Positive India : चार दशकों में बढ़े चक्रवात, ये हैं बड़ी वजहें, वैज्ञानिक शोध से क्षति कम करने की बन रही संभावना
भारतीय वैज्ञानिकों द्वारा हाल में किए गए एक अध्ययन के अनुसार उत्तरी हिंद महासागर में उच्च तीव्रता वाले तूफान अब अक्सर आने लगे है। ग्लोबल वार्मिंग और वैश्विक महासागरीय घाटियों पर बनने वाले उच्च तीव्रता तथा अधिक बारंबारता वाले उष्ण कटिबंधीय चक्रवातों पर इसका असर चिंता का विषय है।
नई दिल्ली, जेएनएन। चार दशकों के दौरान उत्तरी हिंद महासागर क्षेत्र में प्रचंड चक्रवाती तूफानों की तीव्रता में बढ़ोतरी हुई है। चक्रवातों के बढ़ने की वजह से न केवल मानवीय क्षति बढ़ी है, वहीं इसकी वजह से आर्थिक नुकसान में भी बढ़ोतरी हुई है। चक्रवाती तूफानों की बढ़ती तीव्रता की बड़ी वजह ह्यूमिडिटी, कमजोर वर्टिकल विंड शीयर तथा समुद्री सतह तापमान (एसएसटी) गर्म होना है। चक्रवातों की तीव्रता में बढ़ोतरी ग्लोबल वार्मिंग की तरफ इशारा करती है।
भारतीय वैज्ञानिकों द्वारा हाल में किए गए एक अध्ययन के अनुसार उत्तरी हिंद महासागर में उच्च तीव्रता वाले तूफान अब अक्सर आने लगे हैं जिससे तटीय क्षेत्रों पर भारी नुकसान का खतरा मंडराने लगा है। जलवायु परिवर्तन के कारण ग्लोबल वार्मिंग का प्रभाव और वैश्विक महासागरीय घाटियों पर बनने वाले उच्च तीव्रता तथा अधिक बारंबारता वाले उष्ण कटिबंधीय चक्रवातों पर इसका असर चिंता का विषय है।
आईआईटी खड्गपुर के ओशियन इंजीनियरिंग और नेवल आर्किटेक्चर विभाग के जिया अल्बर्ट, अथिरा कृष्णन और प्रसाद के. भास्करन सहित वैज्ञानिकों की एक टीम ने वेल्लोर के वीआईटी यूनिवर्सिटी के आपदा शमन और प्रबंधन केंद्र के के.एस. सिंहसाथ ने यह अध्ययन किया। हाल ही में 'क्लाइमेट डायनेमिक्स', स्प्रिंगर जर्नल में प्रकाशित हुआ। अध्ययन में सामने आया कि हाल के दशक (2000 के बाद) में बंगाल की खाड़ी और अरब सागर घाटियों दोनों में यह प्रवृत्ति बहुत अधिक पाई गई।
अध्ययन के निष्कर्षों से संकेत मिलता है कि ह्यूमिडिटी, कमजोर वर्टिकल विंड शीयर तथा समुद्री सतह तापमान (एसएसटी) गर्म होना, उत्तरी हिंद महासागर में उष्णकटिबंधीय तूफानों की बढ़ती गतिविधि के लिए जिम्मेदार हैं।
अध्ययन में ट्रोपोस्फीयर (क्षोभमण्डल या ट्रोपोस्फीयर पृथ्वी के वायुमंडल का सबसे निचला हिस्सा है। इसी परत में आर्द्रता, जलकण, धूलकण, वायुधुन्ध तथा सभी मौसमी घटनाएं होती हैं। ) में जलवाष्प तत्वों की बढ़ी मात्रा की रिपोर्ट की गई। 1979 की तुलना में पिछले 38 वर्षों के दौरान यह वृद्धि 1.93 गुना थी। पिछले दो दशकों (2000-2020) के दौरान ला नीना वर्षों में प्रचंड चक्रवातों की संख्या अल नीनो वर्षों की तुलना में लगभग दोगुनी थी। इसके अतिरिक्त,ला नीना वर्षों के दौरान बंगाल की खाड़ी में प्रंचड चक्रवातों के औसत साइक्लोजेनेसिस में स्थितिगत बदलाव पश्चिमी उत्तरी प्रशांत महासागर घाटियों में देखे गए बदलाव के समरूप हैं। इन वर्षों के दौरान प्रचंड चक्रवातों की संख्या बढ़ी। अंडमान सागर और उत्तरी चीन सागर क्षेत्रों में इनका सर्वाधिक प्रभाव रहा।