Coronavirus Outbreak: हौसले की राह: कैसे भी हों हालात, डर को है जीतना...मिलेगी तभी जीत

देवेंद्र ने जितनी तत्परता एवं गंभीरता से अपने मित्र की निस्वार्थ सहायता की वह बिरले ही देखने को मिलती है। राजन एवं उनकी पत्नी ने उनके प्रति कृतज्ञता जाहिर करते हुए कहा ‘परिस्थितियां अनुकूल नहीं थीं। चारों ओर से निराशा हाथ लग रही थी।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Publish:Thu, 13 May 2021 04:43 PM (IST) Updated:Thu, 13 May 2021 05:01 PM (IST)
Coronavirus Outbreak: हौसले की राह: कैसे भी हों हालात, डर को है जीतना...मिलेगी तभी जीत
अकेले 15 घंटे की यात्रा कर उन्होंने हमें नई जिंदगी, नया श्वास दिया।‘

नई दिल्‍ली, अंशु सिंह। नोएडा में रहने वाले राजन एवं उनकी गर्भवती पत्नी कोविड पॉजिटिव थे। ऑक्सीजन की दिक्कत हो रही थी, लेकिन अस्पताल में बेड नहीं मिलने के कारण उन्होंने घर में ही ऑक्सीजन सिलेंडर का प्रबंध किया। हालांकि वह भी दस दिनों से अधिक नहीं चलने वाला था। दोनों चिंतित थे। इसी बीच बोकारो में रहने वाले उनके मित्र देवेंद्र कुमार को इसकी जानकारी मिली। उन्होंने बिना विलंब किए सेल स्टील प्लांट से दो ऑक्सीजन सिलेंडर का इंतजाम किया। अपने एक दोस्त से गाड़ी ली और तकरीबन 1200 किलोमीटर की यात्रा (बिना रुके हुए) कर राजन के घर तक सिलेंडर पहुंचाया।

देवेंद्र ने जितनी तत्परता एवं गंभीरता से अपने मित्र की नि:स्वार्थ सहायता की, वह बिरले ही देखने को मिलती है। राजन एवं उनकी पत्नी ने उनके प्रति कृतज्ञता जाहिर करते हुए कहा, ‘परिस्थितियां अनुकूल नहीं थीं। चारों ओर से निराशा हाथ लग रही थी। फिर अस्पताल में बेड मिलने का सवाल हो या कुछ और। लेकिन हमने स्वयं का मनोबल टूटने नहीं दिया। उम्मीद नहीं हारी। इसी प्रकार, देवेंद्र को भी खुद पर विश्वास था, इसलिए अकेले 15 घंटे की यात्रा कर उन्होंने हमें नई जिंदगी, नया श्वास दिया।‘

दूसरी कहानी बेंगलुरु की पूनम एवं उनके परिवार की है। दो वर्ष बाद वे सभी दिल्ली आए थे। लेकिन कुछ ही दिनों में पूरा परिवार कोरोना की चपेट में आ गए। उनमें छोटी बच्चियां और बुजुर्ग भी शामिल थे। जैसा कि अक्सर लोगों के साथ होता है कि मुश्किल या चुनौती आने पर वे एकदम से घबरा जाते हैं, निर्णय नहीं ले पाते हैं, पूनम के परिजनों के साथ भी कुछ वैसा ही हुआ। सभी तमाम शंकाओं से घिर गए कि अब न जाने क्या होगा? उन्हें कुछ हो जाएगा, तो बच्चों को कौन संभालेगा? बाहर का माहौल भी इतना नकारात्मक है कि किससे, क्या कहेंगे? तब पूनम ने एक फैसला लिया, ‘मैंने घर में सबसे कहा कि हम मिलकर इस बीमारी को हराएंगे। तन के साथ मन का ध्यान रखेंगे। एक दिनचर्या तय की कि सुबह सब समय से उठेंगे। योग-प्राणायाम करेंगे। भोजन आदि करने के अलावा प्रेरक किताबें पढ़ेंगे, संगीत सुनेंगे। अलग-अलग कमरों में रहते हुए वीडियो कॉल या कॉल से एक-दूसरे की खबर लेते रहेंगे। हमें रिकवर करने में बेशक 21 दिन से अधिक लगे। संतोष इस बात का है कि सब स्वस्थ हैं।‘ पूनम के अनुसार, सदस्यों को शरीर की तकलीफ रही। लेकिन बुजुर्ग माता-पिता के मन का शुरुआती वहम एवं डर दूर हो गया।

