Positive India : दिल्ली में 4.8 मिलियन टन CO2 उत्सर्जन में कमी आएगी, बस एक कदम उठाना होगा- अरपन चटर्जी

प्रदूषण हर आयु वर्ग की सेहत के लिए नुकसानदेह है पर बच्चों और बुजुर्गों के लिए यह काफी दिक्कतभरा है। बच्चों के शरीर पर इसका असर काफी खतरनाक है। यह बच्चों के फेफड़ों के साथ-साथ उनके दिमाग पर भी असर डालता है। बच्चों में ब्रोंकाइटिस जैसे श्वास रोग होते हैं।

By Vineet SharanEdited By: Publish:Tue, 15 Jun 2021 08:41 AM (IST) Updated:Tue, 15 Jun 2021 08:43 AM (IST)
Positive India : दिल्ली में 4.8 मिलियन टन CO2 उत्सर्जन में कमी आएगी, बस एक कदम उठाना होगा- अरपन चटर्जी
सरकारी नीतियां इलेक्ट्रिक व्हीकल में 2024 तक 25 फीसद लक्ष्य पूरा करती हैं पांच लाख ई वाहन सड़क पर होंगे।

नई दिल्ली, जेएनएन। दिल्ली में प्रदूषण की स्थिति खराब है। अगर लॉकडाउन के दिनों को छोड़ दिया जाए तो दिल्ली के प्रदूषण की तस्वीर और आंकड़े भयावह हैं। यूमास (यूनिवर्सिटी ऑफ मैसाचुसेट्स एमरेस्ट) की दिल्ली के प्रदूषण पर तैयार रिपोर्ट में भी कहा गया कि लॉकडाउन ने दिल्ली समेत चेन्नई, मुंबई जैसे शहरों की हवा को साफ किया, लेकिन यह स्थिति अधिक दिनों तक नहीं रही। प्रदूषण जैसी जानलेवा समस्या का समाधान करना है तो हमें दीर्घकालिक हल तलाशना होगा। यह संभावित हल क्या हो सकता है और इस प्रदूषण से कैसे बचा जा सकता है, इन सब बातों को लेकर हमने यूमास की रिपोर्ट तैयार करने वाले अरपन चटर्जी से बात की।

दिल्ली में प्रदूषण की स्थिति खतरनाक है। आपकी रिपोर्ट के अनुसार दिल्ली में प्रदूषण के कौन-कौन से प्रमुख कारण हैं?

दिल्ली में प्रदूषण की पहली वजह आसपास के राज्यों से होने वाली क्रॉप बर्निंग (फसलों को जलाना) है। हरियाणा, पंजाब और उत्तर प्रदेश में होने वाली क्रॉप बर्निंग से दिल्ली की हवा दमघोंटू हो जाती है। सरकारों ने लाख कोशिश की है, पर इसका स्थायी समाधान आज तक नहीं तलाशा जा सका है। वहीं, दिल्ली लैंडलॉक्ड है। इसके आसपास कोई समुद्र नहीं है। इससे दिल्ली सभी जगहों से प्रभावित हो जाती है। दूसरी वजह यहां का इंडस्ट्रियल प्रदूषण है, जो दिल्ली की हवा को खराब कर देता है। इंडस्ट्रियल प्रदूषण के संदर्भ में देखें तो नजफगढ़ ड्रेन बेसिन भारत का दूसरा सबसे प्रदूषित क्लस्टर है। इस बेसिन में आनंद पर्वत, नारायणा, ओखला और वजीरपुर इंडस्ट्रियल एरिया का प्रदूषण आता है।

प्रदूषण का तीसरा कारण है दिल्ली में अत्यधिक वाहनों का होना। दिल्ली में अंधाधुंध तरीके से वाहन बढ़ते जा रहे हैं। ट्रैफिक जाम और वाहनों की संख्या भी दिल्ली के प्रदूषण के प्रमुख कारण हैं। चौथा, दिल्ली के आसपास के क्लस्टर जैसे, गाजियाबाद, फरीदाबाद, नोएडा में हो रहे निर्माण कार्य भी दिल्ली की हवा को जहरीला बना देते हैं। इसके लिए भी सख्त नियम बनाए जाने की आवश्यकता है।

अगर आंकड़ों की बात करें तो पांच सेक्टर से सबसे अधिक उत्सर्जन होता है। ये पांच सेक्टर इंडस्ट्री, ट्रांसपोर्ट, पावर प्लांट, सड़क की धूल और निर्माण कार्य हैं। वायु प्रदूषण के मुख्य स्रोत पार्टिकुलेट मैटर, ओजोन, नाइट्रोजन डाइ-ऑक्साइड, कॉर्बन मोनो-ऑक्साइड, सल्फर डाइ-ऑक्साइड आदि हैं।

विभिन्न स्टडी रिपोर्ट इस बात का दावा करती है कि प्रदूषण हमारी सेहत खराब कर रहा है। बच्चों और बुजुर्गों के लिए तो यह विनाशकारी है। ऐसी क्या वजह है कि इन ग्रुप के लिए यह अधिक भयावह है?

