सहकारी समितियां होंगी डिजिटल, सहकारी क्षेत्र में पारदर्शिता लाने के लिए सरकार ने उठाए बड़े कदम

देश की सहकारी समितियों को डिजिटल बनाने की तैयारी है। इसके पहले चरण में देशभर में कुल तीन लाख प्राथमिक सहकारी समितियां गठित करने का लक्ष्य है। इसके लिए कुल तीन हजार करोड़ रुपये की जरूरत होगी। पढ़ें यह रिपोर्ट...

By Krishna Bihari SinghEdited By: Publish:Thu, 21 Oct 2021 08:40 PM (IST) Updated:Thu, 21 Oct 2021 08:40 PM (IST)
सहकारी समितियां होंगी डिजिटल, सहकारी क्षेत्र में पारदर्शिता लाने के लिए सरकार ने उठाए बड़े कदम
देश की सहकारी समितियों को डिजिटल बनाने के लिए कुल तीन हजार करोड़ रुपये की जरूरत होगी।

सुरेंद्र प्रसाद सिंह, नई दिल्ली। देश की सहकारी समितियों को डिजिटल बनाने के लिए कुल तीन हजार करोड़ रुपये की जरूरत होगी। इसके पहले चरण में देशभर में कुल तीन लाख प्राथमिक सहकारी समितियां गठित करने का लक्ष्य है। सहकारी क्षेत्र में पूर्ण पारदर्शिता लाने के लिए सरकार ने व्यवस्था के एक छोर से लेकर दूसरे छोर तक कंप्यूटरीकरण योजना तैयार की है। इससे सहकारी समितियों के कामकाज में पारदर्शिता आएगी, वहीं स्थानीय स्तर पर रोजगार के अवसर बढ़ेंगे। सहकारी क्षेत्र में सुधार की प्रक्रिया तेज कर दी गई है।

ग्राम पंचायत स्तर पर विभिन्न वजहों से भंग हो चुकी प्राथमिक सहकारी समितियों को दोबारा सक्रिय करने पर भी विचार किया जा रहा है, जिसका प्रस्ताव तैयार कर लिया गया है। इस बाबत मॉडल कानून बनाकर राज्यों को लागू करने के लिए भेजा जा सकता है।

एक आंकड़े के मुताबिक फिलहाल देश में 95,000 प्राथमिक कृषि क्रेडिट सोसाइटी (पैक्स) पंजीकृत हैं, जिसमें से 60,000 से अधिक समितियां ही सक्रिय हैं। शेष लगभग 35,000 निष्कि्रय समितियों में से ज्यादातर कर्ज में डूबी हैं या उनके पास धन का अभाव है। कई राज्यों की इन समितियों को घोटाले की वजह से निलंबित कर दिया गया है। इसी वजह से इन समितियों को बैंकों से न लोन मिल पा रहा है और न ही उनमें किसी तरह का कामकाज हो पा रहा है।

सहकारी क्षेत्र से जुड़े लोगों का कहना है कि इन समितियों के रहते उन ग्राम पंचायतों में दूसरी समितियों का गठन नहीं हो पा रहा है, जिससे वहां के लोगों को भारी नुकसान उठाना पड़ रहा है। सहकारिता मंत्रालय में इन दिनों निचले स्तर पर सबसे छोटी इकाई प्राथमिक सहकारी समिति की संख्या को बढ़ाने की योजना पर काम चल रहा है। इसके लिए राज्यों को हर संभव मदद मुहैया कराई जा सकती है।

राज्यों के साथ मिलकर सहकारिता आंदोलन को आगे बढ़ाने की तैयारियों को अंजाम दिया जा रहा है। मंत्रालय में इसे लेकर कई दौर की वार्ता हो चुकी है। प्राथमिक समितियों के कंप्यूटरीकरण से पारदर्शिता बढ़ेगी, जिससे गड़बड़ी की गुंजाइश नहीं के बराबर रहेगी।

गांव के स्तर पर रोजगार के साधन मुहैया कराने के लिए इन समितियों की भूमिका को अहम बनाने के लिए प्रत्येक सहकारी समिति में दो पेशेवरों की नियुक्ति का प्रस्ताव है। इसके लिए स्थानीय स्तर पर ही समिति को एक साथ कई रोजगारों के योग्य बनाने पर बल दिया जाएगा। इनमें स्थानीय कामकाज और रोजगार को ज्यादा तरजीह दी जाएगी।

भंग समितियों का विकल्प तैयार करने के लिए मल्टी परपज सोसाइटी (एमपीएस) का गठन भी किया जा सकता है, ताकि कानूनी अड़चन न आ सके। सहकारी क्षेत्र की चुनौतियों और मुश्किलों के समाधान के लिए मंत्रालय के स्तर पर लगातार बैठकों का दौर जारी है। आगामी वित्त वर्ष के आम बजट में सहकारी क्षेत्र में वित्तीय सुधार पर जोर दिया जाए, जिसमें आयकर समेत अन्य कई तरह के टैक्स से संबंधित मामलों को तर्कसंगत बनाया जाएगा।

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