पूर्व सैन्य अधिकारी एवं समाजसेवी नवीन गुलिया कहते हैं, ‘सागर की हवाएं एवं संसार का कालचक्र हमारी इच्छा के अनुसार नहीं चलते, किंतु अपने समुद्री जहाज रूपी जीवन के पलों का बहती हवा के अनुसार उचित उपयोग करके हम जीवन में सदैव अपनी इच्छित दिशा में आगे बढ़ सकते हैं। हां, कोरोना के रूप में एक खतरनाक बीमारी आई है, जिससे डरना नहीं, लड़ना है। हमें कभी भूलना नहीं चाहिए कि मन से हारे हार होती है, मन से जीते जीत।‘ वह आगे कहते हैं, ‘मुश्किल समय में ही पता चलता है कि कौन कितने पानी में है। फौज में भी हम देखते हैं कि युद्ध के समय जिसको हम कमजोर समझते थे, वही ताकतवर निकलता था। जो अपने शारीरिक सौष्ठव, डीलडौल की डींगें हांकते थे, वे साबुन का पानी पीकर अस्पताल में भर्ती हो जाते थे। कहने का तात्पर्य है कि मनुष्य के चरित्र का पता कठिन समय में ही लगता है। बुरा वक्त आने पर बुजदिल लोगों की जुबान ही बदल जाती है और वे कहने लगते हैं कि जो डरेगा, वही बचेगा। यह सोच कहीं से सही नहीं है। असल में सकरात्मकता ही जीवन की कुंजी है।‘

मोटिवेशनल स्पीकर ईवी गिरीश की मानें, तो नकारात्मक वातावरण में नकारात्मक एवं उदासीन होना सबसे आसान है। हिम्मतवान वह है, जो नकारात्मकता के बीच सकारात्मक रहे एवं अपनी उदारता का परिचय दे। ज्ञानी भी कहते हैं कि जिसके पास हिम्मत होती है, ईश्वर भी उसी की मदद करते हैं। हम जब स्वयं एवं दूसरों के प्रति कल्याण की भावना रखते हैं, बुरे वक्त में उनके साथ खड़े होते हैं, तो ईश्वर भी इसके निमित्त मनुष्यों की सहायता करने में देरी नहीं करते। इसकी मिसालें इन दिनों बहुतायत में देखने को मिल रही हैं। अनजान लोग गरीबों, जरूरतमंदों की मदद के लिए आगे आ रहे हैं। पहल कर रहे हैं। अस्पताल में जब एक दुधमुंहे बच्चे को छोड़ मां गुजर जाती है, तो असंख्य मांएं उसे अपना दूध देने के लिए कतार में लग जाती हैं।

एक निजी कंपनी में मार्केटिंग मैनेजर सुबोध बताते हैं, ‘मेरी मंगेतर सुरभि डॉक्टर हैं और इन दिनों कोविड मरीजों की सेवा में लगी हुई हैं। हमें बातचीत करने का बमुश्किल समय मिलता है। संयोग से एक दिन हम फोन पर बात कर रहे थे कि तभी सुरभि के अस्पताल से इमरजेंसी कॉल आई। उन्हें फौरन किसी सीनियर डॉक्टर के बदले ड्यूटी पर जाना था। मैं हैरान था कि सुरभि ने उफ तक नहीं की। न कोई शिकायत। बस कहा, बाद में बात करती हूं और फोन रख दिया। मैं उसके इस हौसले एवं समर्पण को सलाम करता हूं।’ दक्षिण अफ्रीका के पूर्व राष्ट्रपति नेल्सन मंडेला कहते थे कि हिम्मतवान वह नहीं, जिसे डर नहीं लगता, बल्कि वह है जो डर पर जीत हासिल करता है। वहीं, महान वैज्ञानिक मेरी क्यूरी का मानना था कि जीवन डरने के लिए नहीं, बल्कि समझने के लिए है। उसे सिर्फ समझा जा सकता है। आज के समय भी हमें एक-दूसरे को समझने की जरूरत है, न कि डरने की। कहने का आशय यह है कि सकारात्मक संकल्प से ही हम हर तरह की मुश्किल से बाहर निकल सकते हैं।

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