पूर्व पीएम एचडी देवगौड़ा को कोर्ट से झटका, 2011 मानहानी केस में देने होंगे 2 करोड़ रुपये

28 जून 2011 को गौड़ा गर्जन शीर्षक के तहत एक कन्नड़ समाचार चैनल द्वारा प्रसारित साक्षात्कार का उल्लेख करते हुए अदालत ने देवेगौड़ा को नंदी इंफ्रास्ट्रक्चर कॉरिडोर एंटरप्राइजेज को दो करोड़ रुपये का हर्जाना देने का निर्देश दिया।

By Manish PandeyEdited By: Publish:Tue, 22 Jun 2021 02:16 PM (IST) Updated:Tue, 22 Jun 2021 02:16 PM (IST)
पूर्व पीएम एचडी देवगौड़ा को कोर्ट से झटका, 2011 मानहानी केस में देने होंगे 2 करोड़ रुपये
मानहानी मामले में कोर्ट ने पूर्व पीएम देवगौड़ा को 2 करोड़ रुपये का हर्जाना देने का निर्देश दिया।

बेंगलुरू, पीटीआइ। बेंगलुरू की एक अदालत से पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवेगौड़ा को 2011 के मानहानी मामले में बड़ा झटका लगा है। कोर्ट ने में देवगौड़ा को नंदी इंफ्रास्ट्रक्चर कॉरिडोर एंटरप्राइजेज (एनआईसीई) को 10 साल पहले एक टेलीविजन साक्षात्कार में कंपनी के खिलाफ उनके अपमानजनक बयान के लिए दो करोड़ रुपये का भुगतान करने का निर्देश दिया है।

एनआईसीई के प्रमोटर और प्रबंध निदेशक अशोक खेनी हैं, जो बीदर दक्षिण के पूर्व विधायक हैं। 28 जून, 2011 को 'गौड़ा गर्जन' शीर्षक के तहत एक कन्नड़ समाचार चैनल द्वारा प्रसारित साक्षात्कार का उल्लेख करते हुए, अदालत ने देवेगौड़ा को कंपनी को दो करोड़ रुपये का हर्जाना देने का निर्देश दिया, जिसमें की गई अपमानजनक टिप्पणियों के कारण कंपनी की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचा था।

A Bengaluru court has directed former PM HD Deve Gowda to pay Rs 2 crores to Nandi Infrastructure Corridor Enterprise (NICE) Ltd for loss of reputation. NICE had filed an original suit against the statements made by the former PM in an interview with a news channel in 2011. pic.twitter.com/hSmpIYJl7O

— ANI (@ANI) June 22, 2021

दरअसल जेडीएस सुप्रीमो ने एनआईसीई की परियोजना पर नाराजगी जताई थी और उन्होंने इसे 'लूट' कहा था। अदालत ने पाया कि विचाराधीन परियोजना को कर्नाटक उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय ने अपने निर्णयों में बरकरार रखा है।

अदालत ने 17 जून के आदेश में कहा था कि कंपनी द्वारा शुरू की गई परियोजना एक विशाल परियोजना है जो कर्नाटक के व्यापक हित में है। इसलिए, यदि भविष्य में इस तरह के अपमानजनक बयान देने की अनुमति दी जाती रही, तो निश्चित रूप से वर्तमान में बड़ी परियोजना के कार्यान्वयन में, देरी हो सकती है। इसलिए, इस न्यायालय को लगता है कि प्रतिवादी के खिलाफ स्थायी निषेधाज्ञा जारी करके ऐसे बयानों पर अंकुश लगाना आवश्यक है।

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