घरेलू ईंधन में कटौती से बच सकती है दो लाख से ज्यादा लोगों की जान
दिल्ली के छात्रों के मुताबिक यदि घरों में जलने वाले ईंधन (लकड़ी कोयला गोबर और मिट्टी के तेल) में कटौती की जाए तो हर साल लगभग दो लाख सात हजार जानें बचाई जा सकती हैं।
नई दिल्ली, प्रेट्र। हमारी रसोई से उठने वाला धुआं भी हमारे स्वास्थ्य के लिए बहुत हानिकारक है। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आइआइटी) दिल्ली के छात्रों के मुताबिक, यदि घरों में जलने वाले ईंधन (लकड़ी, कोयला, गोबर और मिट्टी के तेल) में कटौती की जाए तो हर साल लगभग दो लाख सात हजार जानें बचाई जा सकती हैं।
नेशनल साइंस एकेडमी के जर्नल में छपे एक अध्ययन में कहा गया है कि उद्योगों और वाहनों के धुएं से होने वाले प्रदूषण में बिना कोई बदलाव किए यदि केवल इन्हीं स्नोतों (घरेलू ईंधन) से होने वाले उत्सर्जन को खत्म कर दिया जाए तो देश में हवा की गुणवत्ता को औसत स्तर तक लाया जा सकता है। आइआइटी, दिल्ली के सागनिक डे और अन्य शोधार्थियों ने कहा कि घरेलू ईंधन का प्रयोग कम करने से वायु प्रदूषण से होने वाली मौतों को देशभर में लगभग 13 फीसद कम किया जा सकता है, जो एक साल में लगभग 2.07 लाख लोगों की जिंदगी बचाने के बराबर है।
अमेरिका स्थित बर्कले विश्वविद्यालय के प्रोफेसर किर्क आर स्मिथ ने कहा ‘भारत में बाहरी वायु प्रदूषण का सबसे बड़ा कारण घरों की रसाई से उठने वाला धुआं है।’ स्मिथ ने कहा ‘जब हमने यह पता करने की कोशिश की कि यदि हम अपने घरों में इस प्रकार के ईंधन का प्रयोग ना करें तो हमने यह पाया कि पूरे देश की वायु गुणवत्ता का स्तर सुधर जाएगा।’
प्रोफेसर स्मिथ ने कहा, ‘हमने लकड़ी से निकलने वाले धुएं में लगभग तीन हजार रसायनों की पहचान की है। यह तंबाकू से निकलने वाले धुएं के समान ही है। शोधकर्ताओं ने कहा कि वर्ष 2015 में भारत का औसत वार्षिक वायु प्रदूषण का स्तर 55 माइक्रोग्राम/ क्यूबिक मीटर था, जबकि राजधानी दिल्ली 300 माइक्रोग्राम/ क्यूबिक मीटर प्रदूषण स्तर के साथ सबसे ज्यादा प्रदूषित शहरों में शुमार थी। ग्रामीण क्षेत्रों में व्यापक विद्युतीकरण और ईंधन के रूप में बायोमास जलाने की बजाय स्वच्छ गैसों का प्रयोग करने से देश के वायु प्रदूषण के स्तर को 38 माइक्रोग्राम/ क्यूबिक मीटर तक लाया जा सकता है। स्मिथ कहते हैं कि जब तक भारत के लगभग आधे घरों में बायोमास जलना बंद नहीं होगा, तब तक वातावरण को साफ नहीं कर सकते। इसके अलावा भारत को वाहनों के प्रयोग और डंपिंग यार्ड में जलते कूड़े पर भी लगाम लगाना होगा।
बिजली के अभाव में होता है प्रयोग
विश्व के कई ग्रामीण क्षेत्रों में बिजली और गैस पाइप लाइन पहुंचाना बहुत दुर्लभ है। इसलिए खाना बनाने के लिए लकड़ी, उपले (गोबर) और फसलों के अवशेष समेत मिट्टी के तेल (केरोसिन) का प्रयोग किया जाता है, जो वायु प्रदूषण का सबसे बड़ा कारक है। शोधार्थियों ने बताया कि वर्ष 2016 से पहले भारत की लगभग आधी आबादी घरेलू ईंधन के तौर पर इसका प्रयोग करती थी। इस प्रकार का ईंधन ग्रीन हाउस गैसों से रसायनों और महीन कणों को बाहर निकाल कर हमारे फेफड़ों में जमा कर देता है और उसके बाद हमें तमाम बीमारियां घेर लेती हैं।