गोलियां लगने के बाद भी मातंगिनी हाजरा ने तिरंगा गिरने नहीं दिया, उनकी कहानी पढ़कर नम हो जाएंगी आपकी आंखें
मातंगिनी हाजरा बीच से निकलीं और सबके आगे आ गईं। उनके दाएं हाथ में तिरंगा था। उन्होंने कहा मैं फहराऊंगी तिरंगा आज कोई मुझे कोई नहीं रोक सकता। वंदमातरम के उद्घोष के साथ वो आगे बढ़ीं। पुलिस की चेतावनी पर भी वह नहीं रुकीं।
नई दिल्ली, जेएनएन। भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में कई ऐसे सेनानी रहे, जिनको वह पहचान नहीं मिलीं, जिसके वे हकदार थे। मातंगिनी हजारा ऐसी ही महिला थीं। जब मातंगिनी स्वतंत्रता आंदोलन से जुड़ीं, तो उनकी उम्र 62 वर्ष थी। अंग्रेजों ने 72 साल की उम्र में उन्हें गोलियों से छलनी कर दिया, लेकिन उन्होंने मरते दम तक तिरंगे को नहीं गिरने दिया और अंतिम सांस तक उनके मुंह से वंदे मातरम निकलता रहा। लोग इस महान महिला स्वतंत्रता सेनानी की जाबांज कहानी जानेंगे तो हैरत में पड़ जाएंगे।
बचपन में ही बुजुर्ग से कर दी गई मातंगिनी हाजरा की शादी
आइये जानते हैं मातंगिनी हाजरा का जीवन परिचय। उनका जन्म 19 अक्टूबर, 1870 को पूर्वी बंगाल (वर्तमान बांग्लादेश) मिदनापुर जिले के होगला गांव में अत्यन्त निर्धन परिवार में हुआ था। उनके पिता किसान थे। उन्होंने किसी भी प्रकार की शिक्षा प्राप्त नहीं की। गरीबी के कारण 12 वर्ष की अवस्था में उनका विवाह ग्राम अलीनान के 62 वर्षीय विधुर त्रिलोचन हाजरा से कर दिया गया। इसके बाद भी दुर्भाग्य ने उनका पीछा नहीं छोड़ा।
18 साल की उम्र में वह निसंतान ही विधवा हो गयीं। सौतेले बच्चों ने घर से निकाल दिया। मातंगिनी मिदनापुर के तामलुक में अलग झोपड़ी में रहकर मजदूरी से जीवनयापन करने लगीं। ग्रामीणों के दुख-सुख में सहभागी रहने के कारण वे पूरे गांव में मां के समान पूज्यनीय हो गयीं। वो महिला जिसे जिंदगी के 62 साल तक तो ये भी नहीं पता था कि स्वतंत्रता आंदोलन है क्या? उसकी अपने गांव और घर से बाहर की जिंदगी बड़ी सीमित थी, लेकिन उन्हें 'बूढ़ी गांधी' के नाम से जाना जाता है।
62 साल की उम्र में स्वतंत्रता संग्राम से जुड़ीं
ऐसे ही अकेले रहते रहते, उनको 44 साल बीत गए। लोगों के घरों में मेहनत मजदूरी करतीं और उसी से अपना घर चलातीं। धीरे धीरे लोगों से देश की हालत और गुलामी के बारे में जानने लगीं। घर से बाहर निकलीं तो उन्हें अंग्रेजी हुकूमत का अत्याचार दिखा। धीरे- धीरे वो लोगों से महात्मा गांधी और अन्य स्वतंत्रता सेनानियों के बारे में भी जानने लगीं। 1932 में एक दिन उनकी झोंपड़ी के बाहर से सविनय अवज्ञा आंदोलन में एक विरोध यात्रा निकली। मातंगिनी भी उस यात्रा में शामिल हो गईं। उन्होंने नमक विरोधी कानून को नमक बनाकर तोड़ा। उससे उनकी गिरफ्तार हुई। अंग्रेजों ने उनको सजा सुनाई। उनको कई किमी तक नंगे पैर चलने की सजा दी गई।
तामलुक में थामी भारत छोड़ो आंदोलन की कमान
