डीआरडीई के विज्ञानी का दावा- फेफड़ों में कोरोना संक्रमण पहुंचने पर रेमडेसिविर और प्लाज्मा थेरेपी कारगर नहीं
कोरोना वायरस का प्रभाव जब तक गले में रहता है तब तक ही रेमडेसिविर और प्लाज्मा थेरेपी कारगर होती है। एक बार संक्रमण गले से उतरकर फेफड़ों तक पहुंच जाए और मरीज की स्थिति गंभीर हो जाए तब ये दोनों अनुपयोगी हो जाते हैं।
अजय उपाध्याय, ग्वालियर। कोरोना संक्रमण के इलाज के लिए रेमडेसिविर इंजेक्शन और प्लाज्मा को लेकर मची आपाधापी के बीच डीआरडीई (रक्षा अनुसंधान एवं विकास स्थापना) के बायोटेक्नोलॉजी विभाग के विज्ञानी डॉ. राम कुमार धाकड़ ने एक अध्ययन किया है। उनका निष्कर्ष है कि कोरोना वायरस का प्रभाव जब तक गले में रहता है तब तक ही रेमडेसिविर और प्लाज्मा थेरेपी कारगर होती है। एक बार संक्रमण गले से उतरकर फेफड़ों तक पहुंच जाए और मरीज की स्थिति गंभीर हो जाए तब ये दोनों अनुपयोगी हो जाते हैं।
डॉ. धाकड़ ने कहा- गंभीर मरीजों पर रेमडेसिविर इंजेक्शन काम नहीं करता
डॉ. धाकड़ बताते हैं कि निजी अस्पतालों में डॉक्टर गंभीर मरीजों को भी रेमडेसिविर इंजेक्शन लगा रहे हैं जबकि हकीकत यह है कि उन पर यह इंजेक्शन काम नहीं करता। बल्कि इसके दुष्प्रभाव ही अधिक सामने आ रहे हैं।
संक्रमण फेफड़ों तक पहुंच गया था: 250 मरीजों में से सिर्फ 5 से 10 फीसद मरीज बच सके
ग्वालियर के विभिन्न अस्पतालों में करीब 250 मरीजों के इलाज में इस्तेमाल में किए गए रेमडेसिविर व उसके प्रभाव के अध्ययन पर डॉ. धाकड़ ने पाया कि इनमें से सिर्फ पांच से 10 फीसद मरीजों को ही बचाया जा सका। इन मामलों में संक्रमण फेफड़ों तक पहुंच गया था।
रेमडेसिविर व एंटीबॉडी वाला रक्त प्लाज्मा फेफड़े में संक्रमण को रोकने का काम नहीं करता
दरअसल, रेमडेसिविर व एंटीबॉडी वाला रक्त प्लाज्मा फेफड़े में संक्रमण को रोकने का काम नहीं करता। गंभीर मरीजों को स्टेरायड (मिथाइल प्रेडनीसोलोन) के सहारे ठीक किया गया।
स्टेरायड घटाता है फेफड़े की सूजन
अध्ययन में सामने आया कि मरीज को यदि संक्रमण की शुरुआत में रेमडेसिविर दिया गया तो उसने काम किया। संक्रमण जब फेफड़े तक पहुंच जाता है तो वह उनमें सूजन पैदा कर देता है। ऐसे में ऑक्सीजन रक्त तक नहीं पहुंच पाती और कार्बन डाईऑक्साइड बाहर नहीं निकल पाती। इससे मरीज का ऑक्सीजन लेवल गिरता है और कई बार मौत हो जाती है। फेफड़े में आई सूजन को घटाने का काम स्टेरायड करता है।
डॉ. धाकड़ ने कहा- डब्ल्यूएचओ ने गंभीर मरीजों के इलाज के लिए किया स्टेरायड का समर्थन
डॉ. धाकड़ का कहना है स्टेरायड का समर्थन विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने गंभीर मरीजों के इलाज के लिए किया है। डॉ. धाकड़ के मुताबिक डब्ल्यूएचओ ने रेमडेसिविर इंजेक्शन का चार बार परीक्षण किया, इसके बाद इसके प्रयोग को नकार दिया था। ब्रिटेन में मिथाइल प्रेडनीसोलोन का प्रयोग ऑक्सीजन सपोर्ट पर गंभीर मरीज पर किया तो मौत के आंकड़ों में एक तिहाई कमी पाई गई।
स्टेरायड डेक्सामेथासोन की तुलना में मिथाइल प्रेडनीसोलोन फेफड़े की सूजन घटाने में अधिक कारगर
अध्ययन में यह भी पाया कि स्टेरायड डेक्सामेथासोन की तुलना में मिथाइल प्रेडनीसोलोन फेफड़े के टिश्यु में आसानी से पहुंचकर उसकी सूजन घटाने में अधिक कारगर है।
यह है रेमडेसिविर और प्लाज्मा का काम
रेमडेसिविर इंजेक्शन एक एंटीवायरल ड्रग है। जिसे इबोला वायरस के संक्रमण व हेपेटाइटिस-सी के संक्रमण को रोकने के लिए बनाया गया था। इसका प्रयोग कोरोना वायरस के संक्रमण को रोकने में किया गया।
डब्ल्यूएचओ ने रेमडेसिविर को ट्रायल ड्रग माना
डब्ल्यूएचओ ने भी रेमडेसिविर पर भरोसा न जताकर उसे एक ट्रायल ड्रग माना व गंभीर मरीजों पर उपयोग न करने की सलाह भी दी थी।
आइसीएमआर ने प्लाज्मा थेरेपी को कोरोना के इलाज में अनुपयोगी बताया
आइसीएमआर ने सितंबर 2020 में जारी अपनी रिपोर्ट में प्लाज्मा थेरेपी को कोरोना के इलाज में अनुपयोगी बताया था। प्लाज्मा थेरेपी रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाती है लेकिन फेफड़े में संक्रमण होने पर इसकी उपयोगिता नहीं बचती। यह संक्रमण कम नहीं कर सकती।
संक्रमण के शुरुआती दौर में ही रेमडेसिविर काम कर सकता है
कोरोना संक्रमण के शुरुआती दौर में ही रेमडेसिविर काम कर सकता है। फेफड़े में संक्रमण पहुंचने पर रेमडेसिविर और प्लाज्मा थेरेपी कारगर नहीं होती। जनवरी से अब तक जिन गंभीर मरीजों को रेमडेसिविर या प्लाज्मा दिया गया उनकी मृत्युदर में कोई खास अंतर नहीं आया है- डॉ. अजय पाल, प्रोफेसर, मेडिसिन विभाग गजराराजा मेडिकल कॉलेज, ग्वालियर।