अनेक कानूनी प्रविधान करने के बाद भी सूदखोरों का खतरनाक नेटवर्क पूरे देश में फैला
साहूकारी अधिनियम में ग्रामसभा को अधिकार दिए गए कि यदि वह तय करे कि उसके क्षेत्र में साहूकारी व्यवसाय नहीं होगा तो कलेक्टर वहां साहूकारी के लिए किसी को लाइसेंस नहीं देंगे।उम्मीद है कि सरकार के नए अभियान से अब सूदखोरों का नेटवर्क ध्वस्त होगा।
संजय मिश्र। कर्ज लेना और देना कोई नई बात नहीं है, लेकिन जब यह सूदखोरी का जरिया बन जाता है तो इसका परिणाम दर्दनाक ही होता है। सूदखोर किसी को समस्या से निकालने के लिए नहीं, बल्कि अपने धन को दोगुना-तीन गुना करने के लिए कर्ज का धंधा चलाते हैं। लाभ कमाना उनका मकसद होता है इसलिए उनमें संवेदना का स्तर लगभग शून्य रहता है। यह हैरान करने वाली बात है कि अनेक कानूनी प्रविधान करने के बाद भी सूदखोरों का जाल पूरे देश में फैला है। उनका नेटवर्क इतना मजबूत हो चुका है कि अनेक क्षेत्रों में प्रशासनिक मशीनरी उन तक पहुंचने का साहस ही नहीं दिखा पाती। एक तरह से वे समानांतर व्यवस्था चला रहे हैं। मध्य प्रदेश में सूदखोरों की गैंग शहर से लेकर गांव तक फैली हुई है। कई आदिवासी क्षेत्रों में तो वे इतने सशक्त हो चुके हैं कि बिना व्यापक अभियान चलाए उन्हें नियंत्रित करना मुश्किल है। राहत की बात है कि सूदखोरी का धंधा रोकने के लिए कानूनी प्रविधान करने वाली शिवराज सरकार अब सूदखोरों के खिलाफ व्यापक अभियान चलाने जा रही है।
प्रदेश के ग्रामीण क्षेत्र हों या शहरी, साहूकारों द्वारा ब्याज पर ऋण देने की व्यवस्था लंबे समय से चली आ रही है। इसके लिए कानून में प्रविधान भी किए गए हैं कि पंजीकृत साहूकार ही ऋण देने का काम कर सकता है, लेकिन ऐसे साहूकारों की संख्या अंगुली पर गिनने लायक ही है। असली कारोबार तो गैर पंजीकृत सूदखोर ही कर रहे हैं, जो शासन के किसी भी नियम-कायदे को नहीं मानते। ऐसा भी नहीं है कि उन्हें नियंत्रित करने के लिए कोई प्रविधान नहीं है, लेकिन पुलिस और प्रशासन की लापरवाही उनके लिए खाद बन जाती है। शिकायत के बाद भी अक्सर अधिकारी आंखें मूंदे रहते हैं, जिसका लाभ सूदखोर उठाते हैं। यही वजह है कि भोपाल में सूदखोरी की वजह से हंसता-खेलता जोशी परिवार बर्बाद हो गया। सूदखोरों की गैंग से आतंकित होकर परिवार के पांच सदस्यों ने जहर पी लिया, जिससे उनकी मौत हो गई। उनके सुसाइड नोट पढ़कर लगता है कि सूदखोरों के कारण वे लंबे समय से तनाव में जी रहे थे। उनकी लिखी यह पंक्ति ही पूरी व्यवस्था पर सवाल खड़े करती है कि ‘रोज-रोज मरने से अच्छा है एक दिन मर जाएं।’ इस प्रकरण का दुखद पहलू यह है कि जोशी परिवार ने लगभग एक सप्ताह पूर्व पुलिस से गुहार लगाई थी कि उन्हें सूदखोरों का गिरोह चलाने वाली बबली प्रताड़ित कर रही है, लेकिन किसी ने ध्यान ही नहीं दिया।
