संप्रग काल की पेट्रोल-डीजल की राजनीति से उपभोक्ता आज त्रस्त, आयल बांड्स से रोकी जा रही थी महंगाई

पेट्रोलियम पदार्थों की कीमतों को लेकर राजनीति गर्म है। ऑयल बांड्स जारी कर तत्कालीन यूपीए सरकार ने फौरी तौर पर तो ग्राहकों के लिए दाम स्थिर रखा था लेकिन अब उसका भुगतान आम ग्राहकों की जेब से ही होना है।

By Bhupendra SinghEdited By: Publish:Mon, 21 Jun 2021 10:20 PM (IST) Updated:Mon, 21 Jun 2021 10:20 PM (IST)
संप्रग काल की पेट्रोल-डीजल की राजनीति से उपभोक्ता आज त्रस्त, आयल बांड्स से रोकी जा रही थी महंगाई
पूर्ववर्ती सरकार में आयल बांड्स जारी कर रोकी जा रही थी महंगाई

जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। देश के कई हिस्सों में पेट्रोल 100 रुपये प्रति लीटर के पार पहुंच गया है और इस महंगाई से आम ग्राहक त्रस्त है। हकीकत यह है कि पूर्ववर्ती संप्रग सरकार में तेल कीमतों को लेकर जो राजनीति होती थी, उसका खामियाजा मौजूदा केंद्र सरकार को भुगतना पड़ रहा है।

पूर्ववर्ती सरकार में आयल बांड्स जारी कर रोकी जा रही थी महंगाई

पूर्व में कच्चे तेल के महंगा होने पर उसका पूरा बोझ आम जनता पर नहीं डाला जाता था, बल्कि सब्सिडी की व्यवस्था होती थी। इस सब्सिडी की राशि के बदले तेल कंपनियों को आयल बांड्स जारी किए जाते थे। इन बांड्स की परिपक्वता अविध 10 से 20 वर्ष होती थी। ये बांड्स परिपक्व हो रहे हैं और इनका भुगतान अब शुरू होगा।

बांड्स पर अक्टूबर से मार्च, 2026 तक हर वर्ष चुकाना होगा ब्याज

पूर्व की सरकारों की तरफ से जारी 1.31 लाख करोड़ रुपये के ऑयल बांड्स का भुगतान मौजूदा व आगामी केंद्र सरकार को इस वर्ष अक्टूबर से लेकर मार्च, 2026 के बीच करना होगा। इन बांड्स पर इसी वर्ष करीब 20,000 करोड़ रुपये का ब्याज केंद्र को चुकाना होगा।

दो बांड्स के लिए मूल व ब्याज के तौर पर 20,000 करोड़ रुपये चुकाने होंगे

वित्त मंत्रालय की तरफ से उपलब्ध कराए गए आंकड़ों के अनुसार इस वर्ष अक्टूबर और नंवबर में पांच-पांच हजार करोड़ रुपये के बांड्स के भुगतान का बोझ केंद्र को उठाना है। एक दशक पहले केंद्र सरकार की तरफ से जारी इस मूल्य के दो बांड्स के लिए अब मूल व ब्याज के तौर पर 20,000 करोड़ रुपये का भुगतान करना है।

2023 में 22,000 करोड़, 2024 में 40,000 करोड़ रुपये के बांड्स का भुगतान करना होगा

वर्ष 2023 में सरकार को 22,000 करोड़ रुपये के बांड्स और 2024 में 40,000 करोड़ रुपये के बांड्स का भुगतान करना होगा। वर्ष 2026 में भी 37,000 करोड़ रुपये के बांड्स की अदायगी करने का बोझ उठाना पड़ेगा।

यूपीए सरकार ने कच्चे तेल के महंगा होने पर उसका बोझ आम जनता पर नहीं डाला था

वर्ष 2009 और वर्ष 2014 के आम चुनावों से पहले तत्कालीन यूपीए सरकार ने पेट्रोल की खुदरा कीमतों को बढ़ाना एकदम बंद कर दिया था। तब एक समय कच्चे तेल की कीमत 145 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंच गई थी। तब इसका पूरा बोझ आम जनता पर नहीं डाला गया था।

घाटे की भरपाई के लिए कंपनियों को बांड्स जारी किए गए थे

घाटे की भरपाई के लिए कंपनियों को बांड्स जारी किए गए थे। ऑयल बांड्स केंद्र सरकार की तरफ से जारी दूसरे बांड्स की तरह ही होते हैं, जिसमें एक निश्चित अवधि के बाद ब्याज समेत राशि चुकाने का वादा होता है।

तेल कंपनियों को कीमतों को बढ़ाने का अधिकार नहीं था

पूर्व में तेल कंपनियों को रोजाना पेट्रोलियम उत्पादों की खुदरा की कीमतों को बढ़ाने का अधिकार नहीं था। अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चा तेल महंगा होने पर सरकारी तेल कंपनियों को कीमत वृद्धि के लिए केंद्र सरकार से अनुमति लेनी होती थी। राजनीतिक वजहों से कोई भी सरकार पेट्रोल, डीजल, केरोसिन व रसोई गैस की कीमत बढ़ाने का दो टूक फैसला नहीं कर पाती थी। इसके लिए कैबिनेट और गठबंधन दलों की बैठक तक बुलानी पड़ती थी।

सरकारों ने घाटे की भरपाई के लिए आयल बांड्स जारी करने का फॉर्मूला निकाला था

वर्ष 1996-97 के बाद से केंद्र सरकारों ने तेल कंपनियों के घाटे की भरपाई के लिए आयल बांड्स जारी करने का फॉर्मूला निकाला था। वर्ष 2004-05 में आई यूपीए सरकार ने एक नया फॉर्मूला निकाला था, जिसके तहत वह कुछ बोझ आम जनता पर डालती थी और कुछ बोझ बतौर आयल बांड्स तेल कंपनियों को जारी कर दिए जाते थे।

पेट्रोलियम पदार्थों की कीमतों को लेकर राजनीति गर्म

ध्यान रहे कि अभी फिर से पेट्रोलियम पदार्थों की कीमतों को लेकर राजनीति गर्म है। इसे जीएसटी के दायरे में लाने की बात भी हुई, लेकिन कोई सरकार इसके लिए तैयार नहीं दिखती है। ऑयल बांड्स जारी कर तत्कालीन यूपीए सरकार ने फौरी तौर पर तो ग्राहकों के लिए दाम स्थिर रखा था, लेकिन अब उसका भुगतान आम ग्राहकों की जेब से ही होना है।

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