दांपत्य संबंधों में अपराध का मामला, भारत में विवाह व्यवस्था के विविध आयाम

Conjugal Relationship विवाह में दुष्कर्म का मामला हाल में छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय द्वारा दिए गए एक निर्णय के बाद फिर से चर्चा में आ गया है। न्यायालय ने एक मामले में एक व्यक्ति को हालांकि अन्य यौन अपराधों दोषी माना है।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Publish:Fri, 10 Sep 2021 10:06 AM (IST) Updated:Fri, 10 Sep 2021 10:06 AM (IST)
दांपत्य संबंधों में अपराध का मामला, भारत में विवाह व्यवस्था के विविध आयाम
किसी व्यक्ति द्वारा अपनी पत्नी के साथ बनाए गए यौन संबंध को दुष्कर्म नहीं कहा जाएगा।

सीबीपी श्रीवास्तव। Conjugal Relationship महिला सशक्तीकरण के बारे में भले हम बड़े-बड़े दावे कर रहे हैं, लेकिन उनके विरुद्ध होने वाले अपराध अब भी गंभीर चिंता का विषय हैं। यहां प्रश्न यह है कि क्या महिलाओं की गरिमा की सुरक्षा के बिना उनका सशक्तीकरण संभव है, इस स्थिति के लिए अक्सर पितृसत्तात्मक मानसिकता को दोषी ठहराया जाता रहा है। सामाजिक संगठन में पितृसत्ता कदाचित इस कारण विकसित हुई थी कि परिवार में श्रम विभाजन करने के क्रम में पुरुषों को आय अर्जित करने व परिवार की सुरक्षा के लिए जबकि महिलाओं को बच्चों की देखभाल और संपूर्ण परिवार को एकजुट रखने के साथ ही सदस्यों के बीच भावनात्मक संबंध बनाए रखने के लिए उत्तरदायी बनाया जाए।

लेकिन इसका अर्थ यह बिल्कुल नहीं था कि पुरुष को ऐसी कोई निरपेक्ष शक्ति दी जाए या उसे ऐसा कोई अधिकार दिया जाए जिससे वह महिलाओं पर अत्याचार कर सके। कालांतर में पितृसत्तात्मकता का सकारात्मक पक्ष पुरुष की प्रभुत्ववादी मानसिकता में परिवर्तित हो गया जो महिला सशक्तीकरण के समक्ष गंभीर अड़चन बन कर उभर गया है। यह मानसिकता अपराधियों को इस रूप में प्रेरित करती है कि वे शारीरिक रूप से अधिक शक्तिशाली होने के कारण महिलाओं पर बल प्रयोग कर सकते हैं।

इसी मानसिकता की पृष्ठभूमि में विश्व स्तर पर राज्यों ने लिंग-आधारित विभेदों को दूर करने और महिलाओं के विरुद्ध अपराधों को रोकने के लिए कानूनों का निर्माण किया। यह प्रयास किया गया कि महिला सुरक्षा के एक वैश्विक ढांचे का निर्माण किया जाए। भारत में भी ऐसे कई कानून प्रचलित हैं, लेकिन दुर्भाग्यवश महिलाओं के विरुद्ध अपराधों पर रोक लगा पाना अब तक संभव नहीं हो सका है।

हाल ही में जारी एक आंकड़े के अनुसार, कोविड के कारण चरणबद्ध रूप से लगाए गए लाकडाउन के दौरान केवल राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली में महिलाओं के विरुद्ध अपराधों की संख्या में 2021 के पहले छह माह में 63.3 प्रतिशत की वृद्धि हुई। अधिकांशत: महिलाओं द्वारा घरेलू अत्याचार की शिकायतें दर्ज कराई गईं। हालांकि केवल दिल्ली के आंकड़े पूरे देश का चित्रण नहीं करते, लेकिन निश्चित रूप से यह संकेत दे रहे हैं कि अब भी शायद समाज में महिलाओं को कमजोर और पुरुष की संपत्ति ही माना जाता है और महिला सशक्तीकरण के हमारे दावे वास्तविक रूप में खोखले ही सिद्ध हो रहे हैं।

संविधान और महिला अधिकार : महिलाओं के विरुद्ध अपराधों को कई श्रेणियों में रखा गया है, लेकिन दुष्कर्म एक ऐसा जघन्य अपराध है जो न केवल किसी महिला का शारीरिक उत्पीड़न है, बल्कि यह उसकी भावनाओं और गरिमा का पूर्णत: विरोधी भी है। संविधान में महिलाओं की गरिमा और उनके अधिकारों को हरसंभव सुरक्षित रखे जाने का उल्लेख है। इसके अलावा विवाह में किसी महिला के विरुद्ध किया गया अपराध भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। कारण यह कि भारत के सामाजिक-सांस्कृतिक परिवेश में अधिकांशत: महिलाएं अपने पतियों या उनके संबंधियों के विरुद्ध न्यायालय में जाने में सक्षम नहीं हो पातीं। वैवाहिक संबंधों में होने वाले अपराधों में दुष्कर्म को रखे जाने की मांग लगातार की जा रही है। हालांकि वैवाहिक दुष्कर्म शब्दावली भारतीय दंड संहिता में स्पष्ट उल्लिखित नहीं है, लेकिन सामान्य भाषा में इसे पत्नी के साथ उसकी सहमति के बिना यौन संबंध बनाने के कृत्य को इस श्रेणी में रखा जाता है।

