Coronavirus Outbreak: कोरोना के मुश्किल दौर में युवाओं ने स्वेच्छा से मदद के लिए बढ़ाए कदम

कोविडबेड के संस्थापक 25 वर्षीय संतोष डोडिया पीईएस पीयू कॉलेज के स्टूडेंट हैं। वह बताते हैं मैंने देखा कि कैसे मरीज अस्पतालों में फोन करते रहते हैं और वहां से उन्हें कोई जवाब नहीं मिलता। कई परिवार तो बेहद मुश्किल दौर से गुजर रहे होते हैं।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Publish:Sat, 08 May 2021 04:35 PM (IST) Updated:Sat, 08 May 2021 04:51 PM (IST)
Coronavirus Outbreak: कोरोना के मुश्किल दौर में युवाओं ने स्वेच्छा से मदद के लिए बढ़ाए कदम
कोई भी वाट्सएप के जरिये एंबुलेंस की सेवा भी ले सकता है।

नई दिल्ली, अंशु सिंह। दोस्तो, हम सभी देख रहे हैं कि इस मुश्किल दौर में कैसे युवाओं ने स्वेच्छा से अपने कदम आगे बढ़ाए हैं और जरूरतमंदों की हर संभव मदद कर रहे हैं। इन दिनों कोविड मरीजों को अस्पतालों में बेड मिलने में काफी दिक्कत हो रही है। लोग दर-दर भटक रहे हैं और उन्हें निराशा हाथ लग रही है। ऐसे में बेंगलुरु के एक युवा ने कोविड मरीजों व पीड़ित परिवारों के लिए कोविडबेड्स डॉट ओआरजी (Covidbeds.org) नाम से एक वेबसाइट शुरू की है। इस प्लेटफॉर्म पर कोविड अस्पताल, बेड, टेस्टिंग सेंटर सभी की जानकारी उपलब्ध करायी गई है। इतना ही नहीं, कोई भी वाट्सएप के जरिये एंबुलेंस की सेवा भी ले सकता है।

 

कोविडबेड के संस्थापक 25 वर्षीय संतोष डोडिया पीईएस पीयू कॉलेज के स्टूडेंट हैं। वह बताते हैं, मैंने देखा कि कैसे मरीज अस्पतालों में फोन करते रहते हैं और वहां से उन्हें कोई जवाब नहीं मिलता। कई परिवार तो बेहद मुश्किल दौर से गुजर रहे होते हैं। यही सब सोचकर मैंने इस वेबसाइट को डेवलप किया। इस पर बेंगलुरु के करीब 68 अस्पतालों की पूरी जानकारी दी गई है। उनका पता, फोन नंबर और बेड की उपलब्धता की संपूर्ण सूचना यहां से प्राप्त की जा सकती है। हाल ही में हमने वाट्सएप पर एंबुलेंस सर्विस की सुविधा देनी भी शुरू की है। कोई भी हमारे नंबर (76-108-108-48) पर कॉल कर एंबुलेंस मंगा सकता है।

संतोष ने पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर जुलाई 2020 में यह वेबसाइट लॉन्च की थी। उन्होंने पाया था कि कैसे स्थानीय प्रशासन की वेबसाइट पर अस्पतालों, बेड्स आदि की जो सूचना दी गई है, उसमें जमीनी स्तर पर बहुत फर्क है। वह बताते हैं, मेरे सामने एक कोविड पीड़ित महिला का मामला आया था, जिन्हें 16 अस्पतालों से खाली हाथ लौटना पड़ा था, क्योंकि वहां कोई बेड उपलब्ध नहीं था। इसके बाद मैंने कुछ रिसर्च किया। अस्पतालों को फोन कर उनसे वस्तुस्थिति का पता किया। मेरे पास काफी डाटा इकट्ठा हो चुका था, तो मैंने अपने स्कूल के दोस्त मोहम्मद सुलेमान की मदद से एक वेबसाइट डेवलप करायी और उस पर सारी सूचनाओं को अपलोड करता गया। सुलेमान ने मात्र दो दिन में इसे तैयार कर दिया। संतोष इंटरनेट मीडिया पेजेज के जरिये भी मदद संबंधी सूचनाएं प्रसारित करते हैं।

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