सच में ऐसे गिरोह जिस तरह तीन का तेरह करने के लिए लोगों को धमकाते हैं उससे रातों की नींद उड़ना स्वाभाविक ही है। हर वक्त एक ही तनाव बना रहता है कि कहीं घर के दरवाजे पर सूदखोर या उसके गुर्गे न आ जाएं। यह कोई एक मामला नहीं है, जिसने रोंगटे खड़े कर दिए, बल्कि आए दिन ऐसे वाकये होते रहते हैं। इन्हीं परिस्थितियों को देखते हुए सरकार ने साहूकारी अधिनियम में संशोधन का विचार बनाया। शिवराज सरकार ने अपने पिछले कार्यकाल में इसकी शुरुआत उस समय की थी जब अगस्त 2017 में आलीराजपुर के तत्कालीन कलेक्टर गणोश शंकर मिश्र ने साहूकारों के लाइसेंस निरस्त करके उनके द्वारा दिए गए कर्ज को शून्य घोषित कर दिया था। इसके बाद मुख्यमंत्री ने सूदखोरी के वृत्ति से जुड़ा मामला होने की वजह से राजस्व विभाग से साहूकारी अधिनियम में संशोधन का मसौदा तैयार करवाकर केंद्र सरकार को भेजवाया था, लेकिन इसे स्वीकृति मिलने से पहले ही विधानसभा चुनाव आ गया। इसके बाद केंद्र सरकार और राजस्व विभाग के बीच मामला लटका रहा।
वर्ष 2018 के विधानसभा चुनाव में सत्ता परिवर्तन हो गया। कांग्रेस की सरकार आ गई और कमल नाथ मुख्यमंत्री बने। उन्होंने भी सूदखोरी को गंभीरता से लिया और नौ अगस्त, 2019 को अनुसूचित जनजाति वर्ग द्वारा गैर पंजीकृत साहूकारों से लिए गए समस्त ऋण को शून्य घोषित किए जाने की घोषणा कर दी। कैबिनेट ने इस आशय से तैयार विधेयक का प्रस्ताव भी पारित कर दिया, लेकिन क्रियान्वयन नहीं हो पाया। बाद में सितंबर 2020 में केंद्र सरकार से अनुमति मिलने के बाद विधानसभा ने साहूकारी अधिनियम में संशोधन के साथ अनुसूचित जनजाति ऋण विमुक्ति विधेयक पारित किया। इसमें प्रविधान किया गया कि कोई भी गैर पंजीकृत साहूकार ब्याज पर ऋण देने का कारोबार नहीं कर पाएगा।
ऐसा करते हुए पाए जाने पर दो साल की सजा होगी और जुर्माना लगेगा। इतना ही नहीं गैर पंजीकृत साहूकारों द्वारा 15 अगस्त, 2020 तक अधिसूचित क्षेत्र (89 आदिवासी विकासखंड) में अनुसूचित जनजाति वर्ग को दिए ऋण को शून्य घोषित करते हुए इसकी वसूली पर पूरी तरह से रोक लगा दी गई। यह स्पष्ट कर दिया गया कि ऋण देने के लिए जो वस्तु या दस्तावेज गिरवी रखे गए हैं वे भी लौटाने होंगे। अधिनियम के प्रभावी होने के बाद जबरन वसूली का मामला सामने आने पर जमानती अपराध दर्ज किया जाएगा। साहूकारी अधिनियम में ग्रामसभा को अधिकार दिए गए कि यदि वह तय करे कि उसके क्षेत्र में साहूकारी व्यवसाय नहीं होगा तो कलेक्टर वहां साहूकारी के लिए किसी को लाइसेंस नहीं देंगे। इतनी स्पष्टता के बाद भी सूदखोरों का प्रभावी बने रहना प्रशासनिक मशीनरी की सक्रियता पर सवाल है। उम्मीद है कि सरकार के नए अभियान से अब सूदखोरों का नेटवर्क ध्वस्त होगा।
[स्थानीय संपादक, नवदुनिया, भोपाल]