वर्तमान में जिस प्रसंग में यह मामला विवाद में आया है, उसका मुद्दा यह है कि यदि वैवाहिक दुष्कर्म का अपराधीकरण कर दिया जाए तो यह पतियों के विरुद्ध गलत मंशा के साथ अभियोजन को बढ़ावा देगा और विवाह जैसी संस्था पर नकारात्मक प्रभाव डालेगा। दूसरी ओर, कुछ लोगों का मत है कि ऐसा विचार भारत में पितृसत्तात्मकता का प्रतीक है। दुष्कर्म की परिभाषा भारतीय दंड संहिता की धारा 375 में दी गई है, लेकिन इसके अपवाद में यह उल्लेख है कि किसी व्यक्ति के द्वारा उसकी पत्नी के साथ बनाया गया यौन संबंध दुष्कर्म नहीं होगा यदि पत्नी की आयु 15 वर्ष से कम नहीं है। उच्चतम न्यायालय ने इंडिपेंडेंट थाट बनाम भारत संघ 2017 मामले में यह आयु बढ़ाकर 18 वर्ष कर दी है। दंड संहिता के इस प्रविधान के आलोचकों का मानना है कि धारा 375 का यह अपवाद वैवाहिक दुष्कर्म को प्रोत्साहित करता है। लेकिन यह विचार रखना तर्कसंगत प्रतीत नहीं होता। दुष्कर्म किसी भी स्थिति में एक ऐसा अपराध है जो किसी महिला की गरिमा का उल्लंघन है जो उसका बुनियादी मानव अधिकार है। कई कानूनों में ऐसे अपराध के लिए सख्त दंड के प्रविधान किए गए हैं। ऐसी स्थिति में यदि धारा 375 के अपवाद के प्रविधान बने भी रहते हैं तो भी दुष्कर्म जैसा जघन्य अपराध करने वालों को सजा देने के लिए पर्याप्त प्रविधान हैं। वस्तुत: विवाद का यह मुद्दा आपराधिक न्याय की तुलना में मानव अधिकारों से अधिक जुड़ गया है।

भारत के विधि आयोग ने वर्ष 2000 में अपनी 172वीं रिपोर्ट में इस आधार पर वैवाहिक दुष्कर्म के अपराधीकरण का विरोध किया कि इससे वैवाहिक संबंधों में अत्यधिक हस्तक्षेप होने की आशंका होगी। आयोग ने इसी आधार पर दंड संहिता की धारा 375 में संशोधन करने के मुद्दे पर कोई सिफारिश नहीं की। इन सभी तर्को का अर्थ यह नहीं है कि यदि कोई व्यक्ति अपनी पत्नी पर यौन अत्याचार करता है तो उसे दंडित नहीं किया जाएगा। ऐसे अपराधों के लिए दंड के पर्याप्त विधिक प्रविधान भारत में प्रचलित हैं और दोषी पाए जाने पर उसके कानून से बचने का प्रश्न नहीं है।

दुष्कर्म के संदर्भ में दंड देने का तरीका वैवाहिक संबंधों में पति-पत्नी के संबंधों में बदलाव के साथ परिवर्तित होता है। हालांकि यह सच है कि दुष्कर्म के मामलों में पुरुषों या अपराधी के गलत इरादे को साबित करना अप्रासंगिक है और केवल उसके कृत्य ही उसे दोषी बताने के लिए पर्याप्त हैं, उसका गलत इरादा निश्चित रूप से वैवाहिक दुष्कर्म के मामलों में प्रासंगिक हो जाता है। ऐसा इसलिए है, क्योंकि इस तरह के अपराध करने की प्रेरणा पत्नी के अधिकारों के प्रति अनिच्छा और लापरवाही के कारण आती है, इसलिए इस अपराध को वैवाहिक दुष्कर्म के बजाय पत्नी के यौन शोषण के रूप में रखना उचित है।

उपरोक्त तर्को के आधार पर यह कहा जा सकता है कि वैवाहिक संबंध में पत्नी के साथ पति द्वारा बलपूर्वक यौन संबंध बनाना शारीरिक दुरुपयोग का अपराध है, न कि दुष्कर्म जिसमें पीड़िता यानी पत्नी को मुआवजा दिए जाने का प्रविधान है। यह इन मामलों में विवाह की प्रासंगिकता और उसके महत्व की समझ के लिए उपयोगी है। दूसरी ओर, दंड संहिता की धारा 376बी के अनुसार न्यायिक पृथक्कीकरण के बाद पति द्वारा पत्नी के साथ बलपूर्वक या उसकी सहमति के बिना यौन संबंध बनाना अपराध की श्रेणी में आता है।

