Jagran Dialogues: "दिल्ली और मुंबई जैसे शहरों में कोरोना के विकराल रूप की एक बड़ी वजह प्रदूषण का खतरनाक लेवल भी"

आईसीएमआर के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ इंप्लीमेंटेशन रिसर्च और नॉन कम्युनिकेबल डिजीज के निदेशक डा. अरुण शर्मा ने बताया कि अगर हमने वायु प्रदूषण को कम करने के लिए समय रहते कदम उठा लिया होता तो कोरोना समेत बैक्टीरियल वायरल और फंगल बीमारियों के भयावह रूप से बचा जा सकता था।

By Sanjeev TiwariEdited By: Publish:Mon, 17 May 2021 07:27 PM (IST) Updated:Tue, 18 May 2021 06:50 AM (IST)
Jagran Dialogues: "दिल्ली और मुंबई जैसे शहरों में कोरोना के विकराल रूप की एक बड़ी वजह प्रदूषण का खतरनाक लेवल भी"
प्रदूषण ने कोरोना को अधिक भयावह बना दिया। (फाइल फोटो)

नई दिल्ली, Pratyush Ranjan। दिल्ली, मुंबई जैसे मेट्रो शहरों में प्रदूषण की वजह से कोरोना अधिक गंभीर और विकराल रूप धारण कर रहा है। यह बात 'जागरण डायलॉग्स' में आईसीएमआर के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ इंप्लीमेंटेशन रिसर्च और नॉन कम्युनिकेबल डिजीज के निदेशक डा. अरुण शर्मा से बातचीत के दौरान सामने आई। 54 मिनट की इस विशेष बातचीत में डॉक्टर शर्मा ने जागरण न्यू मीडिया के सीनियर एडिटर प्रत्यूष रंजन से एक एक्सक्लूसिव इंटरव्यू में बताया कि अगर हमने वायु प्रदूषण को कम करने के लिए समय रहते कदम उठा लिया होता तो कोरोना समेत अधिकांशत: बैक्टीरियल, वायरल और फंगल बीमारियों के भयावह रूप से बचा जा सकता था। यह प्रमाणित हो चुका है कि कोरोना का ट्रांसमिशन प्रदूषित हवा में अधिक होता है। ऐसे में प्रदूषण ने कोरोना को अधिक भयावह बना दिया।

डा. अरुण शर्मा ने कहा कि लोगों को राज्य स्तर पर और व्यक्तिगत स्तर पर प्रदूषण को कम करना होगा। आने वाले समय में घर के बाहर और भीतर वेंटीलेशन को बेहतर कर और प्रदूषण कम करके कई भयावह बीमारियों से बचा जा सकता है। उन्होंने कहा कि कोरोना और प्रदूषण का संबंध प्रमाणित करने वाली रिसर्च इटली, चीन और अमेरिका में हो चुकी है। उसमें यह सिद्ध हो चुका है कि कोरोना को खतरनाक बनाने में प्रदूषण का रोल काफी ज्यादा है। उदाहरण के तौर पर इटली के उत्तरी इटली (औद्योगिक काम अधिक) में कोरोना के अधिक मामले सामने आए। वहां की हवा अधिक प्रदूषित थी। जबकि दक्षिणी इटली में प्रदूषण कम होने की वजह से इसका प्रभाव कम देखने को मिला। इसके अलावा प्रदूषण में कमी लाकर यूरोपियन देशों में ट्यूबरकोलोसिस और पांच साल से कम उम्र के बच्चों में निमोनिया का स्तर कम हो गया।

जहां प्रदूषण ज्यादा वहां कोरोना से मौत अधिक

हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के अध्ययन में सामने आया जिन इलाकों में प्रदूषण ज्यादा था, वहां पर कोरोना से मौतें भी ज्यादा हुईं। जहां प्रदूषण कम मात्रा में था, वहां पर संक्रमण भी कम फैला और मौत का आंकड़ा भी कम रहा। यह दावा अमेरिका की देशव्यापी स्टडी में किया गया है। हार्वर्ड यूनिवर्सिटी ने स्टडी के दौरान अमेरिका की 3080 काउंटी का विश्लेषण किया था। स्टडी में कहा गया था कि अगर मैनहट्‌टन अपने औसत प्रदूषण कणों को पिछले 20 साल में एक माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर भी कम कर देता तो शायद हमें 248 मौतें कम देखने को मिलती।

लंबी अवधि तक प्रदूषण का सामना करने से खतरा ज्यादा

हार्वर्ड डाटा साइंस इनिशिएटिव के डायरेक्टर और स्टडी के लेखक फ्रांसेस्का डोमिनिकी के मुताबिक कोई शख्स 15-20 साल तक ज्यादा प्रदूषण झेलता रहा है तो कम प्रदूषित जगह पर रहने वाले की तुलना में कोरोना से उसकी मौत की आशंका 15% ज्यादा रहेगी। इटली में कोरोना से ज्यादा मौतों को भी प्रदूषण से जोड़कर देखा जा रहा है।

दिल्ली का प्रदूषण जानलेवा

सेंट्रल ब्यूरो ऑफ हेल्थ इंटेलिजेंस रिपोर्ट की मानें तो प्रदूषण को लेकर देश में हालात चिंताजनक बने हुए हैं। दिल्ली और हरियाणा और उससे सटे प्रदेशों की हालत खराब है। रिपोर्ट में बताया गया है कि दिल्ली, हरियाणा और उत्तराखंड में सांस की बीमारी से हुई मौतों की संख्या में तेजी से वृद्धि हुई है। दिल्ली में वर्ष 2016 से 2018 के बीच सांस की बीमारी से मौतों की संख्या में तीन गुना वृद्धि हुई है। रिपोर्ट के अनुसार, कुल मौतों में 68.47 फीसदी हिस्सा एयर पॉल्यूशन से होने वाली मौतों का है।

स्विस संस्था आईक्यूएयर की वर्ल्ड कैपिटल सिटी रैकिंग की रिपोर्ट के अनुसार दिल्ली दुनिया का 10 वां सबसे प्रदूषित शहर और शीर्ष प्रदूषित राजधानी है। यह स्थिति तब है जब 2019 से 2020 तक दिल्ली की हवा की गुणवत्ता में लगभग 15 फीसद का सुधार हुआ है।

दिल्ली और देश के प्रदूषण पर शिकागो यूनिवर्सिटी की रिपोर्ट

शिकागो विश्वविद्यालय के एनर्जी पॉलिसी इंस्टीट्यूट की रिपोर्ट के अनुसार भारत की 1.4 अरब आबादी ऐसी जगहों पर रहती है जहां पर्टिकुलेट प्रदूषण का औसत स्तर विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के मानकों से अधिक है। जबकि 84 फीसदी लोग ऐसी जगहों पर रहते हैं जहां प्रदूषण का स्तर भारत द्वारा तय मानकों से अधिक है। रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत की राजधानी दिल्ली में भी प्रदूषण का स्तर खतरनाक है। अगर यही स्तर जारी रहा तो औसत आयु 9.4 साल कम हो जाएगी।

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