समग्र जल प्रबंधन नीति से बनेगी बात, भौगोलिक परिस्थितियों के अनुरूप करनी होगी तैयारी
यह भी समझना होगा कि दुनियाभर में प्रचलित तकनीक को सभी जगह एक रूप में एक ही प्रकार से लागू नहीं किया जा सकता है। भौगोलिक परिस्थितियों के अनुरूप जल प्रबंधन की तकनीक को तैयार कर उसे समग्रता से लागू करना होगा।
मनोज कुमार झा। विकास की अंधी दौड़ ने हमें जल प्रबंधन के बारे में सोचने का समय नहीं दिया है। हम बिना जल प्रबंधन के ही गांवों और शहरों का विस्तार करते जा रहे हैं। हमारे नीति नियंताओं का इस ओर ध्यान ही नहीं जा रहा है। वे निरंतर सड़कों का जाल बिछाते जा रहे हैं, किंतु जल जनित समस्याओं की ओर
उनका ध्यान नहीं जा रहा है।
देखा जाए तो आजादी के पहले ही अंग्रेजों ने जो विकास का पैटर्न अपनाया था, बाद में हमारे नियंताओं ने उसका तेजी से अनुसरण किया। परिणामस्वरूप हम हर वर्ष बाढ़ की भयंकर त्रसदी ङोल रहे हैं। बाढ़ विश्वव्यापी त्रसदी होने के बावजूद इस ओर किसी भी सरकार का ध्यान नहीं जा रहा है। इस वर्ष दुनिया भर में बाढ़ की
विभिषिका हम देख ही रहे हैं। बाढ़ आने के अनेक कारण होते हैं, लेकिन हम अभी तक यह मानने को तैयार नहीं हैं कि बाढ़ मानव जन्य संकट है। जब तक हम इसे स्वीकार नहीं करेंगे तब तक इसके निदान की तरफ नहीं बढ़ सकेंगे। नदियों के मुहाने और तालाबों को भर कर लगातार विकास कार्य हो रहा है। लोग तत्काल तो समझ नहीं पाते, लेकिन जब बाढ़ की त्रसदी उन्हें निगल जाती है, तब अफसोस जताते हैं। अब समय आ गया है कि हमारी नदियों और तालाबों को बचाया जाए।
नदियों के तल में गाद जमा होने से पानी का उफान पर होना स्वाभाविक है। इसका मुख्य कारण तटबंध है। आधुनिक विकास कार्यो का विरोध करने वालों को बदनाम किया जाता है। लेकिन सरकारें यह कभी नहीं सोचतीं कि लोग विरोध कर रहे हैं तो उस बारे में समग्रता से विचार किया जाए और उसका कोई व्यावहारिक समाधान तलाशा जाए। समुचित जल प्रबंधन के द्वारा यह काम आसानी से हो सकता है। सामूहिक स्तर पर जल संग्रह संयंत्रों का निर्माण हमें बाढ़ की विभीषिका से बचा सकता है। बांध या बैराज बनाकर नदियों को मोड़ना सामान्य सोच में सहज दिखता है। लेकिन धरती के लिए यह अहितकर है। नदियों को मोड़ने से जीव-जंतुओं, पेड़-पौधों को नुकसान होता है जिसे हमारी दृष्टि देख ही नहीं पाती है। ऐसा करने से केवल नदियां ही नहीं मरती हैं, बल्कि सभ्यताओं को भी भारी नुकसान होता है।
नदियों पर तटबंध निर्माण के बाद कुछ वर्षो तक तो लगता है कि हम जीत गए, लेकिन हम प्रकृति से जीत नहीं सकते यह बहुत बड़ा सत्य है। दुनियाभर के तटबंधों का इतिहास उठाकर यह देखा जा सकता है कि नदियों ने कब-कब मानव निर्मित तटबंधों को तोड़कर भयंकर नुकसान पहुंचाया है। नदियां जहां समुद्र में मिलती हैं, उस इलाके में तटीय अतिक्रमण लगातार हो रहा है। नदियों के पानी को घरेलू और औद्योगिक उपयोग के लिए जगह-जगह रोक कर रखना भी लगातार खतरनाक होता जा रहा है।
साधारणतया वर्षा जल प्रबंधन से हम बाढ़ की विभीषिका से बहुत हद तक बच सकते हैं। नदियों से आने वाले पानी को खेती के लिए सिंचाई कार्यो में उपयोगी बनाने के लिए पारंपरिक संरचनाओं को पुनर्जीवित करना होगा। स्थानीय स्तर पर पूर्व में बनाए गए ढांचों की उपयोगिता को समझते हुए उसे आधुनिक तरीके से
कैसे बहुपयोगी बनाया जा सकता है इस बारे में भी विचार करना होगा। देशभर में नदियों के जलग्रहण क्षेत्र में सिमट रहे जलाशयों का विस्तार करते हुए उनमें जलभंडार को बढ़ाना होगा जिससे बाढ़ की समस्या के साथ बड़ी आबादी के लिए जलापूर्ति की समस्या का भी समाधान सुनिश्चित किया जा सकता है।
यह भी समझना होगा कि दुनियाभर में प्रचलित तकनीक को सभी जगह एक रूप में एक ही प्रकार से लागू नहीं किया जा सकता है। भौगोलिक परिस्थितियों के अनुरूप जल प्रबंधन की तकनीक को तैयार कर उसे समग्रता से लागू करना होगा। तभी हम बाढ़ के व्यापक विनाश के पार पा सकते हैं।
[लेखक- गांधी शांति प्रतिष्ठान से संबद्ध]