निष्कर्षत: विधि के प्रविधानों के तहत कोई भी ऐसा अपराधी जो किसी महिला, चाहे वह उसकी पत्नी हो, उसके विरुद्ध जघन्य अपराध करता है तो वह कानून के दायरे से बाहर नहीं हो सकता। केवल अन्य देशों की तर्ज पर अपने देश में कानूनों में परिवर्तन तार्किक नहीं होगा, क्योंकि कानूनों का निर्माण अपने देश के सामाजिक-सांस्कृतिक परिवेश को ध्यान में रख कर ही किया जाना चाहिए।

भारत में विवाह व्यवस्था के विविध आयाम : महिलाओं के विरुद्ध अपराधों के संदर्भ में अन्य प्रविधानों पर बात करने से पहले भारत में विवाह के आयाम को समझना अनिवार्य है। भारत में विवाह मुख्य रूप से वैयक्तिक विधियों से नियमित होते हैं। लेकिन हिंदू विवाह अधिनियम 1955 में यह विचार अंतर्निहित है कि मुस्लिम विवाह के विपरीत हिंदू विवाह अनुबंध नहीं होकर एक पवित्र संस्कार है। इस विचार के दो आयाम हैं जिन्हें विधि का समर्थन प्राप्त है। पहला यह कि पति और पत्नी का साथ रहना प्रकृति का एक नियम है और दूसरा यह कि भारत में पति और पत्नी विधि के तहत एक इकाई हैं। भारत में विवाह संस्कार परिवार के सृजन के लिए बनाई गई एक सामाजिक संस्था है। इस कारण यह पारस्परिक आश्रय, पति और पत्नी दोनों के द्वारा एक-दूसरे के लिए सम्मान और प्रतिबद्धता जैसे सिद्धांतों पर बल देता है।

सबसे महत्वपूर्ण यह है कि इसी कारण वैवाहिक संबंध में पति और पत्नी के बीच यौन संबंध की सहमति आनुवंशिक रूप से निहित होती है। दंड संहिता की धारा 375 के अपवाद 2 के प्रविधानों के पीछे कदाचित यही तर्क रहा है। लेकिन यदि पति द्वारा पत्नी पर यौन अत्याचार किया जाता है तो वह न केवल वैवाहिक संस्कार के विरुद्ध होगा, बल्कि कई कानूनों से असंगत भी होगा। इसलिए दंड संहिता में यौन अपराधों के लिए धारा 354, 354ए, बी तथा कई अन्य प्रविधान हैं। इसी प्रकार, यौन हिंसा के संदर्भ में पोक्सो एक्ट 2012 में भी सख्त दंड के प्रविधान हैं। केरल उच्च न्यायालय ने भी इस संदर्भ में कहा है कि वैवाहिक दुष्कर्म क्रूरता या उत्पीड़न के अर्थ में शामिल है और यह तलाक का एक महत्वपूर्ण आधार है। न्यायालय ने यह कहा कि हालांकि विधि में वैवाहिक दुष्कर्म शब्द का उल्लेख नहीं है, लेकिन यह न्यायालय पर कोई रोक नहीं लगाता।

इस विषय पर सरकार का मानना है कि वैवाहिक दुष्कर्म जिस रूप में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कई देशों में विद्यमान है, उसे उसी रूप में भारत में शामिल नहीं किया जा सकता जिसके लिए कई कारक जैसे निरक्षरता, निर्धनता, सामाजिक मान्यताएं, सामाजिक तथा पारिवारिक मूल्य, धार्मिक विश्वास और विवाह को एक पवित्र संस्कार मानने वाली मानसिकता उत्तरदायी हैं। हालांकि ऐसा कह कर हम महिलाओं के अधिकारों का उल्लंघन नहीं कर सकते, इसलिए भले ही धारा 375 के दूसरे अपवाद में वैवाहिक दुष्कर्म की संकल्पना नहीं रखी गई है, लेकिन कई अन्य प्रविधानों और कानूनों में महिला अधिकारों और गरिमा के संरक्षण का प्रविधान है।

मालूम हो कि वर्ष 2018 में वुमन सेक्सुअल, रीप्रोडक्टिव एंड मेंस्ट्रुअल राइट्स बिल एक निजी विधेयक के रूप ने सांसद शशि थरूर द्वारा प्रस्तुत किया गया था। इसमें मुख्यत: वैवाहिक दुष्कर्म को अपराध के रूप में मान्यता देने और भारतीय दंड संहिता की धारा 375 के अपवाद को निरस्त करने की मांग की गई थी, लेकिन समर्थन के अभाव में यह विधेयक पारित नहीं हो सका।

[अध्यक्ष, सेंटर फार अप्लायड रिसर्च इन गवर्नेस दिल्ली]

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