हाल ही में बिटकाइन को लीगल टेंडर करार दिया है। अल सल्वाडोर दुनिया का ऐसा पहला देश है, जहां बिटकाइन से खरीद-बिक्री मान्य है।

अल सल्वाडोर अब अर्थव्यवस्था में तेज वृद्धि के लिए बिटकाइन सिटी की योजना आगे बढ़ा चुका है। इस शहर की खासियत होगी कि यहां ज्वालामुखी से पैदा होने वाली बिजली की सप्लाई होगी। नया शहर इस तरीके से डिजाइन किया जाएगा कि हवाई जहाज से देखने पर बिटकाइन के चिह्न् की तरह नजर आएगा। यहां वैल्यू एडेड टैक्स के अलावा अन्य कोई टैक्स नहीं होगा। कोई भी यहां कितना भी निवेश करे और कमाए इसकी छूट होगी। दुनिया की प्रमुख अर्थव्यवस्था अमेरिका और यूरोपीय देश अभी क्रिप्टोकरेंसी को लेकर कोई फैसला नहीं कर सके हैं।

निजी क्षेत्र में बिटकाइन या और अन्य क्रिप्टो की भुगतान में स्वीकार्यता बढ़ती जा रही है। बर्गर किंग की जर्मन शाखा बिटकाइन में भुगतान लेती है। माइक्रोसाफ्ट ने क्रिप्टो भुगतान की खिड़की खोल दी है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भुगतान के लिए मशहूर पेपल ने क्रिप्टो के पेमेंट को मान्य कर रखा है। अमेरिका की लोकप्रिय पेशेवर बास्केटबाल टीम डलास मावेरिक्स डाजकाइन से टिकट देती है। इसके अलावा दूसरी कई कंपनियां क्रिप्टो भुगतान स्वीकार कर रही हैं। यही नहीं, उनकी बैलेंस शीट में भी अब बिटकाइन या दूसरी क्रिप्टोकरेंसी में रिजर्व रखा जाने लगा है।

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