उसके बाद मातंगिनी हजारा ने चौकीदारी कर रोको प्रदर्शन में हिस्सा लिया। विरोध प्रदर्शन में वह काला झंडा लेकर चलने लगीं। बदले में छह महीने की सजा सुनाई गई। जेल से बाहर आकर उन्होंने एक चरखा ले लिया और खादी पहनने लगीं। लोग उन्हें 'बूढ़ी गांधी' के नाम से पुकारने लगे। 1942 में महात्मा गांधी ने देश में अंग्रेजो के खिलाफ 'भारत छोड़ो आंदोलन' की बिगुल बजाया। ऐसे में गांधी जी ने नारा दिया 'करो या मरो'। 72 वर्ष की उम्र में मातंगिनी हाजरा ने तामलुक में भारत छोड़ो आंदोलन की कमान संभाली। लोग मानने लगे थे कि अंग्रेजी राज के समापन का मौका करीब आ गया है। मिदनापुर के स्वतंत्रता सेनानियों ने तय किया कि सभी सरकारी आफिसों और थानों पर तिरंगा फहरा कर अंग्रेजी राज खत्म कर दिया जाए।
गोली लगती रही लेकिन तिरंगा न गिरने दिया
29 सितम्बर 1942 का दिन था। तामलुक में छह हजार से अधिक लोगों का अंग्रेजों के विरोध जुलूस निकला था। इस आंदोलन में ज्यादातर महिलाएं शामिल थीं। वह जुलूस तामलुक थाने की तरफ बढ़ने लगा। ऐसे में तामलुक पुलिस ने चेतावनी दी, लोग पीछे हटने लगे। मातंगिनी हाजरा बीच से निकलीं और सबके आगे आ गईं। उनके दाएं हाथ में तिरंगा था। उन्होंने कहा 'मैं फहराऊंगी तिरंगा, आज कोई मुझे कोई नहीं रोक सकता'। वंदमातरम के उद्घोष के साथ वो आगे बढ़ीं। पुलिस की चेतावनी पर भी वह नहीं रुकीं तो एक गोली उनके दाएं हाथ पर मारी गई। वह घायल हो गईं, लेकिन तिरंगे को नहीं गिरने दिया।
अंग्रेजों ने मातंगिनी हाजरा के माथे पर मारी गोली
घायल मातिंगिनी ने तिरंगा दूसरे हाथ में ले लिया और फिर आगे बढ़ने लगीं। 72 साल की मातंगिनी हाजरा ने पहली गोली लगते ही बोला 'वंदेमातरम'। पुलिस ने फिर दूसरे हाथ पर भी गोली मारी, वो फिर बोलीं 'वंदेमातरम', लेकिन किसी तरह झंडे को संभाले रखा, गिरने नहीं दिया। वह लगातार वंदेमातरम बोलती रहीं, झंडा ऊंचा किए रहीं और थाने की तरफ बढ़ती रहीं। तब एक पुलिस आफिसर ने तीसरी गोली चलाई, सीधे उनके माथे पर। वो नीचे तो गिरीं, लेकिन तिरंगा जमीन पर नहीं गिरने दिया, अपने सीने पर रखा और जोर से फिर बोला- वंदे.. मातरम, भारत माता की जय। बदन पर गोलियां खाते रहने के बावजूद मातंगिनी ने लोगों को हिंसा के लिए भड़काने की कोशिश नहीं की। गांधी जी के अहिंसा के सिद्धांत को डिगने नहीं दिया।
मातंगिनी की हत्या से आक्रोशित लोगों ने सरकारी दफ्तरों पर किया कब्जा
मातंगिनी की मौत के बाद तामलुक के लोग आक्रोशित हो गए। उनका सम्मान उस इलाके में उस वक्त गांधीजी से किसी मायने में कम नहीं था। सबने सोचा जब एक बूढ़ी महिला इतनी हिम्मत देश की आजादी के लिए दिखा सकती है, तो हम क्यों नहीं। लोगों ने सभी सरकारी दफ्तरों पर कब्जा कर लिया और वहां खुद की सरकार घोषित कर दी। पांच साल पहले ही अपने इलाके को अंग्रेजों से आजाद घोषित कर दिया और दो साल बाद गांधीजी की अपील पर उन लोगों ने सरकारी दफ्तरों से कब्जा छोड़ा। महात्मा गांधी भी मातंगिनी का अदम्य साहस सुनकर हैरान थे। Homage to Maa Matangini Hazra, the legendary freedom fighter, on her birth anniversary বিপ্লবী মা মাতঙ্গিনী হাজরার জন্মবার্ষিকীতে জানাই প্রণাম— Mamata Banerjee (@MamataOfficial) October 19, 2019
ज्ञात हो कि पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी ने महान महिला क्रांतिकारी मातंगिनी हजारा को याद करते हुए अंग्रेजी और बंगाली में ट्वीट किया।