प्रदूषण हर आयु वर्ग की सेहत के लिए नुकसानदेह है, पर बच्चों और बुजुर्गों के लिए यह काफी दिक्कतभरा है। बच्चों के शरीर पर इसका असर काफी खतरनाक है। यह बच्चों के फेफड़ों के साथ-साथ उनके दिमाग पर भी असर डालता है। इससे एक तरफ जहां बच्चों में ब्रोंकाइटिस जैसे श्वास संबंधी रोग होते हैं, तो दूसरी तरफ दिमागी रोग भी बढ़ रहे हैं। प्रदूषण के नकारात्मक दूरगामी परिणाम भी होते हैं। यह बच्चों के सीखने की क्षमता पर भी असर डाल सकता है। अगर आंकड़ों की बात करें तो औसत आयु में भी 9.4 फीसद की गिरावट आई है। लोगों के फेफड़े कमजोर हुए हैं। बुजर्गों की सेहत पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है।

दुनियाभर के कई देशों ने प्रदूषण की स्थिति सुधारने के लिए कई क्रांतिकारी कदम उठाए, जिनका असर देखने को मिला है। दिल्ली में ऐसे कदम दीर्घकालिक या लघुकालिक स्तर पर क्या उठाए जा सकते हैं? हम अन्य देशों से क्या सबक सीख सकते हैं?

इलेक्ट्रिक व्हीकल पॉलिसी काफी कारगर हो सकती है। यूमास की रिपोर्ट कहती है कि दिल्ली सरकार ने 7 अगस्त, 2020 को दिल्ली इलेक्ट्रिक व्हीकल पॉलिसी लागू की थी। इसमें इलेक्ट्रिक व्हीकल खरीदने के लिए प्रोत्साहित करने हेतु कई तरह के प्रबंध किए गए थे। अगर सरकारी नीतियां इलेक्ट्रिक व्हीकल की खरीद में 2024 तक अपना 25 फीसद लक्ष्य पूरा कर लेती है तो विभिन्न तरह के करीब 5,00,000 इलेक्ट्रिक व्हीकल सड़कों पर होंगे।

इससे दिल्ली में करीब 159 टन पीएम 2.5 और 4.8 मिलियन टन कॉर्बन डाइ-ऑक्साइड उत्सर्जन में कमी आएगी। इससे करीब एक लाख पेट्रोल कारों द्वारा पूरे जीवनभर के कॉर्बन डाइ-ऑक्साइड के उत्सर्जन में कमी आएगी। हमें सार्वजनिक परिवहन को बढ़ावा देना होगा, जिससे लोग अपने वाहनों को घर पर ही छोड़ें। यही नहीं, कुछ ऐसी नीतियां बनानी होंगी कि बड़ी संख्या में एक साथ इतने वाहन सड़कों पर न दिखाई दें। बायोडिग्रेडेबल वेस्ट के लिए नीति बनानी होगी। रीसाइकलिंग की प्रक्रिया को बेहतर करना होगा। कचड़े का निस्तारण कैसे हो, इसका प्रबंधन करना होगा। लैंडफिल बर्निंग को रोकना होगा। दिल्ली-एनसीआर में प्लांटेशन बढ़ाना होगा, जैसे कि डीजल वाहनों को दस साल के बाद सड़कों से बाहर किया जा रहा है, ऐसी सख्त नीति बनानी होगी।

बीते कुछ समय में अगर लॉकडाउन की स्थिति को छोड़ दें, तो प्रदूषण को रोकने के लिए कई कदम उठाए गए, जैसे ऑड-ईवन। आप क्या मानते हैं कि इन नियमों या प्रावधानों को लागू करने में किसी तरह की कठिनाई आ रही है?

हमें ट्रायल रन करने के बाद ही किसी नीति को लागू करना होगा। इसके लिए सभी मंत्रालयों को एक साथ काम करना होगा। किसी एक के करने से बड़ा बदलाव नहीं होने जा रहा। इसके लिए लोगों को भी सामुदायिक तरीके से पहल करनी होगी। लोगों को यह समझना और समझाना होगा कि प्रदूषण कैसे हमारी आने वाली पीढ़ी के लिए घातक है। इसके लिए बड़े स्तर पर कैंपेन चलाने होंगे, दीर्घकालिक और लघुकालिक नीति बनानी होगी। 

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